काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – Kashi Vishwanath Jyotirliga Temple

काशी विश्वनाथ मंदिर – Kashi Vishwanath Temple

वाराणसी में 12 ज्योतिर्लिंगों में से सात वे प्रमुख ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ के दरबार में आस्था का जन सैलाब उमड़ता है। यहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजते हैं। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।

देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव आराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।

काशी विश्वनाथ दर्शन Kashi Vishwanath Darshan

श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है। विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं – 1. शांति द्वार। 2. कला द्वार। 3. प्रतिष्ठा द्वार। 4. निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की 10 महाविद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है।

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मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदानी क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।

बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं। बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।

बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनकी बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं।

विश्वनाथ गली वराणासी – Vishwanath Gali Varanasi

वाराणसी में विश्वनाथ गली काशी विश्वनाथ मंदिर का रास्ता है। काशी विश्वनाथ मंदिर विश्वनाथ गली में स्थित है और जो मंदिर जाना चाहता है, वह विश्वनाथ गली से जा सकता है। विश्वनाथ गली वाराणसी की बहुत लोकप्रिय गली है और देवियों के कोने, पूजा के सामान और मिठाइयों के लिए प्रसिद्ध है। काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव के दर्शन पूरा करने के बाद भक्त विश्वनाथ गली में खरीदारी भी कर सकते हैं।

काशी विश्वनाथ मन्दिर का इतिहास – Kashi vishwanath temple history in hindi

काशी का मूल विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 17वीं शताब्दी में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे सुंदर स्वरूप प्रदान किया। कहा जाता है कि एक बार रानी अहिल्या बाई होलकर के स्वप्न में भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्त थीं। इसलिए उन्होंने 1777 में यह मंदिर निर्मित कराया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में मंदिर का शिखर सोने से मढ़वा दिया। तभी से इस मंदिर को गोल्डेन टेम्पल नाम से भी पुकारा जाता है। यह मंदिर बहुत बार ध्वस्त हुआ। आज जो मंदिर स्थित है उसका निर्माण चौथी बार हुआ है। 1585 ई. में बनारस से आए मशहूर व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में जब औरंगजेब का शासन काल तब भी इस मंदिर को बहुत हानि पहुँचाया गया।

काशी विश्वनाथ रुद्राभिषेक – Kashi Vishwanath Rudrabhishek

पुरोहित मंत्र का जप करते हुए, भक्त लगातार पानी डालकर अपने हाथों से लिंग की सफाई करते है। लगु रुद्राभिषेक में, गंगा और दूध नदी के जल से अभिषेक होता है। महा मृत्युंजय मंत्र को 11,111 बार बदला जाता है। भक्त को अंत में आरती का अवसर मिलता है। महा रुद्राभिषेक में, 11 पंडितों द्वारा लगातार 11 दिनों तक रुद्राभिषेक किया जाता है। अभिषेक जल, दूध और कमल के फूलों से किया जात और यह पूजा सुबह और शाम के समय भी की जाती है। भक्तों को पूजा सामग्री अपने साथ ले जाने की आवश्यकता होती है। दक्षिणा या भेंट अलग से लगती है। एक टिकट केवल एक परिवार के लिए मान्य है।

रुद्राभिषेक समय – Rudrabhishek Timings

सुबह 4:00 बजे – 11:15 बजे, दोपहर 12:20 – शाम 6:00 बजे

रुद्राभिषेक पूजा का खर्च – rudrabhishek puja cost

Pooja details Ticket Cost No. Of Pundit No.Of Days
Rudrabhishek Rs.150 1 1
Rudrabhishek Rs.400 5 1
Rudrabhishek Rs.700 11 1
Laghu Rudrabhishek Rs.1200 11 1
Maha Rudrabhishek Rs.10000 11 11

काशी विश्वनाथ मंदिर का समय  – Kashi Vishwanath Temple Timings

सामान्य दर्शन का समय सुबह 4 से रात11 बजे तक है।

काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन – Kashi Vishwanath Temple Darshan

मध्याह्न भोग आरती का समय 11.30 से 12 बजे तक है। दोपहर 12 बजे से 7 बजे के बीच, सामान्य श्रद्धालु दर्शन के लिए स्वतंत्र हैं। 7 से 8.30 P.M 7 से 8.30 P.M सप्त ऋषि आरती होती है जिसके बाद 9 :00 P.M तक दर्शन संभव है। 9:00 बजे शृंगार / भोग आरती शुरू होती है और उसके बाद दर्शन केवल बाहर से ही संभव है। शयन आरती रात 10.30 बजे शुरू होती है। और मंदिर रात 11 बजे बंद हो जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर में अधिकांश प्रसाद गरीबों को दिया जाता है।

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कैसे पहुंचें काशी विश्वनाथ मंदिर – How To reach Kashi Vishwanath Temple

देश के अन्य प्रमुख शहरों से वाराणसी के लिए नियमित फ्लाइट्स हैं। वारणसी नियमित ट्रेनों के माध्यम से भी देश के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप आसानी से देश के अन्य प्रमुख शहरों से वाराणसी के लिए नियमित बसें भी प्राप्त कर सकते हैं।

  • Airport : Varanasi Airport (VNS)
  • Railway Station : Varanasi Junction (BSB), Manduadih (MUV), Varanasi City (BCY), Bhulanpur (BHLP), Chaukhandi (CHH), Kashi (KEI), Jalalganj (JLL), Shiupur (SOP)
  • Bus Station : Varanasi

काशी विश्वनाथ मंदिर जाने के लिए सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Kashi Vishwanath Temple 

मंदिर पूरे वर्ष में कभी भी जा सकते है । सर्दियों (अक्टूबर – मार्च) का समय ज्यादा अच्छा रहता है जो दर्शनीय स्थलों की यात्रा को आसान बनाता है। मंदिर में अनुष्ठान सुबह 3 बजे से शुरू होता है।

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