केदारनाथ – Kedarnath
हिंदू धर्म में केदारनाथ यात्रा (kedarnath yatra) की काफी मान्यता है, केदारनाथ धाम ((kedarnath dham) और बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham Yatra) के दर्शन किए बिना चार धाम (char dham yatra) पूरे नहीं होते है। चार धामों (4 dham) में से एक केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से पांचवे स्थान पर आता है। केदारनाथ मन्दिर (kedarnath temple) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम (char dham) और पंच केदार में से भी एक है।
केदारनाथ मंदिर न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी । इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है।
केदारनाथ मंदिर – Kedarnath Temple
वैज्ञानिकों की मानें तो केदारनाथ का मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा था, लेकिन फिर भी वह सुरक्षित बचा रहा। 13वीं से 17वीं शताब्दी तक एक छोटा हिमयुग (आइए एज) आया था जिसमें यह मंदिर 400 साल तक बर्फ में दबा रहा फिर भी इस मंदिर को कुछ नहीं हुआ, इसलिए वैज्ञानिक इस बात से हैरान नहीं है कि जून 2013 में आई आपदा में यह मंदिर कैसे बच गया।
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देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के मुताबिक 400 साल तक केदारनाथ के मंदिर के बर्फ के अंदर दबे रहने के बावजूद यह मंदिर सुरक्षित रहा। लेकिन जब बर्फ पीछे हटी तो उसके हटने के निशान मंदिर में छूट गए जो आ भी मौजूद हैं।वैज्ञानिकों ने इनकी स्टडी के आधार पर ही यह निष्कर्ष निकाला है। वैज्ञानिकों के मुताबिक 13वीं से 17वीं शताब्दी तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था।
वैज्ञानिकों के अनुसार मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी इसके निशान हैं। ये निशान ग्लेशियर की रगड़ से बने हैं। ग्लैशियर हर वक्त खिसकते रहते हैं। वे न सिर्फ खिसकते हैं बल्कि उनके साथ उनका वजन भी होता, जिसके कारण उनके मार्ग में आई हर वस्तुएं रगड़ खाती हुई चलती हैं। 400 साल तक मंदिर बर्फ में दबा रहा होगा तो मंदिर ने इन ग्लेशियर की रगड़ भी झेली होगी। लेकिन इस मंदिर को कुछ नहीं हुआ।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा व इतिहास : Kedarnath Temple History
केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ (badrinath kedarnath) ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।
इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान यात्रा रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये १२-१३वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनवाया हुआ है जो १०७६-९९ काल के थे। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर ८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये मंदिर की बगल में है।
मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। फिर भी इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल मानते है कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं। १८८२ के इतिहास के अनुसार साफ अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ हैं। “पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है। मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पूजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं। श्री ट्रेल के अनुसार वर्तमान ढांचा हाल ही निर्मित है जबकि मूल भवन गिरकर नष्ट हो गये। केदारनाथ मन्दिर रुद्रप्रयाग जिले मे है उत्तरकाशी जिले मे नही |
केदारनाथ मंदिर वास्तुशिल्प और भौगोलिक स्थिति : Kedarnath Temple Inside
केदारनाथ मन्दिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। केदारनाथ कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी। खासकर यह विशालकाय छत कैसे खंभों पर रखी गई। पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। यह मजबूती और तकनीक ही मंदिर को नदी के बीचोबीच खड़े रखने में कामयाब हुई है।
इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है। अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है। सभामंडप विशाल एवं भव्य है। उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है। गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।
केदारनाथ मंदिर के कपाट मेष संक्रांति से पंद्रह दिन पूर्व खुलते हैं और अगहन संक्रांति के निकट बलराज की रात्रि चारों पहर की पूजा और भइया दूज के दिन, प्रातः चार बजे, श्री केदार को घृत कमल व वस्त्रादि की समाधि के साथ ही, कपाट बंद हो जाते हैं। केदारनाथ के निकट ही गाँधी सरोवर व वासुकीताल हैं।
केदारनाथ कहाँ स्थित है – Kedarnath Location
केदारनाथ भारत के उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित पवित्र शहर और उत्तराखंड के चार धामों में से एक है। केदारनाथ, केदारनाथ घाटी में 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
केदारनाथ मार्ग – Kedarnath Route
ऋषिकेश से केदारनाथ के लिए मार्ग (223 किलोमीटर)
ऋषिकेश → देवप्रयाग (70 किलोमीटर) → श्रीनगर (35 किलोमीटर) → रुद्रप्रयाग (34 किलोमीटर) → तिलवारा (9 किलोमीटर) → अगस्त्यमुनि (10 किलोमीटर) → कुंड (15 किलोमीटर) → गुप्तकाशी (5 किलोमीटर) → फाटा (11 किलोमीटर) → रामपुर (9 किलोमीटर) → सोनप्रयाग (3 किलोमीटर) → गौरीकुंड (5 किलोमीटर) → रामबारा (7 किलोमीटर) → लिनचौली (4 किलोमीटर) → केदारनाथ (3 किलोमीटर)।
केदारनाथ धाम कैसे पहुंचे : How To Reach Kedarnath
केदारनाथ यात्रा ट्रेन से – Nearest Raiway Station To Kedarnath
केदारनाथ के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (215 किलोमीटर), हरिद्वार (241 किलोमीटर),देहरादून (257 किलोमीटर) और कोटद्वार (246 किलोमीटर)। ऋषिकेश फास्ट ट्रेनों से नहीं जुड़ा है और कोटद्वार में ट्रेनों की संख्या बहुत कम है। हालांकि, ऋषिकेश से 25 किमी दूर हरिद्वार रेलवे स्टेशन नई दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, अमृतसर और हावड़ा से जुड़ा हुआ है।
हवाईजहाज से केदारनाथ यात्रा – Nearest Airport To Kedarnath
जॉली ग्रांट हवाई अड्डा केदारनाथ का निकटतम हवाई अड्डा है जो 238 किमी की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डा दैनिक उड़ानों के साथ दिल्ली से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। गौरीकुंड जॉली ग्रांट हवाई अड्डा सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। टैक्सी जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से गौरीकुंड के लिए उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग से केदारनाथ यात्रा – Kedarnath By Road
गौरीकुंड वह स्थान है जहाँ से केदारनाथ के लिए सड़क समाप्त होती है और 14 किमी की आसान ट्रेक शुरू होती है। गौरीकुंड भारत के उत्तराखंड और उत्तरी राज्यों के प्रमुख स्थलों के सा सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आईएसबीटी कश्मीरी गेट से ऋषिकेश और श्रीनगर के लिए बसें उपलब्ध हैं। उत्तराखंड के प्रमुख स्थलों जैसे देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, श्रीनगर, चमोली आदि से गौरीकुंड के लिए बसें और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं, गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग 109 पर स्थित है जो रुद्रप्रयाग को केदारनाथ से जोड़ता है।
हेलीकॉप्टर द्वारा केदारनाथ – Kedarnath By Helicopter
उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों से संचालित होने वाली हेलीकाप्टर सेवाओं के माध्यम से केदारनाथ बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है। कुछ प्रमुख स्थान जहाँ से आप केदारनाथ के लिए हेलीकॉप्टर प्राप्त कर सकते हैं: देहरादून, गौचर, अगस्टमुनि, फाटा, सीतापुर।
केदारनाथ में घूमने के स्थान – Places To Visit In Kedarnath
शंकराचार्य समाधि – Shankaracharya Samadhi
ऐसा माना जाता है कि अद्वैत दर्शन का प्रचार करने वाले श्री शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में इस पवित्र मंदिर और उनके चार मठों में से एक की स्थापना की और 32 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त किया।
वासुकी ताल – Vasuki Tal
4135 मीटर की ऊंचाई पर एक झील, वासुकी ताल से पड़ोसी चौखम्बा चोटियों का दृश्य देखा जा सकता है। ट्रेकर्स के लिए ये बहुत अछि ट्रेकिंग रेंज है। झील के रस्ते में ग्लेशियर भी देख सकते है।
अगस्त्यमुनि मंदिर – Agastyamuni Temple
संत अगस्त्य को समर्पित यह मंदिर उनके एक साल के तप की याद दिलाता है। यह प्राचीन मंदिर भव्य वास्तुकला के उदाहरण के रूप में खड़ा है और इसकी दीवारों पर की गयी कला लाजवाब है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा : Kedarnath Darshan
मन्दिर की पूजा के लिए प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है। इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।
केदारनाथ मंदिर के दर्शन का समय : Kedarnath Darshan Time
- केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 7:00 बजे खुलता है।
- दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
- पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है।
- पांच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित केदारनाथ जी की आरती होती है।
- रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
शीतकाल में केदारघाटी बर्फ से ढंकी होती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व बन्द हो जाता है और छ: माह बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद कपाट खुलता है।
ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहां भी रावल जी करते हैं।
केदारनाथ में जनता शुल्क जमा कराकर रसीद प्राप्त करती है और उसके अनुसार ही वह मन्दिर की पूजा-आरती कराती है अथवा भोग-प्रसाद ग्रहण करती है।
केदारनाथ मंदिर के पूजा का क्रम : Kedarnath Puja, Aarti
भगवान की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख हैं। मन्दिर-समिति द्वारा केदारनाथ मन्दिर में पूजा कराने हेतु जनता से जो दक्षिणा लिया जाता है, उसमें समिति समय-समय पर परिर्वतन भी करती है।
केदारनाथ पूजा और आरती का विवरण और रेट्स – Kedarnath Puja and Aarti and Rates
- Maha Abhishek (1 Person) – 1700
- Rudra Abhishek Puja (1 Person) – 1300
- Laghu Rudra Abhishek Puja (1 Person) – 1100
- Sodasopachar (1 Person) – 1000
- Entire Pujas of a day – 5200
- Morning Puja – 170
- Balbhog – 900
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केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा : Kedarnath Temple Story
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महा तपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।
पंचकेदार की कथा – Panch Kedar
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए।
भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
केदारनाथ जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Kedarnath
केदारनाथ जाने के लिए मई से जून और सितंबर से अक्टूबर का समय सबसे अच्छा समय है। इसका मतलब यह है कि अपनी यात्रा की योजना बनाते समय सर्दियों से बचने का ध्यान रखें।