जप ध्यान योग – Japa Meditation
Japa Yoga : मन को केंद्रित करने, आंतरिक आत्म और युद्ध के तनाव से जुड़ने के लिए ध्यान (Meditation in Hindi) एक शक्तिशाली और प्रभावी तरीका माना जाता है | योग साधना (Yog Sadhna) में जप योग अपना विशिष्ट स्थान रखता है। अधिकतर धर्मो व मठो के लोग माला लिए किसी न किसी मंत्र का जप (Mantra Japa) करते मिलते हैं। जप व ध्यान की समान्वित विधि (अर्थात दोनों एक साथ) मानवीय चेतना को विकार रहित बनाकर ऊचांर्इयों तक सरलता पूर्वक ले जाती हैं। इस प्रक्रिया में ध्यान अपने आराध्य के पूर्ण चित्र या शरीर के किसी विशेष भाग पर अथवा मंत्र के अर्थ या शब्दों पर किया जाता है।
मंत्र का अर्थ है मनन करने से त्राण दिलाने वाला, अर्थात जिसके मनन से दुख, कष्ट क्लेश से व्यक्ति मुक्त हो उसे मंत्र कहा जाता हैं। शास्त्र कहते है कि शब्द में बहुत शक्ति होती है और मंत्र स्वर की लहरियाँ सम्पूर्ण आकाश मण्डल में प्रवाहित होकर साधक के तीनों शरीरों (स्थूल, सूक्ष्म, व कारण) पर प्रभाव डालती है।
या कह सकते है की शरीर को साफ रखने के लिए नित्य नहाना जरूरी है, उसी प्रकार कपड़े नित्य धोने आवश्यक हैं, घर की सफार्इ नित्य की जाती है। उसी प्रकार मन पर भी नित्य वातावरण में उड़ती-फिरती दुष्प्रवृतितयों की छाप पड़ती है, उस मलीनता को धोने के लिए नित्य “जप-उपासना” करनी आवश्यक है। ‘जप’ के द्वारा ”र्इश्वर” को स्मृति-पटल पर अंकित किया जाता है। ‘जप’ के आधार पर ही किसी सत्ता का ‘बोध’ और ‘स्मरण’ हमें होता है। स्मरण से आह्वान, आह्वान से स्थापना और स्थापना से उपलब्धि का क्रम चल पड़ता है। ये क्रम लर्निग-रिटेन्शन-रीकाल-रीकाग्नीशन के रूप में मनौवेज्ञानिकों द्वारा भी समर्थित है।
जप योग (Japa Meditation) करने से जो घर्षण प्रक्रिया गतिशील होती है, वो ‘सूक्ष्म शरीर’ में उत्तेजना पैदा करती है और इसकी गर्मी से अन्तर्जत नये जागरण का अनुभव करता है। जो जप कर्ता के शरीर एवं मन में विभिन्न प्रकार की हलचलें उत्पन्न करता है तथा अनन्त आकाश में उड़कर सूक्ष्म वातावरण को प्रभावित करता है
जप योग (japa yoga meditation) जिसमे मंत्रो और जाप की ऊर्जा की मदद मिलती है जिससे आप शांत मन से अपने विचारो पर फोकस कर सकते है. यह ध्यान किसी भी धर्म का पालन करने वाले लोगों तक ही सीमित नहीं है | हालांकि, विभिन्न धार्मिक श्रद्धालुओं के लोग ध्यान के इस रूप को अभ्यास करने के लिए अपने स्वयं के मंत्र चुनते हैं.
जप के तीन प्रकार होते हैं – Types of Japa Meditation
(1) वाचिक जप – वह होता है जिसमें मन्त्र का स्पष्ट उच्चारण किया जाता है।
(2) उपांशु जप – वह होता है जिसमें थोड़े बहुत जीभ व होंठ हिलते हैं, उनकी ध्वनि फुसफुसाने जैसी प्रतीत होती है।
(3) मानस जप – इस जप में होंठ या जीभ नहीं हिलते, अपितु मन ही मन मन्त्र का जाप होता है।
‘जप साधना’ की हम इन्हें तीन सीढि़यां भी कह सकते हैं। नया साधक ‘वाचिक जप’ से प्रारम्भ करता है, तो धीरे-धीरे ‘उपांशु जप’ होने लगता है, ‘उपांशु जप’ के सिद्ध होने की स्थिति में ‘मानस जप’ अनवरत स्वमेव चलता रहता है। जप जितना किया जा सकें उतना अच्छा है, परन्तु कम से कम एक माला (108 मन्त्र) नित्य जपने ही चाहिए। जितना अधिक जप कर सकें उतना अच्छा है।
किसी योग्य सदाचारी, साधक व्यक्ति को गुरू बनाना चाहिए, जो साधना मार्ग में आने वाली विध्न-बाधाओं को दूर करता रहें व साधना में भटकने पर सही मार्ग दिखा सकें। यदि कोर्इ गुरू नहीं है तो ”कृपा करो गुरूदेव की नायी” वाली उक्ति मानकर ”हनुमान” जी को ‘गुरू’ मान लेना चाहिए।
जप ध्यान कैसे करे – How to do Japa Meditation
आप दिन के किसी भी समय जप ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं हालांकि सुबह का समय एक आदर्श समय माना जाता है.इसका दो तरीकों से अभ्यास किया जा सकता है |
सुनाई देने योग्य जप ध्यान
इसे वैखरी जप भी कहा जाता है, यह ध्यान का ऐसा रूप है जिसमें ताल या मंत्र या भजन का पाठ शामिल है | कुछ ध्यानी मंत्रो को गुनगुनाते है |
मौन जप ध्यान
इसे मानसिक जप भी कहा जाता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जहां आपको इस तरीके से भजन का जप करना है जो सुनाई न दे सके. इस क्रिया का अनुसरण करना मुश्किल हो सकता है.
लेकिन जब आप मन को कण्ट्रोल कर लेते हैं, तो आप किसी भी बाहरिक बाधाओं से प्रभावित होने से बच सकते है.जप ध्यान के किसी भी रूप का अभ्यास करने के लिए, आप फर्श पर एक चटाई या आसन बिछा सकते है.फिर पीठ को सीधे रखते हुए फर्श पर क्रॉस लेग में बैठ जाए.इसे करने के लिए आप अपनी आवश्यकता अनुसार आधा घंटे या उससे ज्यादा समय के लिए ध्यान करना चुन सकते हैं.साथ ही आप समय की अवधि धीरे-धीरे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं.
जप ध्यान करने के जरुरी नियम – Rules For Japa Yoga Meditation
- विभिन्न प्रकार के मन्त्रों के लिए भिन्न-2 प्रकार की मालाओं द्वारा जप किये जाने का विधान है। गायत्री-मंत्र या अन्य कोर्इ भी सात्विक साधना के लिए तुलसी या चंदन की माला लेनी चाहिए। कमलगट्टे, हडिडयों व धतूरे आदि की माला तांत्रिक प्रयोग में प्रयुक्त होती हैं।
- जमीन पर बिना कुछ बिछाये साधना नहीं करनी चाहिए, इससे साधना काल में उत्पन्न होने वाली ‘विधुत’ जमीन में उतर जाती है। आसन पर बैठकर ही जप करना चाहिए। ‘कुश’ का बना आसन श्रेष्ठ है, सूती आसनों का भी प्रयोग कर सकते हैं। ऊनी, चर्म के बने आसन, तांत्रिक जपों के लिए प्रयोग किये जाते हैं।
- उस अवस्था में पालथी लगाकर बैठे, जिससे शरीर में तनाव उत्पन्न न हो, इसे ‘सुखासन’ भी कह सकते हैं। यदि लगातार एक स्थिति में न बैठा जा सकें, तो आसन (मुद्रा) बदल सकते हैं। परन्तु पैरों को फैलाकर जप नहीं करना चाहिए। वज्रासन, कमलासन या सिद्धासन में बैठकर भी साधना की जा सकती है, परन्तु गृहस्थ मार्ग पर चलने वाले साधक व्यक्तियों को ‘सिद्धासन’ में में ज्यादा देर तक नहीें बैठना चाहिए।
- प्रात:काल पूर्व की ओर तथा सायंकाल पश्चिम की ओर मुख करके जप करना चाहिए। “गायत्री मंत्र” उगते“सूर्य” के सम्मुख जपना सर्वश्रेष्ठ हैै। क्योंकि गायत्री जप, सविता (सूर्य) की साधना का ही मन्त्र है।
- एकांत में जप करते समय माला को खुले रूप में रख सकते हैं, जहां बहुत से व्यक्तियों की दृषिट पड़े। वहां ‘गोमुख’ में माला को डाल लेना चाहिए या कपड़े से ढक लेना चाहिए।
- माला जपते समय सुमेरू (माला के आरम्भ का बड़ा दाना) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। एक माला पूरी करके उसे ‘मस्तक व नेत्रों’ पर लगाना चाहिए तथा पीछे की ओर उल्टा ही वापस कर लेना चाहिए।
- जन्म एवं मृत्यु के सूतक हो जाने पर, माला से किया जाने वाला जप स्थगित कर देना चाहिए, केवल मानसिक जप मन ही मन चालूू रखा जा सकता हैं।
- जप के समय शरीर पर कम कपड़े पहनने चाहिये, यदि सर्दी का मौसम है तो कम्बल आदि ओढ़कर सर्दी से बच सकते हैं।
- जप के समय ध्यान लगाने के लिए जिस जप को कर रहे उनसे संबंधित देवी-देवता की तस्वीर रख सकते हैं, यदि र्इश्वर के ‘निराकार’ रूप की साधना करनी है, तो दीपक जला कर उसका ‘मानसिक ध्यान’ किया जा सकता है, दीपक को लगातार देख कर जप करने की क्रिया ‘दीपक त्राटक’ कहलाती है। इसे ज्यादा देर करने से आंखों पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है, अत: बार-बार दीपक देखकर, फिर आंखे बन्द करके उसका मानसिक ध्यान करते रहना चाहिए। सूर्य के प्रकाश का मानसिक ध्यान करके भी जप किया जा सकता है।
- माला को कनिषिठका व तर्जनी उगली से बिना स्पर्श किये जप करना चाहिये। कनिषिठका व तर्जनी से जप, तांत्रिक साधनाओं में किया जाता है।
- ब्रह्ममुहुर्त जप, ध्यान आदि के लिए श्रेष्ठ समय होता है, हम शाम को भी जप कर सकते हैं, परन्तु रात्रि-अर्धरात्रि में केवल तांत्रिक साधनाएं ही की जाती हैं।
- ‘गायत्री’ व महामृत्युंजय मन्त्र के जप प्रारम्भ में कठिन लगते हैं, परन्तु लगातार जप करने से जिव्हा इनकी अभ्यस्त हो जाती है और कठिन उच्चारण वाले मन्त्र भी सरल लगने लगते हैं।