माला जपने के फायदे
माला छोटे-छोटे दानों अथवा मनकों की होती है जो ब्रह्मगाँठ द्वारा एक-दूसरे से अलग रहते हैं। माला के मनके सूत के धागे में पिरोये रहते है। सामान्यतः इनको संख्या १०८ होती है। ५४ तथा २७ दानों की मालाओं का भी व्यापक रूप से उपयोग होता है।
प्रत्येक माला में एक अतिरिक्त मनका होता है, जो अन्य मनकों से अलग होता है और धागे के दोनों छोरों की जोड़ पर पिरोया रहता है। इसे सुमेरु कहते हैं। माला के मध्य में सुमेरु का प्रयोजन जपकर्ता को यह याद दिलाना होता है कि उसने माला जपते हुवे मंत्र की १०८ आवृत्तियां पूरी कर ली हैं। जप की विभिन्न शैलियों में माला को अनिवार्य मन गया है। वह साधक की चेतना को जप पर टिकाए रखने का एक सशक्त साधन है।
माला के प्रकार
माला के मनके सामान्यतः तुलसी, चंदन, रुद्राक्ष अथवा स्फटिक के होते हैं। जप में तुलसी माला का उपयोग व्यापक रूप से होता है, क्योंकि तुलसी का पौधा अत्यन्त पवित्र माना जाता है। इसमें आध्यात्मिक तथा उपचारात्मक गुण पाये जाते हैं। तुलसी का हमारे मन पर शामक एवं भावनाओं पर बड़ा शुद्धिकारक प्रभाव पड़ता है। विष्णु के उपासक प्रायः तुलसी माला ही उपयोग में लाते हैं, क्योंकि तुलसी विष्णु की प्रिय पत्नी लक्ष्मी का अवतार मानी जाती है।
चन्दन की माला में भीनी-भीनी सुगन्ध होती है, उसमें शान्तिदायक एवं सुरक्षात्मक स्पन्दन होते हैं । इसका प्रभाव शीतल होता है तथा विभिन्न चर्म रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए चन्दन की माला लाभदायक होती है। रुद्राक्ष एक जंगली फल की गुठली है। जप-ध्यान में रुद्राक्ष की माला बड़ी प्रभाव शाली होती है और शिव के उपासक इसे धारण करते हैं। रुद्राक्ष का चुम्बकीय गुण रक्त प्रवाह को प्रभावित करता है तथा हृदय को शक्ति प्रदान करता है। अतएव उच्च रक्तचाप के रोगी रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं। स्फटिक माला में शक्तिशाली आध्यात्मिक गुण पाये जाते हैं। देवी के उपासक इसका उपयोग करते हैं ।
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माला का उपयोग विभिन्न धर्मो में
न केवल मंत्र तथा योग के साधक माला का उपयोग करते हैं बल्कि बौद्ध धर्म की महायान शाखा के सर्मथक भी जप के लिए व्यापक रूप से माला का उपयोग करते हैं। उनकी माला में १०८ मनकों के अतिरिक्त तीन और मनके होते हैं जो “बुद्ध शरणं गच्छामि” “धम्मं शरणं गच्छामि” तथा “संघ शरणं गच्छामि ” तीन महावाक्यों के प्रतीक होते हैं। रोमन कैथालिक सम्प्रदाय के लोग ५४ मनकों की माला का उपयोग करते हैं। युनान तथा बाल्कन देशों में जहां ग्रोक आर्थोडॉक्स चर्च का प्रभाव है, सभी लोग जहाँ कहीं जाते हैं अपने साथ माला रखते हैं तथा जैसे ही समय मिलता है, उस पर जप करते हैं। माला के बिना उनकी पोशाक अधूरी मानी जाती है।
मंत्र जपने के लिए माला क्यों है जरूरी
माला जपने के फायदे – अनेक लोग यही नहीं समझ पाते कि जप के लिए माला का उपयोग क्यों किया जाता है। यदि उन्हें माला का उपयोग करना भी पड़ जाये, तो भी वे इसे बहुत कम महत्व देते हैं। अतः माला के महत्व को समझा जाना चाहिये। मन का यह स्वभाव है कि वह एक मिनट के लिए भी स्थिर नहीं हो पाता, इसलिए किसी ऐसे माध्यम की आवश्यकता अनुभव की जाती है, जिससे हमें यह पता चले कि हम कब सचेत रहते हैं और कब हमारा मन भटकने लगता है। जप में यही जानने का माध्यम माला होती है। इससे हमें यह पता चलता है कि कब हम लक्ष्य से भटक गये, तथा कब उसके प्रति सजग रहे । माला से यह भी पता चलता है कि हमने मंत्र की कितनी आवृत्तियां पूरी कर ली हैं ।
साधक जप का अभ्यास सुमेरु से प्रारंभ करता है और लयबद्ध रूप से मंत्र की प्रत्येक आवृत्ति के साथ एक-एक मनका तब तक सरकाता जाता है, जब तक कि पुनः सुमेरु तक नहीं आ जाता ।
जप की एक अवस्था में मन शान्त तथा स्थिर होने लगता है तब उँगलियां अपना काम बंद कर देती है। क्षण भर के लिए वे गतिहीन हो जाती है और साधक असजग-सा हो जाता है। कभी-कभी तो उसके हाथ से माला ही गिर जाती है। ऐसी अवस्था आने पर साधक को समझना चाहिये कि वह अपने जप के लक्ष्य से भटक गया है या सजगता खो बैठा है। यदि जप में आप माला का प्रयोग न करें, तो यह कैसे जानेंगे कि आप क्या अनुभव कर रहे हैं।
माला ही जप की निरंतरता का बोध कराती है तथा आपकी चेतना के बदलते रूपों की जानकारी देती है। यदि आप मंत्र के साथ माला के मनके बराबर सरकाते हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि आप सजगतापूर्वक जप कर रहे हैं। जब जप के साथ मन एकाग्र होने लगता है, तो माला अपने आप सहज रूप में सरकती रहती है। यह आवश्यक नहीं कि जप के लिये माला की अनिवार्यता को आपका मन तथा बुद्धि स्वीकार करें, परन्तु इतना तो मानना ही पड़ेगा कि सफलतापूर्वक जप के लिए तथा उसमें मन लगाये रखने के लिए माला एक अत्यन्त उपयोगी साधन है।
माला में 108 मनके ही क्यों होते हैं
माला में 108 मनके ही क्यों होते हैं, इसे समझना भी आवश्यक है। शास्त्रों में अनेक तरह से इसे समझाया गया है। यहाँ हम शास्त्रों से ही एक-दो उदाहरण लेकर इसे समझने का प्रयास करेंगे। “1” सर्वोच्च चेतना का प्रतीक है, “0” ब्रम्हाण्ड का या यों कहें कि समस्त सृष्टि का प्रतीक है, तथा “8” प्रकृति के आठ रूपों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्व तथा मन, बुद्धि और अहंकार का प्रतीक है। कुछ विद्वान् माला के 108 मनकों को कालीद्वारा पहनी जाने वाली 108 नरमुंडों की माला का प्रतीक मानते हैं। 108 मनके व्यक्ति चेतना के 108 जन्मों के प्रतीक भी माने जाते हैं, क्योंकि इतने जन्मों के बाद व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार की उपलब्धि हो जाती है।
इसी प्रकार 27, 54, तथा 1001 मनकों के बारे में भी विभिन्न तर्क दिये जाते हैं, परन्तु वस्तुतः इन संख्याओं का आध्यात्मिक स्तर पर बड़ा महत्व है। ये संख्याएँ पवित्र मानी जाती है, क्योंकि ये साधक के मन को ऐसी शान्त तथा स्थिर अवस्था प्रदान करती हैं, जो जप में सहायक होती हैं। इन संख्याओं को प्राचीन ऋषि-मुनियों ने भी शुभ तथा उपयुक्त पाया था।
माला में 108 मनकों के अतिरिक्त एक सुमेरु पिरोया रहता है। यह सुषुम्ना का प्रतीक है। इसे बिन्दु भी कहते हैं। माला के 108 मनके चेतना की बिन्दु तक एवं उससे वापसी की यात्रा के बीच 108 पड़ावों के प्रतीक माने जाते हैं। बिन्दु मन के विस्तार की अन्तिम सीमा है।
माला जपने का सही तरीका
माला को पकड़ने तथा घुमाने की एक खास विधि होती है। माला दाहिने हाथ में पकड़ते हैं। अंगूठे तथा चौथी उँगली को मिलाकर उस पर माला लटकाते हैं। माला घुमाने में अंगूठे की कोई भूमिका नहीं होती । तर्जुनी तथा कनिष्ठा से माला का स्पर्श नहीं किया जाता। केवल मध्यमा से ही मनके सरकाये जाते हैं।
जप के समय के समय माला के सुमेरु को पार नहीं किया जाता। सुमेरु से जप प्रारम्भ करते हैं तथा पुनः सुमेरु तक पहुंचने के बाद माला को पलट देते हैं। माला हमेशा हथेली की ओर सरकायी जाती है ।
सामान्य परम्परा यह है कि जप के समय माला दाहिने हाथ में हृदय के पास पकड़ी जाती है। इस स्थिति में आप जप को हृदय की धड़कन से संयुक्त कर सकते हैं। इस स्थिति में जप करने से मंत्र की गहरो अनुभूति होती है। बायाँ हाथ जांघों पर इस तरह रखते हूँ कि खुली हथेली छत की ओर रहती है। इससे माला के निचले हिस्से को थामा जा सकता है, ताकि वह उलझे नहीं। आप चाहें तो माला सहित दाहिने हाथ को दाहिने घुटने पर भी रख सकते हैं। इस स्थिति में माला जमीन पर रहती है।
आप माला की संख्या मानसिक रूप से याद रख सकते हैं अथवा उसकी गिनती बायें हाथ की कनिष्ठा पर बने तीन पोरों पर एक के बाद एक अंगुठा सरका कर भी कर सकते हैं। चौथी माला की गिनती अनामिका के पोरों पर अंगूठे को रखकर कर सकते है। इस प्रकार बारह मालाओं की गिनती चार उँगलियों पर बने बारह पोरों पर की जा सकती है।
माला जपने के नियम
जप की माला गले में नहीं पहननी चाहिये। जप के बाद उसे एक थैली में रखना चाहिये । इससे माला के स्पन्दनों पर किसी भी प्रकार का बाहरी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। अपनी जप माला अन्य व्यक्ति को जप के लिए कभी न दें। यहाँ तक कहा गया है कि उस पर किसो दूसरे की दृष्टि भो न पड़ने दें। सजावट की मालाए जप की गंभीर साधना के लिए उपयुक्त नहीं मानी जातीं ।
दैनिक जप में प्रयुक्त माला कुछ समय बाद मंत्र की सशक्त तरंगों से आवेशित हो जाती है। कुछ समय के अभ्यास के बाद जब भी आप अपनी माला हाथ में लेंगे, आपका मन शान्त, स्थिर, नीरव तथा जप के लिए तत्पर हो जायेगा एवं आपके समूचे शरीर के सभी भाव परिवर्तित हो जायेंगे ।
यदि आप प्रतिदिन अधिक संख्या में जप करते हैं, तो माला सहित हाथ को हृदय के पास रखने से हाथ में दर्द होने लग सकता है। ऐसी स्थिति में हाथ को किसी सहारे की आवश्यकता होती हैं। आप चाहें तो गले में माला की तरह का कोई कपड़ा या तौलिया बाँधकर उसमें हाथ को लटका सकते हैं।
गोमुखी का उपयोग
अधिक संख्या में जप करने वाले साधकों को गोमुखी के उपयोग की सलाह दी जाती है। देखने में यह थैली गाय के मुख जैसी लगती है। इसीलिए इसे गोमुखी कहते हैं। यह एक थैली होती है। दाहिना हाथ तथा माला इसके भीतर रखते हैं, ताकि माला बाहर से देखी न जा सके। अनुष्ठान में गोमुखी बहुत सहायक सिद्ध होती है ।