हरियाली अमावस्या – जाने हरियाली अमावस्या कब है, महत्व और उपाय

हरियाली अमावस्या – Hariyali Amavasya

हिन्दू धर्म में अमावस्या का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है। अमावस्या के दिन हर व्यक्ति अपने पितरों को याद करते हैं और श्रद्धा भाव से उनका श्राद्ध भी करते हैं। अपने पितरों की शांति के लिए हवन आदि कराते हैं। ब्राह्मण को भोजन कराते हैं और साथ ही दान-दक्षिणा भी देते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि के स्वामी पितृदेव हैं। पितरों की तृप्ति के लिए इस तिथि का अत्यधिक महत्व है। अमावस्या में श्रावण मास की अमावस्या का अपना अलग ही महत्व है। इसे हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

मान्यता है कि इस दिन पौधे लगाना शुभ माना जाता है। इसलिए इस उत्सव को शनिचरी अमावस्या का नाम दिया गया है। कुछ स्थानों पर इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा कर उसके फेरे लगाने और मालपुए का भोग लगाने की भी परंपरा है। 

शास्त्रों में कहा गया है कि एक पे़ड दस पुत्रों के समान होता है। पे़ड लगाने के सुख बहुत होते है और पुण्य उससे भी अधिक। क्योंकि यह वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर आधारित होते है। वृक्ष सदा उपकार की खातिर जीते है। इसलिये हम वृक्षों के कृतज्ञ है। वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु परिवार के प्रति व्यक्ति को हरियाली अमावस्या पर एक-एक पौधा रोपण करना चाहिये। पे़ड-पौधों का सानिध्य हमारे तनाव को तथा दैनिक उलझनों को कम करता है।

हरियाली अमावस्या

हरियाली अमावस्या कब है

Hariyali Amavasya 2023- 17 जुलाई 2023 को सावन की हरियाली अमावस्या मनाई जाएगी। इस दिन पितरों की शांति, श्राद्ध कर्म, पवित्र नदी में स्नान और दान करने का विशेष महत्व है। इससे जातक को पितृ दोष, कालसर्प दोष और शनि दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन दान-स्नान का पहला शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 34 मिनट से सुबह 07 बजकर 17 मिनट तक है. इसके बाद दूसरा शुभ मुहूर्त सुबह 09 बजकर 01 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।

वृक्षों में देवताओं का वास

धार्मिक मान्यता अनुसार वृक्षों में देवताओं का वास बताया गया है। शास्त्र अनुसार पीपल के वृक्ष में त्रिदेव याने ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास होता है। इसी प्रकार आंवले के पे़ड में लक्ष्मीनारायण के विराजमान की परिकल्पना की गई है। इसके पीछे वृक्षों को संरक्षित रखने की भावना निहित है। पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए ही हरियाली अमावस्या के दिन वृक्षारोपण करने की प्रथा बनी। इस दिन कई शहरों व गांवों में हरियाली अमावस के मेलों का आयोजन किया जाता है।

इसमें सभी वर्ग के लोंगों के साथ युवा भी शामिल हो उत्सव व आनंद से पर्व मनाते हैं। गु़ड व गेहूं की धानि का प्रसाद दिया जाता है। स्त्री व पुरूष इस दिन गेहूं, ज्वार, चना व मक्का की सांकेतिक बुआई करते हैं जिससे कृषि उत्पादन की स्थिति क्या होगी का अनुमान लगाया जाता है। मध्यप्रदेश में मालवा व निम़ाड, राजस्थान के दक्षिण पश्चिम, गुजरात के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी इलाकों के साथ ही हरियाणा व पंजाब में हरियाली अमावस्या को पर्व के रूप में मनाया जाता है।

हरियाली अमावस्या का महत्व

हमारी धर्म संस्कृति में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। मनु-स्मृति के अनुसार वृक्ष योनि पूर्व जन्मों के कमों के फलस्वरूप मानी गयी है। परमात्मा द्वारा वृक्षों का सर्जन परोपकार एवं जनकल्याण के लिए किया गया है।

पीपल- हिन्दू धर्म में पीपल के वृक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि पीपल के वृक्ष में अनेकों देवताओं का वास माना गया है। पीपल के मूल भाग में जल, दूध चढाने से पितृ तृप्त होते है तथा शनि शान्ति के लिये भी शाम के समय सरसों के तेल का दिया लगाने का विधान है।

केला- केला, विष्णु पूजन के लिये उत्तम माना गया है। गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केला का पूजन अनिवार्य हैं। हल्दी या पीला चन्दन, चने की दाल, गु़ड से पूजा करने पर विद्यार्थियों को विद्या तथा कुँवारी कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन केले का पौधा जरूर लगायें

ब़ड- ब़ड वृक्ष की पूजा सौभाग्य प्राप्ति के लिये की जाती है। जिस प्रकार सावित्री ने ब़ड की पूजा कर यमराज से अपनी पति के जीवित होने का वरदान मांगा था। उसी प्रकार सौभाग्यवती çस्त्रयां अपने पति की लम्बी उम्र की कामना हेतु यह व्रत करके ब़ड वृक्ष की पूजा एवं सेवा करती है। तुलसी- तुलसी एक बहुश्रूत, उपयोगी वनस्पति है। स्कन्दपुराण एवं पद्मपुराण के उत्तर खण्ड में आता है कि जिस घर में तुलसी होती है वह घर तीर्थ के समान होता है। समस्त वनस्पतियों में सर्वाधिक धार्मिक, आरोग्यदायिनी एवं शोभायुक्त तुलसी भगवान नारायण को अतिप्रिय है।

पौधा रोपण हेतु ज्योतिषीय मुहूर्त

पौधा रोपण हेतु ज्योतिष के अनुसार नक्षत्रों का महत्व है। उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तरा भाद्रपदा, रोहिणी, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, मूल, विशाखा, पुष्य, श्रवण, अश्विनी, हस्त इत्यादि नक्षत्रों में किये गये पौधारोपण शुभ फलदायी होते है। वास्तु के अनुसार- घर के समीप शुभ प्रभावकारी वृक्ष घर के समीप शुभ करने वाले वृक्ष- निम्ब, अशोक, पुन्नाग, शिरीष, बिल्वपत्र, आँक़डा तथा तुलसी का पौधा आरोग्य वर्धक होता है।

वास्तु के अनुसार

घर के समीप अशुभ प्रभावकारी वृक्ष- पाकर, गूलर, नीम, बहे़डा, पीपल, कपित्थ, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, बेल, खजूर ये सभी घर के समीप अशुभ है। घर में बेर, केला, अनार, पीपल और नींबू लगाने से घर की वृद्धि नहीं होती। घर के पास कांटे वाले, दूध वाले और फल वाले वृक्ष हानिप्रद होते है। घर की आग्नेय दिशा में पीपल, वट, सेमल, गूलर, पाकर के वृक्ष हो तो शरीर में पीडा एवं मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। वक्षों के विनाश का दुष्परिणाम मानव समुदाय को सीधे तौर पर भुगतना प़ड रहा है। इस हरियाली अमावस्या पर हम संकल्प ले कि हम अपने-अपने नगर को हरियाला एवं स्वच्छ बनाये ताकि धरती पर जैविक संतुलन भी बना रहे।

Read Also – पेड़-पौधों द्वारा चमत्कारिक वास्तु उपचार, जाने कोनसे रहेंगे घर में शुभ और अशुभ

विशेष कामना सिद्धि हेतु कौन से वृक्ष लगाये

1. लक्ष्मी प्राप्त के लिए- तुलसी, आँवला, केल, बिल्वपत्र का वृक्ष लगाये।
2. आरोग्य प्राप्त के लिए- ब्राह्मी, पलाश, अर्जुन, आँवला, सूरजमुखी, तुलसी लगाये।
3. सौभाग्य प्राप्त हेतु- अशोक, अर्जुन, नारियल, ब़ड (वट) का वृक्ष लगाये।
4. संतान प्राप्त हेतु- पीपल, नीम, बिल्व, नागकेशर, गु़डहल, अश्वगन्धा को लगाये।
5. मेधा वृद्धि प्राप्त हेतु- आँक़डा, शंखपुष्पी, पलाश, ब्राह्मी, तुलसी लगाये।
6. सुख प्राप्त के लिए- नीम, कदम्ब, धनी छायादार वृक्ष लगाये।
7. आनन्द प्राप्त के लिए- हरसिंगार (पारिजात) रातरानी, मोगरा, गुलाब लगाये।

श्रावण अमावस्‍या की पूजन विधि

  • अमावस्‍या को पूर्वजों के लिए बेहद शुभ दिन माना जाता है. इस दिन प‍ितृ तर्पण कर अपने पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है.
  • लोग अपने पूर्वजों के लिए पसंद का खाना बनाकर उसे ब्राह्मणों को खिलाते हैं. इस केअलाव इस भोजन को गाय, कौवा को भी खिलाया जाता है.
  • श्रावण अमावस्‍या के दिन लोग भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा करते हैं.
  • इस अमावस्‍या के दिन शिव पूजन करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है.
  • श्रावण अमावस्‍या के दिन उपवास भी किया जाता है.
  • सुबह उठकर पवित्र नदियाों में स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करते हैं.
  • व्रत का संकल्‍प लेकर दिन पर निराहार रहते हैं.
  • संध्या समय सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है और उपवास खोला जाता है.
  • सच्‍चे और शुद्ध तन मन से व्रत करने पर धन-धान्य एवं वैभव की प्राप्ति होती है.
  • धर्म स्थलों एवं पवित्र नदियों में स्‍नान के पश्चात ब्राह्मणों, गरीबों और असमर्थ लोगों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा दी जाती है.

Scroll to Top