Author: Team Bhaktisatsang

भक्ति सत्संग वेबसाइट ईश्वरीय भक्ति में ओतप्रोत रहने वाले उन सभी मनुष्यो के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिन्हे अपने निज जीवन में सदैव ईश्वर और ईश्वरत्व का एहसास रहा है और महाज्ञानियो द्वारा बतलाये गए सत के पथ पर चलने हेतु तत्पर है | यहाँ पधारने के लिए आप सभी महानुभावो को कोटि कोटि प्रणाम

शयन का मन्त्र जले रक्षतु वाराहः स्थले रक्षतु वामनः । अटव्यां नारसिंहश्च सर्वतः पातु केशवः ।। क्षमा प्रार्थना मन्त्र मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन । यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।। अग्नि जिमाने का मन्त्र ॐ भूपतये स्वाहा, ॐ भुवनप, ॐ भुवनपतये स्वाहा । ॐ भूतानां पतये स्वाहा ।। कहकर तीन आहूतियाँ बने हुए भोजन

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दुर्गा नाममाला – Durga Nam दुर्गा दुर्गार्तिशामिनी दुर्गापद्विनिवारिणी | दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी || दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहंत्री दुर्गमापहा | दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला || दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी | दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविधया दुर्गमाश्रिता || दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी | दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी || दुर्गमासुरसहंत्री दुर्गमायुधधरिणी | दुर्गमाङगी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी|| दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्ग दारिणी | यह भी पढ़े : श्री दुर्गा चालीसा

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विनियोग – ॐ अस्य श्रीदेव्या: कवचस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, ख्फ्रें चामुण्डाख्या महा-लक्ष्मी:देवता, ह्रीं ह्रसौं ह्स्क्लीं ह्रीं ह्रसौं अंग-न्यस्ता देव्य: शक्तय:, ऐं ह्स्रीं ह्रक्लीं श्रीं ह्वर्युं क्ष्म्रौं स्फ्रें बीजानि, श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये सर्व रक्षार्थे च पाठे विनियोग:। ऋष्यादि-न्यास – ब्रह्मर्षये नम: शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नम: मुखे, ख्फ्रें चामुण्डाख्या महा-लक्ष्मी: देवतायै नम: हृदि, ह्रीं ह्रसौं ह्स्क्लीं ह्रीं ह्रसौं

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श्री महासरस्वती सहस्त्रनाम स्तोत्रम * अथ ध्यानम् श्रीमच्चन्दनचर्चितोज्ज्वलवपु: शुक्लाम्बरा मल्लिका- मालाललित कुन्तला प्रविलासन्मुक्तावलीशोभना । सर्वज्ञाननिधानपुस्तकधरा रुद्राक्षमालाङ्किता वाग्देवी वदनाम्बुजे वसतु मे त्रैलोक्यमाता शुभा ॥1॥ नारद उवाच- भगवन्परमेशान सर्वलोकैकनायक । कथं सरस्वती साक्षात्प्रसन्ना परमेष्ठिन: ॥2॥ कथं देव्या महावाण्या: सतत्प्राप सुदुर्लभम्‍ । एतन्मे वद तत्वेन महायोगीश्वरप्रभो ॥3॥ श्री सनत्कुमार उवाच – साधु पृष्टं त्वया ब्रह्मन्‍ गुह्याद्गुह्य मनुत्तमम्‍ ।

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शत्रु बाधा हेतु बगलामुखी मंत्र साधना – Baglamukhi Sadhna  शत्रुनाशिनी श्री बगलामुखी (Baglamukhi) का परिचय भौतिकरूप में शत्रुओं का शमन करने की इच्छा रखने वाली तथा आध्यात्मिक रूप में परमात्मा की संहार शक्ति हैं। पीताम्बरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की साधना (Baglamukhi Sadhna) प्रायः शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए

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आदि शक्ति योनिस्तोत्रम् ॐ भग-रूपा जगन्माता सृष्टि-स्थिति-लयान्विता । दशविद्या – स्वरूपात्मा योनिर्मां पातु सर्वदा ।।१।। कोण-त्रय-युता देवि स्तुति-निन्दा-विवर्जिता । जगदानन्द-सम्भूता योनिर्मां पातु सर्वदा ।।२।। कात्र्रिकी – कुन्तलं रूपं योन्युपरि सुशोभितम् । भुक्ति-मुक्ति-प्रदा योनि: योनिर्मां पातु सर्वदा ।।३।। वीर्यरूपा शैलपुत्री मध्यस्थाने विराजिता । ब्रह्म-विष्णु-शिव श्रेष्ठा योनिर्मां पातु सर्वदा ।।४।। यह भी पढ़े : श्री पार्वती जी

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शिव पुराण – Shiv Puran Katha in Hindi  Shiv Puran Katha – शिव का अर्थ है कल्याण। शिव के महात्मय से ओत-प्रोत से यह पुराण शिव पुराण कथा (Shiv Puran khatha) के नाम से प्रसिद्ध है। 18 पुराणों में कहीं शिव पुराण (Shiv Puran in Hindi) तो कहीं वायु पुराण का वर्णन आता है। शिव

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ऋणमोचक मंगल स्तोत्र मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः । स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1।। लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः । धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2।। अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः । व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3।। एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् । ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥4।। धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥5।।  यह भी

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अथ ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तं मंत्र  ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः । अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमि॓न्द्राग्नी अहमश्विनोभा ॥1॥ अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमु॒त पूषणं भगम् । अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये ये॑ ‍ यजमानाय सुन्वते ॥2॥ अहं राष्ट्री सङ्गमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् । तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भू~र्या॓वेशयन्तीम् ॥3॥ मया सो अन्नमत्ति यो विपश्य॑ति यः प्राणिति य

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मानस के सिद्ध मंत्र : १॰ विपत्ति-नाश के लिये “राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।” २॰ संकट-नाश के लिये “जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।। दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।” ३॰ कठिन क्लेश नाश के

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