सोऽहं मैडिटेशन : हृदय स्थित सूर्य-चक्र में विशुद्ध ब्रह्मतेज के दर्शन करने की विधि

सोऽहं मैडिटेशन – Soham Meditation

आत्मा के सूक्ष्म अन्तराल में अपने आप के सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान मौजूद है। वह अपनी स्थिति की घोषणा प्रत्येक क्षण करती रहती है ताकि बुद्धि भ्रमित न हो और अपने स्वरूप को न भूले। थोड़ा सा ध्यान देने पर आत्मा की इस घोषणा को हम स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। उस ध्वनि पर निरन्तर ध्यान दिया जाए तो उस घोषणा के करने वाले अमृत भण्डार आत्मा तक भी पहुँचा जा सकता है।

जब एक साँस लेते हैं तो वायु प्रवेश के साथ-साथ एक सूक्ष्म ध्वनि होती है जिसका शब्द ‘सो .ऽऽऽ…’ जैसा होता है। जितनी देर साँस भीतर ठहरती है अर्थात् स्वाभाविक कुम्भक होता है, उतनी देर आधे ‘अ ऽऽऽ’ की सी विराम ध्वनि होती है और जब साँस बाहर निकलती है तो ‘हं….’ जैसी ध्वनि निकलती है। इन तीनों ध्वनियों पर ध्यान केन्द्रित करने से अजपा-जाप की ‘सोऽहं’ साधना होने लगती है।

प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व नित्यकर्म से निपटकर पूर्व को मुख करके किसी शान्त स्थान पर बैठिए। मेरुदण्ड सीधा रहे। दोनों हाथों को समेटकर गोदी में रख लीजिए, नेत्र बन्द कर रखिये। जब नासिका द्वारा वायु भीतर प्रवेश करने लगे, तो सूक्ष्म कर्णेन्द्रिय को सजग करके ध्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए कि वायु के साथ-साथ ‘सो’ की सूक्ष्म ध्वनि हो रही है। इसी प्रकार जितनी देर साँस रुके ‘अ’ और वायु निकलते समय ‘हं’ की ध्वनि पर ध्यान केन्द्रित कीजिए। साथ ही हृदय स्थित सूर्य-चक्र के प्रकाश बिन्दु में आत्मा के तेजोमय स्फुल्लिंग की धारणा कीजिए। जब साँस भीतर जा रही हो और ‘सो’ की ध्वनि हो रही हो, तब अनुभव कीजिए कि यह तेज बिन्दु परमात्मा का प्रकाश है। ‘स’ अर्थात् परमात्मा, ‘ऽहम्’ अर्थात् मैं। जब वायु बाहर निकले और ‘हं’ की ध्वनि हो, तब उसी प्रकाश-बिन्दु में भावना कीजिए कि ‘यह मैं हूँ।’

‘अ’ की विराम भावना परिवर्तन के अवकाश का प्रतीक है। आरम्भ में उस हृदय चक्र स्थित बिन्दु को ‘सो’ ध्वनि के समय ब्रह्म माना जाता है और पीछे उसी की ‘हं’ धारणा में जीव भावना हो जाती है। इस भाव परिवर्तन के लिए ‘अ’ का अवकाश काल रखा गया है। इसी प्रकार जब ‘हं’ समाप्त हो जाए, वायु बाहर निकल जाए और नयी वायु प्रवेश करे, उस समय भी जीवभाव हटाकर उस तेज बिन्दु में ब्रह्मभाव बदलने का अवकाश मिल जाता है। यह दोनों ही अवकाश ‘अऽऽऽ’ के समान हैं, पर इनकी ध्वनि सुनाई नहीं देती। शब्द तो ‘सो’ ‘ऽहं’ का ही होता है।

सोहम का अर्थ – Soham Meaning

‘सो’ ब्रह्म का ही प्रतिबिम्ब है, ‘ऽ’ प्रकृति का प्रतिनिधि है, ‘हं’ जीव का प्रतीक है। ब्रह्म, प्रकृति और जीव का सम्मिलन इस अजपा-जाप में होता है। सोऽहं साधना में तीनों महाकारण एकत्रित हो जाते हैं, जिनके कारण आत्म-जागरण का स्वर्ण सुयोग एक साथ ही उपलब्ध होने लगता है।

‘सोऽहं’ साधना की उन्नति जैसे-जैसे होती जाती है, वैसे ही वैसे विज्ञानमय कोश का परिष्कार होता जाता है। आत्म-ज्ञान बढ़ता है और धीरे-धीरे आत्म-साक्षात्कार की स्थिति निकट आती चलती है। आगे चलकर साँस पर ध्यान जमाना छूट जाता है और केवल हृदय स्थित सूर्य-चक्र में विशुद्ध ब्रह्मतेज के ही दर्शन होते हैं। उस समय समाधि की सी अवस्था हो जाती है। हंसयोग की परिपक्वता से साधक ब्राह्मी स्थिति का अधिकारी हो जाता है।

स्वामी विवेकानन्द जी ने विज्ञानमय कोश की साधना के लिए ‘आत्मानुभूति’ की विधि बताई है। उनके अमेरिकन शिष्य रामाचरक ने इस विधि को ‘मेण्टल डेवलपमेण्ट’ नामक पुस्तक में विस्तारपूर्वक लिखा है।

सोहम मंत्र – सोऽहं ध्यान विधि और अभ्यास – So Ham Mantra

मै और मेरे का अभ्यास – soham meditation mp3 free download

Scroll to Top