कामेश्वर धाम – यहां शिव के तीसरे नेत्र से भस्म हो गए थे कामदेव

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कामेश्वर धाम यात्रा  – Kameshwar Dham Yatra

शिव पुराण में एक कथा का वर्णन मिलता है, जिसमें भगवान शिव कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जलाकर भस्म कर देते हैं। वह पौराणिक जगह आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है। दूर-दूर से भोले के भक्त इस मंदिर में माथा टेकने आते हैं। सावन में और कांवड़ के दौरान तो यहां शिव के नाम गूंज रहती है। जानिए, कहां है यह पौराणिक स्थल और क्यों किया था शिवजी ने कामदेव को भस्म ?

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यहां स्थित है कामेश्वर धाम – Kameshwar Temple

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित कामेश्वर धाम, वह स्थान है जहां, शिवजी ने कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया था। इसी कारण इस जगह का नाम कामेश्वर धाम पड़ा। आज भी यह स्थान भक्तों की आस्था का केंद्र है और दूर-दूर से भक्त यहां शीश नवाने आते हैं।

क्यों जलाया था कामदेव को शिवजी ने – Kameshwar Mahadev Mandir Story

माता सती अपने तपोबल से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह रचाती हैं। लेकिन उनके पिता राजा दक्ष प्रजापित भगवान शिव को अघोरी समझते हैं और उनका सम्मान नहीं करते। इसी कारण जब दक्ष प्रजापति महायज्ञ का आयोजन करते हैं तो सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण देते हैं लेकिन शिवजी को नहीं।

क्रोधित हो जाते हैं शिव

इससे नाराज माता सती यज्ञ के हवनकुंड में कूदकर आत्मदाह कर लेती हैं। सती के आत्मदाह से शिव क्रोधित हो जाते हैं और उनके अधजले शरीर को भुजाओं में उठाकर संपूर्ण ब्रह्मांड में तांडव करते हैं। इस पर भगवान विष्णु अपने सुर्दशन से सती के शरीर के टुकड़े कर शिव को शांत करने का प्रयास करते हैं। सती के शरीर के अंगों से ही 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ है।

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सभी देवता करते हैं शिव से विनती

माता सती के शरीर के नष्ट हो जाने पर विष्णुजी सहित सभी देवता शिवजी से शांत होने की विनती करते हैं। इस पर शिव परमशांति की प्राप्ति के लिए गंगा और तमसा नदी के संगम पर समाधि ले लेते हैं। उधर राक्षस तारकासुर ब्रह्माजी की तपस्या कर उनसे वर मांग लेता है कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र ही कर सकता है। वरदान मिलते ही वह स्वर्ग पर आधिपत्य का प्रयास करने लगता है और सभी देवताओं को हानि पहुंचाने लगता है।

देवता करते हैं शिवजी की तपस्या भंग 

ऐसे में सभी देवता कामदेव को अपना सेनापति नियुक्त करके भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करते हैं। कामदेव तपस्या में लीन शिव के ऊपर पुष्प वाण चलाते हैं। इससे शिवजी की तपस्या भंग हो जाती हैं और क्रोध के कारण उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है, जिससे आम के वृक्ष के पीछे छिपे कामदेव जलकर भस्म हो जाते हैं।

आज भी है साक्ष्य

 

शिव पुराण में वर्णित इस कथा के साक्ष्य के तौर पर हम आज भी कामेश्वर धाम में वह आम का आधा जला हुआ पेड़ देख सकते हैं, जिसके पीछे कामदेव छिपे थे और जलकर भस्म हो गए थे। एक अजेय वृक्ष की तरह यह पेड़ आज भी खड़ा है। कालांतर में कई राजाओं और मुनियों की तपस्थली रहा है यह कामेश्वर धाम। बाल्मिकी रामायण के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ यहां आए थे।

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