परशुराम जयंती पर जानिए परशुराम का इतिहास

भगवान परशुराम जयंती – Bhagwan Parshuram

भगवान परशुराम (Lord Parshuram) भगवान विष्णु के दस अवतार में से एक है। उनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था जो वामन अवतार के बाद तथा श्री राम अवतार से पूर्व जन्मे थे। मान्यता हैं कि वे आज भी जीवित हैं तथा कलियुग के अंत तक वे जीवित रहेंगे। ऐसे ही उनके जीवन से जुड़े कई रोचक पहलु है। आज हम आपको भगवान परशुराम के जीवन से जुड़े दस रोचक तथ्यों से अवगत करवाएंगे।

परशुराम
परशुराम

परशुराम का जन्म स्थान

भगवान विष्णु का कोई भी ऐसा अवतार नहीं रहा जिसके रहते उन्होंने दूसरा अवतार ले लिया हो अर्थात एक अवतार की समाप्ति के पश्चात ही वे दूसरा अवतार लेते थे। किंतु जब से भगवान परशुराम ने उनके छठे अवतार के रूप में जन्म लिया है तब से वे आज तक जीवित है। इस प्रकार भगवान विष्णु का यह एकमात्र अवतार हैं जिन्होंने अपने बाद के अवतारों के समय भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

एक बार भगवान परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि के कहने पर अपनी माँ रेणुका का मस्तक काटकर धड़ से अलग कर दिया था। अपने पुत्र की कर्तव्य निष्ठा से प्रसन्न होकर उनके पिता ने उनसे वरदान मांगने को कहा था। परशुराम जी ने वरदान स्वरुप अपनी माता का जीवन पुनः मांग लिया था। इसके बाद उनकी माँ जीवंत हो उठी थी।

भगवान परशुराम के समय एक राजा था जिसका नाम था कार्तवीर्य अर्जुन। उसकी हज़ार भुजाएं थी, इसलिए उसे सहस्त्रबाहु भी कहते थे। वह लंका के राजा रावण को भी परास्त कर चुका था जिसके बाद उसकी प्रसिद्धि तीनो लोकों में व्याप्त हो चुकी थी। एक बार जब परशुराम अपने आश्रम से बाहर गए हुए थे तब कार्तवीर्य अर्जुन ने उनके पिता के आश्रम पर हमला करके उनकी मुख्य गाय कामधेनु चुरा ली थी। जब परशुराम पुनः अपने आश्रम लौटे और सब घटना का ज्ञान हुआ तब उन्होंने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाएं काटकर उसका वध कर दिया था।

सहस्त्रबाहु के वध के पश्चात उसका प्रायश्चित करने के लिए परशुराम तीर्थ यात्रा पर चले गए थे। पीछे से सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने परशुराम के पिता जमदग्नि का वध कर दिया था। जब परशुराम जी को इसका पता चला तब उन्होंने पृथ्वी से इक्कीस पर सहस्त्रबाहु के क्षत्रिय वंश का नाश कर दिया था। इसलिये उन्हें पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रिय विहीन करने के तौर पर भी देखा जाता है।

लक्ष्मण परशुराम संवाद

रामावतार के समय उनकी भगवान श्रीराम से राजा जनक के दरबार में प्रथम बार भेंट हुई थी। तब उन्हें यह ज्ञान नही था कि श्रीराम विष्णु के रूप हैं, इसलिए वे उन पर शिव धनुष तोड़ने के लिए क्रोध करने लगे थे। भरी सभा में भगवान परशुराम और श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण के बीच तीखा संवाद (lakshman parshuram samvad) भी हुआ था। इसके बाद श्रीराम ने परशुराम को अपने विष्णु अवतार के रूप में दर्शन दिए थे। यह देखकर परशुराम का क्रोध शांत हो गया था और वे वहां से चले गए थे।

भगवान श्रीकृष्ण के समय में भी उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। महाभारत का युद्ध लड़ने वाले तीन महान योद्धा उनके शिष्य थे। उन्होंने भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य तथा दानवीर कर्ण को अस्त्र-शस्त्र की विद्या में पारंगत किया था। बाद में इन तीनों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

एक बार उनका अपने ही शिष्य भीष्म से भयंकर युद्ध हुआ था लेकिन इस युद्ध का कुछ भी परिणाम नहीं निकला था क्योंकि परशुराम स्वयं भगवान थे व भीष्म को अपनी इच्छा के अनुसार मृत्यु मिलने का वरदान था। इसलिए कई दिनों तक भीषण युद्ध चलने के पश्चात स्वयं देवताओं ने दोनों के बीच युद्ध को रुकवाया था।

महाभारत के एक और मुख्य पात्र कर्ण ने परशुराम से झूठ बोलकर शिक्षा ग्रहण की थी। उसने स्वयं को ब्राह्मण बताकर शिक्षा ग्रहण की थी जो की असत्य था। जब भगवान परशुराम को इसका ज्ञान हुआ तब उन्होंने कर्ण को श्राप दिया था कि जब उसे अपनी विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी तभी वह उसे भूल जायेगा। इसी श्राप के कारण महाभारत के भीषण युद्ध में कर्ण का वध धनुर्धारी अर्जुन के हाथों हुआ था।

परशुराम के गुरु कौन थे

परशुराम के गुरु स्वयं भगवान शिव थे। शिवजी से ही परशुरामजी ने समस्त शिक्षा-दीक्षा और युद्ध-कला सीखी थी। भगवान परशुराम के बचपन का नाम राम था लेकिन एक बार उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तब भगवान शिव ने उन्हें परशु नाम का एक अस्त्र (कुल्हाड़ी) दी थी जो उन्हें बहुत प्रिय थी। इसी के बाद से उनका नाम परशुराम हो गया था।

मान्यता है कि भगवान परशुराम कलयुग के अंत में फिर से आएंगे। उनका दायित्व भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को शिक्षा देने तथा अस्त्र-शस्त्र चलाना सिखाना होगा। इस दायित्व को निभाने के पश्चात इस धरती से उनका उद्देश्य समाप्त हो जायेगा तथा वे पुनः श्रीहरि में समा जाएंगे।

भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती?

भगवान तो भगवान ही है, वह परब्रह्म परमात्मा अनन्त अखण्ड अविनाशी है, कब कहाँ किस रूप मे प्रकट और प्रकाशित होकर विश्व का कल्याण सहायता सहयोग सुरक्षा कर देगें इसका कोई प्रतिबन्धित नियम नही है, वे कालातीत है तथा उनके हजारों अवतार हुए हैं। राम और कृष्ण स्वरूप जनसामान्य मे अधिक प्रचलित हो गये क्योंकि महात्माओं ने इनकी कथाओं को अधिक विस्तार से सुनाया । कुछ अवतार जिनका अधिक प्रचार न हो पाया उनके स्वरूप को कुछ जाति समाज वर्ण या व्यवसाय वाले अपनी सुविधानुसार पूजने लग गये। वैसे परशुराम जी को ब्राह्मण पूजते है । विश्वकर्मा जी को सुतार कारपेन्टर पूजने लग गये । धन्वन्तरी जी को वैद्य लोग पूजने लग गये।

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