मकर संक्रांति त्यौहार का महत्व और पूजा विधि – Celebration of Makar Sankranti

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Makar Sankranti in Hindi – मकर संक्रान्ति

Makar Sankranti Kab Hai – हिंदी कैलेंडर के पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तो उस दिन मकर संक्राति का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार देशभर के अलग अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे- उत्तराखंड में उत्तरायणी,कर्नाटक में संक्रांति, तमिलनाडु-केरल में पोंगल, पंजाब-हरियाणा में माघी, गुजरात-राजस्थान में उत्तरायण तो वहीं उत्तर प्रदेश-बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। वहीं पंजाब में इस पर्व को लोहड़ी के नाम से सक्रांति के एक दिन पहले ही मना लिया जाता है।

पंडितों व जानकारों का कहना है कि पुराणों के अनुसार इस दिन तीर्थ या गंगा में स्नान और दान करने से पुण्य व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा संक्रांति पर्व पर पितरों का ध्यान करना चाहिए और उनके निमित्त तर्पण जरूर करना चाहिए। इस द‍िन ख‍िचड़ी का भोग लगाया जाता है, साथ ही कई जगहों पर पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए ख‍िचड़ी का दान भी किया जाता है। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का प्रसाद भी बांटा जाता है। वहीं कई जगहों पर पतंगें उड़ाने की भी परंपरा है। माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा पाठ का भी विशेष महत्व है।

दरअसल सनातन हिंदू धर्म में मकर संक्रांति एक प्रमुख पर्व है। भारत के विभिन्न इलाकों में इस त्यौहार को स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है। हर वर्ष सामान्यत: मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है। इस बार भी मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जानी है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।

ज्यादातर हिंदू त्यौहारों की गणना चंद्रमा पर आधारित पंचांग के द्वारा की जाती है, लेकिन मकर संक्रांति पर्व सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।

आइए जानते हैं मकर संक्रांति का कारण, मकर संक्रांति का व्रत और पूजा की विधि साथ ही मकर संक्रांति की पौराणिक कथा और महत्व…

मकर संक्रांति – Makar Sankranti in Hindi

सूर्य देव के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को ही संक्रांति कहते हैं। एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है, हालांकि कुल 12 सूर्य संक्रांति होती हैं, परंतु इनमें से मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति प्रमुख महत्व रखते हैं।

इसलिए मनाई जाती है मकर संक्रांति – Makar Sankranti

शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं, अर्थात् सूर्य देव जब बृहस्पति की राशि धनु से शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है, इसलिए इस पर्व को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्‍योंकि इस वक्त सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है और उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है।

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास कहलाता है। खरमास में किसी भी अच्छे काम को नहीं किया जाता। 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। इस दिन इलाहाबाद में गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम पर माघ मेला लगता है। यहां स्नान करने का बड़ा महत्त्व है.,माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है।

भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही नजरिये से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है। लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।

वहीं एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।

महाभारत कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था। कहा जाता है कि आज ही के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान का विशेष महत्व माना गया है ।

कैसे मनाये मकर सक्रांति

इस दिन गंगा या किसी नदी में जाकर स्नान करना शुभ माना जाता है। अगर ऐसा संभव नहीं है तो प्रातःकाल उबटन आदि लगाकर गंगा जल से मिश्रित जल से स्नान करें। यदि गंगा जल उपलब्ध न हो तो दूध, दही से स्नान करें। स्नान के उपरांत नित्य कर्म तथा अपने आराध्य देव की आराधना करें। तत्पश्चात भगवान सूर्य को अर्घ्य जरूर दें और सूर्य मंत्र का जाप करें। संतान प्राप्ति और रोजगार इच्छुक व्यक्ति सूर्य का इस खखोल्क मंत्र नमः खखोल्काय’ का जाप करे तो आश्चर्यजनक फल मिलता है । सूर्य पूजा करते समय श्वेतार्क तथा रक्त रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है। इसके साथ ही ध्यान रखें कि आप शाम के समय यानी सूरज ढलने के बाद इस दिन भोजन ना करें। और मात्र सक्रांति ही नहीं सभी पुण्यकाल में दांत मांजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष का काटना, गाय, भैंस का दूध निकालना व मैथुन काम विषयक कार्य कदापि नहीं करना चाहिए।

मकर संक्रांति पर दान

मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना दान अवश्य करना चाहिए। आइए जानें, राशि अनुसार मकर संक्रांति पर क्या दान करें कि घर में शुभता और मांगल्य आने लगे।

  • मेष : गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान दें।
  • वृषभ : सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान दें।
  • मिथुन : मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान दें।
  • कर्क : चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान दें।
  • सिंह : तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान दें।
  • कन्या : खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान दें।
  • तुला : सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान दें।
  • वृश्चिक : मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान दें।
  • धनु : पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान दें।
  • मकर : काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान दें।
  • कुंभ : काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान दें।
  • मीन : रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान दें।

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