परशुराम कुंड – Parshuram Kund Temple
अरुणाचल प्रदेश यूँ तो जनजातियों का राज्य है, लेकिन यहाँ स्थित परशुराम कुंड (Parshuram Kund Arunachal Pradesh) की वजह से हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए भी यह राज्य खास महत्व रखता है। परशुराम कुंड की उत्पत्ति (Parshuram Kund History) की कहानी श्रीमद भागवत, कालिकापुराण और महाभारत में परशुराम द्वारा की गई मातृहत्या से संबंध है। परशुराम कुण्ड को प्रभु कुठार के नाम से भी जाना जाता है। यह अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिला की उत्तर-पूर्व दिशा में 24 किमी की दूरी पर स्थित है।
परशुराम कुंड का इतिहास – Parshuram Kund History
कालिकापुराण में कहा गया है कि इस कुंड में स्नान भर करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस कुंड का जल गंगा नदी के जल के समान ही पवित्र माना जाता है। 18 वीं सदी में एक साधु ने परशुराम कुंड को पुनःस्थापित किया। चौखाम से आए इस साधु को ठग समझकर गाँव से बाहर निकाल दिया गया था। इसके बाद ही गाँव के लोग एक अनजान रोग से ग्रस्त हो गए। इधर साधु ग्रामीणों के रोष से बचने के लिए कुंड के पास एक गुफा में छिप गया। गाँव वाले उसकी खोज में निकल पड़े और फिर फल-फूल देकर उससे माफी मांगने लगे।
इस साधु द्वारा जिस स्थान पर परशुराम कुंड को स्थापित किया वह 1950 तक अस्तित्व में था जब पुरानी जगह, पूर्वोत्तर में आए भयानक भूकंप में पूरी तरह बदल चुकी थी और कुंड भूकंप के मलबे से ढक चुका था। कुंड के वास्तविक स्थान से बहुत तेज़ धारा बहती है, लेकिन नदी की सतह पर मौजूद बड़े-बड़े पत्थर रहस्यमयी ढंग से यहाँ गोलाकार पड़े है जो पुरानी जगह पर एक और कुंड बनाते नज़र आते हैं।
ठहरने की सुविधा न होने की वजह से यहाँ आने वाले तीर्थयात्रियों को काफी कठिनाईयां झेलनी पड़ती है। उन्हें मंदिर के चारों तरफ ही रात गुजारनी पड़ती है। उत्तर प्रदेश जैसे दूर दराज की पहाड़ियों से आए साधु पवित्र स्नान के बाद भक्ति गीत गाते हुए दो रात कुंड में ही बिताते है।
लोगों का ऐसा विश्वास है कि मकर संक्रांति के अवसर परशुराम कुंड में एक डूबकी लगाने से सारे पाप कट जाते है। चाहे कोई कितना ही महापापी क्यों न हो लेकिन सच्चे मन से यदि कोई पश्चाताप की अग्नि में जलता हुआ इस कुंड में स्नान करता है तो उसके पाप धुल जाते हैं व उसका मन निर्मल हो जाता है। यही कारण है कि लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ इस कुंड में स्नान करने के लिये उमड़ती है। मकर संक्रांति पर तो यहां का नजारा वाकई देखने लायक होता है। इस समय यहां उमड़ने वाले जन सैलाब की तुलना महाकुंभ से की जाती है
समय के साथ यह स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों में भी लोकप्रिय हो गया। अब यह कुण्ड लोहित की पहचान बन चुका है। हजारों तीर्थयात्री प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति के दिन इस कुण्ड में स्नान करने आते हैं। अरूणाचल प्रदेश सरकार ने पर्यटकों की सुविधा के लिए अनेक सुविधाओं को उपलब्ध कराया है।
परशुराम कुंड कथा – Parshuram Kund Katha
एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी। लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई। अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेद कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तो उन्होंने तीन वरदान माँगे-
- माँ पुनर्जीवित हो जायँ,
- उन्हें मरने की स्मृति न रहे
- भाई चेतना-युक्त हो जायँ
और जमदग्नि ने उन्हें तीनो वरदान दे दिये। माता तो पुनः जीवित हो गई पर परशुराम पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया। मान्यता है की जिस फरसे से परशुराम जी ने अपनी माता की हत्या की थी वो फरसा उनके हाथ से चिपक गया था। तब उनके पिता ने कहा की तुम इसी अवस्था में अलग-अलग नदियों में जाकर स्नान करो , जहाँ तुम्हें अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी वही यह फरसा हाथ से अलग हो जाएगा। पिता की आज्ञा अनुसार उस फरसे को लिए-लिए परशुराम जी ने सम्पूर्ण भारत के देवस्थानों का भ्रमण किया पर कही भी उस फरसे से मुक्ति नहीं मिली। पर जब परशुराम जी ने आकर लोहित स्तिथ इस कुण्ड में स्नान किया तो वो फरसा हाथ से अलग होकर इसी कुण्ड में गिर गया। इस प्रकार भगवन परशुराम अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्त हुए और इस कुण्ड का नाम परशुराम कुण्ड पड़ा।
परशुराम कुंड कैसे पहुचे – How To Reach Parshuram Kund
अब तक मौजूद तथ्यों से साफ है कि सदियों से इस कुंड में आने के लिए तीर्थयात्रियों का मार्ग खुला था लेकिन 1826 में ब्रिटिश प्रशासन के कब्ज़े में आने के बाद इस इलाके में इनर लाइन नियम लागू किया गया। अभी भी अगर आपको परशुराम कुंड जाना हो तो इनर लाइन चेकपोस्ट पार करने के लिए परमिट लेनी पड़ती है।
मकर संक्रांति के मौके पर लोहित जिले के उपायुक्त तीर्थयात्रियों के लिए परमिट जारी करते है। इसी समय दिराक और सुनपुरा चेकपोस्ट में भी परमिट जारी करने की व्यवस्था की जाती है। परशुराम कुंड तिनसुकिया जिले से 165 किलोमीटर दूर है। तेजू से होते हुए यहाँ पहुँचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन 97 किलोमीटर दूर है। असम और अरुणाचल प्रदेश का राज्य परिवहन विभाग तिनसुकिया से नामसाई, वाक्रो और तेजू तक बस की व्यवस्था करता है।