श्री खाटू श्याम जी – श्याम बाबा – Shri Khatu Shyam Ji
श्री खाटू श्याम जिन्हें शीश का दानी के नाम से यह संसार पूजता है | खाटू श्याम महाभारत काल में पांडव महाबली भीम के पोत्र और घटोत्कच और माँ मोर्वी ( कामकटंकटा ) के पुत्र वीर बर्बरीक ने जब कुरुक्षेत्र के युद्ध में हारे का साथ देने का वादा किया अपनी माँ मोर्वी से, तब भगवन श्री कृष्णा ने वीर बर्बरीक से उनका शीश दान मांग लिया. वीर बर्बरीक ने ख़ुशी ख़ुशी अपना शीश भगवान श्री कृष्णा की दान में दे दिया, यदि भगवान कृष्ण यह बलिदान नही मांगते तो यह युद्ध कौरवों के द्वारा आसानी से जीता जाता |
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भगवान श्री कृष्णा इस महान शीश बलिदान से खुश होकर वीर बर्बरीक को यह वरदान दिया की यह संसार कलियुग में तुम्हे मेरे नाम “श्याम ” से घर घर में पुजेगा और तुम सबकी मनोकामना पूर्ण करोगे . तुम अपने दरबार खाटू में हारे के सहारे बनकर भक्तो की जीत दिलवाओगे |
श्री मोर्विनंदन श्री खाटूश्याम
जैसा की हम सभी जानते है, श्री बर्बरीक जी की माता कामकटंकटा, मूर दैत्य की पुत्री थी… पिता का नाम मूर होने से उनको “मोरवी” अर्थात “मूर की पुत्री” कहा जाता है… एवं स्कन्दपुराण मे जगह जगह पर श्री श्री बर्बरीक जी की माता कामकटंकटा को मोरवी नाम से भी संबोधित किया गया है |
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क्यों पुकारा जाता है खाटू श्याम जी को मोर्विनंदन श्याम
स्वयं भगवन श्री कृष्ण ने श्री बर्बरीक को “मोर्व्ये ” अर्थात “मोरवी के पुत्र” कह कर इस प्रकार संबोधित किया है , श्री कृष्ण उवाच-
वत्स ! मोर्व्ये ! ब्रूहि त्वं, सर्वं प्रच्छ, यदिच्छ्सी !
यथा घटोत्क्चो मह्यं सु प्रियश्च यथा भवान !! { स्कन्दपुराण, कौ. ख. ६१.१४}
भावार्थ: “तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा- पुत्र मोर्व्ये ! बोलो जो बात पूछना चाहते हो, सब पूछो… मुझे जिस प्रकार घटोत्कच प्यारा है उस भाँति तुम भी प्यारे हो !!”
इस प्रकार से स्कन्दपुराण में बार बार श्री श्यामदेव की माता का नाम “मोरवी” उलेखित हुआ है… इसीलिए उनकी माता श्री के सम्मान में ही श्री श्याम देव को “मोरवीनंदन” भी कहा जाता है | आज खाटू वाला श्याम अपने भक्तो की सभी मनोकामनाए पूर्ण करता है . देश विदेश से भक्त बाबा श्याम के दर्शन पाने खाटू धाम में आते है . श्री श्याम बाबा के धवजा निशान चढाते है |
खाटू श्याम के मुख्य नाम
- श्री शीश के दानी
- खाटू नरेश श्याम सरकार
- खाटू नाथ मोर्विनंदन लखदातार
- श्री खाटू वाले श्याम
खाटू श्याम परिवार
- माता : मोर्वी ( कामकटंकटा )
- पिता : घटोत्कच
- दादी : हिडिम्बा
- दादा : पांडव भीम
खाटू श्याम जी के प्रसिद्ध मुख्य नाम और जयकारे
वीर बर्बरीक ने जब भगवान श्री कृष्णा को अपना शीश दान में दिया तब इस बलिदान के लिए भगवान श्री कृष्णा ने वीर बर्बरीक के शीश को अमरत्व का वरदान दे कर उन्हें अपने नाम “श्याम ” से कलीकल (कलियुग) में घर घर पूजित होने का वरदान दे दिया . कलिवुग में बर्बरीक जी का शीश खट्वा नगरी (खाटू धाम ) से धरा से अवतरित हुआ . अत: इन्हे खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है
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2) मोर्विनंदन श्याम
महर्षि वेद व्यास जी जिन्होंने महाभारत की रचना की थी , उन्ही के द्वारा लिखी गयी स्कन्द्पुराण में बताया गया है की वीर बर्बरीक की माता मोर्वी (कामनकंता ) और पिताश्री महाबली भीम थे
अत: माँ मोर्वी के लाल को मोर्विनंदन श्री श्याम से भी पुकारा जाता है .
3) शीश के दानी
शीश दान करने के बाद इन्हे शीश के दानी के नाम से भी जाना जाता है |
४) लखदातार
लक – भाग्य दातार -देने वाला अत: भाग्य को चमकाने वाला खाटू श्याम हमारा | भरपूर देने वाला | खाली झोली भरने वाला भाग्य जाने वाला .
५) लीले का अश्वार
बर्बरीक के नीले घोड़े जिसका नाम था लीला उनपे सवार होने के कारण इनके लीले का अश्वार भी कहा जाता है.
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६) तीन बाण धारी
वीर बर्बरीक जी के पास 3 ऐशे बाण थे जिस से वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को जीत सकते थे . इसमे कोई शंका नही की उन जेसा धनुर्धर न हुआ था न ही कोई होगा.श्री कृष्णा ने इसी वजह से उनका शीश दान में लेकर उन्हें युद्ध से वंचित रख दिया था
7 ) हारे का सहारा
खाटू श्याम जी कलियुग देव को हारे के सहारे के नाम से भी जाना जाता है क्योकि जब भक्त हर दर पर अपने आप को खाली हाथ पाता है तब खाटू श्याम जी मंदिरमें उसकी पुकार सुनी जाता है, और भक्त यही गुनगुनाता है – मैं भी जग से हार के आया , थाम ले मेरा हाथ
जय हो श्याम खाटू नरेश की
जय जय मोर्विनंदन
जय जय श्री श्याम
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