कुक्के सुब्रमण्या मंदिर – Kukke Subramanya Temple
भारत के प्राचीन तीर्थ स्थानों में से एक कुक्के सुब्रमण्या मंदिर, (Kukke Subramanya Temple Yatra) कर्नाटक राज्य के दक्षिणा कन्नड़ जिले मैंगलोर के पास के सुल्लिया तालुक के सुब्रमण्या के एक छोटे से गांव में स्थित है | यहां भगवान सुब्रमण्या को पूजा जाता है, भगवान् शिव के पुत्र भगवान् कार्तिकेय को कई नामो से जाना जाता है जैसे स्कन्द, कुमार, सुब्रमण्य, मुरुगन आदि। जिनकी कुंडली में कालसर्प दोष विद्यमान होता है उनको भगवान् कार्तिकेय के कर्नाटक स्थित इनके कुक्के सुब्रमण्या मंदिर जरूर जाना चाहिए। जो सभी नागों के स्वामी माने गए हैं | इस मंदिर के दर्शनों के लिए यहां भक्तों का तांता लगा रहता है सभी लोग यहां होने वाली पूजा में शामिल होने की चाह रखते हुए श्रद्धा भाव से इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं |
कुक्के सुब्रमण्या जी के विषय मे उल्लेख मिलते हैं काव्यों में यह संदर्भ आता है कि गरूड़ द्वारा डरने पर परमात्मा सर्प वासुकी और अन्य सर्प भगवान सुब्रमण्य के तहत सुरक्षा महसूस करते हैं| ऐसी अनेक कथाएं एवं मान्यताएं यहां मौजूद हैं जो भक्तों की अगाध श्रद्धा भक्ति को दर्शाती हैं भक्त यहां आकर अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण होता पाते हैं इस स्थान का आलौकिक दिव्य तेज सभी के भीतर भक्ति का संचार करता है |
कुक्के सुब्रमण्या मंदिर का इतिहास – Kukke Subramanya Temple History
अन्य सभी मंदिरों के अनुसार इस मंदिर की अपनी पौराणिक कथा है | पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस शासक थारका, शूरपदमसुर एवं इनके अनुयायियों का वध करने के उपरांत भगवान शनमुख अपने भाई गणेश एवं अपने प्रिय जानो के साथ कुमारा पर्वत पहुचे जहाँ इनका स्वागत भगवान इंद्र एवं इनके अनुयायियों के द्वारा किया गया | इनके यहाँ पहुचने पर इंद्र काफी प्रसन्न हुए एवं अपने बेटी से साईं करने के लिए कुमारा स्वामी से आग्रह करने लगे |
इनके इस प्रस्ताव को मान कर इनकी शादी कुमारा पर्वत पर हुई जिसमे भगवान ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र के साथ कई अन्य देवगण उपस्थित हुए | इस अवसर पर कुमारा स्वामी का राज्याभिषेक भी किया गया जिसके लिए कई पवित्र नदियों से जल इकठा किया गया था | सभी पवित्र नदियों के जल से महाभिषेक के क्रम जल के बहाव से नदी का निर्माण हुआ जिसे कुमारधारा नाम दिया गया | महान शिव भक्त एवं नागराज वासुकी गरुढ़ के हमले से बचने के लिए बिलादवारा गुफा में लम्बे समय से तपस्या कर रहे थे, भगवान शिव के आश्वासन के बाद, शंकुमा ने वासुकी को दर्शन दिया और उन्हें यह आशीर्वाद दिया कि वे इस स्थान पर अपने भक्त के साथ हमेशा के लिए निवास करेंगे |
कुक्के सुब्रमण्या मंदिर – Kukke Subramanya Temple
मंदिर में भगवान के पवित्र दर्शन के पहले यात्रियों को कुमारधारा नदी पार कर और उसमें एक पवित्र स्नान करना पड़ता है | मंदिर में भक्त पीछे के द्वार से प्रवेश करते हैं और मूर्ति के सामने जाने से पहले उसकी प्रदक्षिणा करते हैं| गर्भगृह और बरामदा प्रवेश द्वार के मध्य में गरूड़ स्तंभ है मौजूद होता है | माना जाता है कि इस स्तम्भ में वासुकी जी निवास करते हैं| इस स्तंभ को चांदी से ढका हुआ है| माना जाता है कि इस स्तंभ में निवास करने वाले वासुकी जी की सांसों उत्पन्न जहर के अग्नि प्रवाह से भक्तों को बचाने के लिए ही इसे चाँदी एवं आभूषणों से मढ़ा गया है|
श्रद्धालु लोग स्तंभ के चारों ओर खड़े होकर पूजा करते हैं| इस स्तंभ के आगे एक बडा़ सा भवन आता है जो बाहरी भवन होता है और फिर एक अन्य भवन पश्चात भगवान श्री सुब्रमण्यम जी का गर्भगृह है| गर्भगृह के केंद्र में एक आसन स्थित है उस मंच पर श्री सुब्रमण्या की मूर्ति स्थापित है और फिर वासुकी की मूर्ति और कुछ ही नीचे शेषा की मूर्ति भी विराजमान हैं यहीं नित्य रुप से देव पूजा कि जाती है| जिसमें शामिल होने के लिए देश विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं|
सर्प दोष पूजा – Sarpa Dosha Pooja
यहाँ पर काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए एक विशेष पूजा की जाती है जिसे सर्प सम्सकारा/सर्पा दोषा पूजा के नाम से जाना जाता है | मान्यता अनुसार यदि कोई व्यक्ति सर्प दोष से पीडि़त हो या श्रापित हो तो इस दोषों से मुक्ति के लिए यहां पर कराई गई पूजा से उसे सर्प दोष से मुक्ति प्राप्त होती है | कर्नाटक और केरल में नाग देवता में पूर्ण आस्था होने के कारण इस पूजा का बहुत महत्व होता है |
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कुमार पर्वत जहाँ कार्तिकेय ने ली थी महासमाधि
इस मंदिर के पास ही “कुमार पर्वत” के नाम से एक पर्वत है जहाँ पर भगवान् कार्तिकेय यानी सुब्रमण्य ने समाधी ली थी। इसके पीछे एक कथा है कि जब भगवान् कार्तिकेय दक्षिण में असुरो से हजारो वर्षो युद्ध करते करते ऊब गए तब महर्षि अगस्त्य की कृपा से उन्हें वास्तविकता का ज्ञान हुआ और वे एक ऐसे स्थान की खोज में निकल पड़े जहाँ उन्हें शांति मिल सके। कार्तिकेय को आखिरकार सुब्रह्मण्य नामक जगह पर आराम मिला। उन्हें समझ आ गया था कि हजार सालों तक लड़ने के बाद भी इस तरह से दुनिया को बदला नहीं जा सकता। एक समाधान दस और समस्याएं पैदा कर देगा।
इसलिए उन्होंने सारी हिंसा छोड़ दी, और अंतिम बार, अपने तलवार को कर्नाटक के ‘घाटी सुब्रह्मण्य’ में साफ किया। उन्होंने कुछ समय तक वहां ध्यान किया। फिर पहाड़ पर चले गए, जिसे आज ‘कुमार पर्वत’ के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक में, सुब्रह्मण्य को कुमार के रूप में जाना जाता है। कुमार का मतलब है पुत्र। शिव मुख्य देवता हैं और कुमार पुत्र हैं, इसलिए उस पहाड़ को कुमार पर्वत के नाम से जाना जाता है। उन्होंने उसके शिखर पर खड़ी मुद्रा में महासमाधि ली।
योग परंपरा में, एक बार जब योगी अपने जीवन के काम को पूरा कर लेते हैं, तो वे अपनी इच्छा से शरीर को छोड़ देते हैं। यह आत्महत्या नहीं है, यह बस शरीर का त्याग है। ज्यादातर योगी बैठकर अपना शरीर छोड़ते हैं। यदि किसी वजह से शरीर इस बात की इजाजत नहीं देता, तो वे करवट के बल लेटते हुए ऐसा करते हैं। मगर चूंकि कार्तिकेय एक महान योद्धा थे, उन्होंने खड़े-खड़े अपना शरीर त्याग दिया।
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आम तौर पर, लोग कुक्के सुब्रह्मण्य के मंदिर में बस जाकर लौट आते हैं। परंतु इस कुमार पर्वत के दर्शन नहीं करते। यह पर्वत और पर्वतो से बिल्कुल अलग है। वह शिखर प्राकृतिक दृश्यों के लिहाज से बहुत खूबसूरत जगह है और चोटी तक पहुंचने के लिए 15-20 किलोमीटर पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है। इस पर्वत कि सबसे खास बात यह है कि उस जगह की ऊर्जा बेहद प्रबल और शक्तिशाली है। वह बिल्कुल एक अलग ही दुनिया है। अगर आप संवेदनशील हैं, तो वह आज भी आपको जड़ से हिला कर रख देता है। इस पर्वत शिखर पर, छोटे-छोटे कुदरती पत्थर हैं, जो सब छह चेहरों की तरह तराशे हुए हैं। इन पत्थरों को ‘शंमुख लिंग’ कहा जाता है।
इतने सालों से, उनकी ऊर्जा वहां स्पंदित हो रही है कि पत्थरों ने भी धीरे-धीरे खुद को छह चेहरों का आकार दे दिया है। इस पर्वत के शिखर पर चढ़ना हर एक व्यक्ति के बस की बात नहीं इस पर केवल वो ही चढ़ सकता है जिस पर भगवान् कार्तिकेय की विशेष कृपा हो, क्योकि कहा जाता है कि आज भी भगवान् कार्तिकेय की संपूर्ण ऊर्जा वहां विद्यमान है जिसको सहन करना संभव नहीं है। परंतु इसके दर्शन से उनकी कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
कुक्के सुब्रमण्या मंदिर दर्शन का समय – Kukke Subramanya Temple Timings
अगर आप इस स्थान का भ्रमण कर रहे हैं और इस मंदिर में पूजा करना चाहते है तो यह जानकारी आपके लिए काफी अहम् है | यह मंदिर श्रधालुओ के लिए सुबह 07:00 से 01:30 बजे तक एवं शाम को 03:30 से 08:00 बजे तक खुला रहता है |
कुक्के सुब्रमण्या मंदिर की पूजा का समय – Kukke Subramanya Temple pooja Timings
इसके अलावा मंदिर में प्रातः पूजा (गौव-पूजा) 05:30 से 06:00 के बीच संपन्न होता है | दिन की पूजा 10:00 am से 12:15 pm तक होती है जिसके बाद प्रसाद वितरण होता है और प्रसाद वितरण के उपरांत मंदिर के गर्भगृह को बंद कर दिया जाता है | इस मंदिर में प्रसाद दो समय वितरण होता है एक दिन में 01:30 से पहले एवं संध्या काल में 08:00 से पहले |
कुक्के सुब्रमण्या मंदिर की पूजा – Kukke Subramanya Temple Pooja
Sarpa Samskara: Rs. 1300.00 to Rs. 1800
Naga Prthista: Rs. 250.00
Ashlesha Bali: Rs. 400.00
Maha Pooja: Rs. 300.00
Others: Angapradakshina Namakarana Sesha Seva
(Except on Ekadashi days)
मंदिर परिसर के पास रहने की व्यवस्था – Accommodation Near Kukke Subramanya Temple
किसी भी पर्यटन क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण चीज ठहरने का होता है | यहाँ इस मंदिर प्रशासन के द्वारा दर्शको को ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था कर रखी है जिसके लिए आप इसके site https://www.kukke.org/en/home.aspx से जानकारी प्राप्त कर सकते है | किसी प्रकार की असुविधा के लिए आप इसके सहायता केंद्र या इसके कार्यालय में संपर्क कर सकते है |
कुक्के सुब्रमण्या मंदिर कैसे पहुचे – How to Reach Kukke Subramanya Temple
By Air – हवाई मार्ग से इस स्थान तक आने के लिए आप मंगलोर हवाई पतन का इस्तेमाल कर सकते है जो 120 km की दुरी पर स्थित है | यहाँ से आप अन्य सड़क परिवहन का इस्तेमाल कर सकते है |
By Train – इस मंदिर के नजदीक का स्टेशन Subrahmanya Road station है जो मंदिर से 12 km की दुरी पर स्थित है जो आसपास के बड़े शहरों को आपस में जोड़ता है |
By Bus – कर्नाटक सड़क परिवहन मंदिर से कई मुख्य शहरों को जोड़ता है जो हमे मंदिर तक बड़े आसानी पूर्वक पहुचने का कार्य करता है |
कुक्के सुब्रमण्य का मौसम – Kukke Subramanya Weather
- Kukke Subramanya in Winter (October – March)
- Kukke Subramanya in Monsoon (June – September)
- Kukke Subramanya in Summer (March – May)
कुक्के सुब्रमण्या की यात्रा का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Kukke Subramanya
कुक्के सुब्रमण्या की यात्रा करने का आदर्श समय सितंबर के दौरान सर्दियों का है। मार्च में भी कई लोग आते है क्युकी मौसम के साथ महीनों का धार्मिक महत्व भी है। कुछ लोग मानसून में भी यात्रा करते है। लेकिन गर्मियों से बचना चाहिए।
अगर आपके पास भी इस मंदिर से जुडी कोई अन्य जानकारी हो तो आप हमे कमेंट करके बता सकते है |