बद्रीनाथ – Badrinath
हिन्दू धर्म में व्यक्ति के पापो को हरने के लिए चार धाम यात्रा (Char Dham Yatra) का प्रावधान दिया गया है, चार धाम यात्रा (Char Dham) में सबसे प्रमुख और विकट यात्रा श्री बद्रीनाथ धाम (badrinath yatra) की है, इसे बद्रीनारायण मंदिर (badrinath temple) भी कहते हैं, बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। ऋषिकेश से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
बद्रीनारायण मंदिर – Badrinath Temple
बद्रीनारायण मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप। मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां है, इनमें सब से प्रमुख है भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा जिसमें भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित है। मुख्य मंदिर में भगवान बद्रीनारायण की काले पाषाण की शीर्ष भाग मूर्ति है। जिसके दाहिने ओर कुबेर लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां है। आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा यहां एक मठ की भी स्थापना की गई थी। अप्रैल-मई से अक्टूबर-नवम्बर तक मंदिर दर्शनों के लिए खुला रहता है।
लोग उत्तराखंड आने पर बद्रीनाथ और केदारनाथ यात्रा (badrinath kedarnath yatra) दोनों साथ ही करना पसंद करते है क्यों की इतने दुर्गम स्थान पर दुबारा आना काफी मुश्किल होता है| इस धाम के बारे में यह कहावत है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’ यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे पुनः माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है। इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करना चाहिए।
यह है ब्रदीनाथ के चरण पखरती अलकनंदा महानदी| पुराणों में बताया गया है कि बद्रीनाथ में हर युग में बड़ा परिवर्तन। सतयुग तक यहां पर हर व्यक्ति को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुआ करते थे। त्रेता में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के साक्षात् दर्शन मिलते थे। द्वापर में जब भगवान श्री कृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे उस समय भगवान ने यह नियम बनाया कि अब से यहां मनुष्यों को उनके विग्रह के दर्शन होंगे। तब से भगवान के उस विग्रह के दर्शन प्राप्त होते हैं।
बद्रीनाथ को शास्त्रों और पुराणों में दूसरा बैकुण्ठ कहा जाता है। एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और विष्णु का दूसरा निवास बद्रीनाथ है जो धरती पर मौजूद है। बद्रीनाथ के बारे यह भी माना जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था। लेकिन विष्णु भगवान ने इस स्थान को शिव से मांग लिया था।
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बद्रीनाथ धाम से जुडी पौराणिक मान्यताएं – Badrinath Dham Legend Mythology Stories
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी. की दूरी पर स्थित बदरीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बदरीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बदरीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।
भगवान बद्रीनाथ का मंदिर नर नारायण पर्वत के बीच बसा हुआ है। द्वापर में यहां भगवान का विग्रह प्रकट हुआ और इसी रूप में भगवान यहां निवास करते हैं। कहते हैं कि कलियुग के अंत में नर-नारायण पर्वत एक हो जाएंगे। इससे बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जाएगा, लोग यहां भगवान के दर्शन नहीं कर पाएंगे।
भगवान नृसिंह का अद्भुत विग्रह – Narsingh Temple
यह है जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर, इससे जुड़ी एक मान्यता है कि जोशीमठ में जहां शीतकाल में बद्रीनाथ की चलमूर्ति रहती है वहां भगवान नृसिंह का एक मंदिर है। जहां शालग्राम शिला में भगवान नृसिंह का एक अद्भुत विग्रह है। इस विग्रह की बायीं भुजा पतली है और समय के साथ यह और भी पतली होती जा रही है। जिस दिन इनकी कलाई टूट जाएगी उस दिन नर-नारयण पर्वत एक हो जाएंगे।
जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा बद्रीनाथ मूर्ति की पुनर्स्थापना – Adi Shankaracharya – Badrinath Mandir
बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।
बद्रीनाथ धाम से जुडी पौराणिक कथा – Badrinath Temple Story
पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे।
उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से सर्वविदित है।
जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं ।
कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है। बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं जो रावल कहलाते हैं। यह जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। रावल के लिए स्त्रियों का स्पर्श भी पाप माना जाता है।
बद्रीनाथ धाम यात्रा में दर्शनीय स्थल – Places To Visit In Badrinath
बदरीनाथ में तथा इसके समीप अन्य दर्शनीय स्थल हैं-
- अलकनंदा के तट पर स्थित 130 डिग्री सैल्सियस पर खौलता तप्त-कुंड
- धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल
- पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप (साँपों का जोड़ा)
- शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड–शेषनेत्र
- चरणपादुका :- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं; (यहीं भगवान विष्णु ने बालरूप में अवतरण किया था।)
- बदरीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ।
- माता मूर्ति मंदिर :- जिन्हें बदरीनाथ भगवान जी की माता के रूप में पूजा जाता है।
- माणा गाँव– इसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है।
- वेद व्यास गुफा, गणेश गुफा: यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था।
- भीम पुल :- भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है।
- वसु धारा :- यहाँ अष्ट-वसुओं ने तपस्या की थी। ये जगह माणा से ८ किलोमीटर दूर है। कहते हैं की जिसके ऊपर इसकी बूंदे पड़ जाती हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वो पापी नहीं होता है।
- लक्ष्मी वन :- यह वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है।
- सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) :- कहा जाता है कि इसी स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था।
- अलकापुरी :- अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है।
- सरस्वती नदी :- पूरे भारत में केवल माणा गाँव में ही यह नदी प्रकट रूप में है।
- भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से एक अप्सरा उत्पन्न हुई जो उर्वशी नाम से विख्यात हुई। बदरीनाथ कस्बे के समीप ही बामणी गाँव में उनका मंदिर है।
- एक विचित्र सी बात है, जब भी आप बदरीनाथ जी के दर्शन करें तो उस पर्वत (नारायण पर्वत) की चोटी की और देखेंगे तो पाएंगे की मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है। शेष नाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं।
कैसे पहुंचे बद्रीनाथ – How To Reach Badrinath Dham
बद्रीनाथ एक हिंदू तीर्थस्थल है और उत्तराखंड में स्थित है। इस शहर में परिवहन के सभी प्रमुख साधनों की सुविधा है। बद्रीनाथ पहुँचने का सबसे अच्छा विकल्प सड़क या ट्रेन है।बद्रीनाथ हाईवे पर कई स्लाइडिंग जोन बाधा बनते रहे हैं। बद्रीनाथ तक गाड़ियां जाती हैं, इसलिए यहां मौसम अनुकूल होने पर पैदल नहीं जाना पड़ता। बद्रीनाथधाम को बैकुण्ठ धाम भी कहा जाता है। बैकुण्ठधाम जाने के लिए ऋषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली, गोविन्दघाट होते हुए पहुंचा जाता है। इस यात्रा के बीच कई अन्य मंदिर भी तीर्थयात्रियों को सुकून देते हैं। इनमें योगबद्री पांडकेश्वर, भविष्यबद्री मंदिर, नृसिंह मंदिर, बासुदेव मंदिर, जोशीमठ, ध्यानबद्री, उरगम जैसे मंदिर बद्रीनाथ यात्रा मार्ग के आसपास पड़ते है।
हवाईजहाज से बद्रीनाथ – Nearest Airport To Badrinath
311 किलोमीटर की दूरी पर जॉली ग्रांट हवाई अड्डा बद्रीनाथ से निकटतम हवाई अड्डा है। हवाई अड्डे के लिए दिल्ली, लखनऊ और मुंबई को जोड़ने वाली उड़ानें हैं। आप रेलवे स्टेशन से टैक्सी किराए पर लेने का विकल्प चुन सकते हैं या बद्रीनाथ पहुँचने के लिए निकटतम बस स्टेशन से बस में सवार हो सकते हैं।
ट्रेन से बद्रीनाथ – Nearest Railway Station To Badrinath
निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है और यह उत्तराखंड के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यह नई दिल्ली-देहरादून रेलवे लाइन पर स्थित है और ऋषिकेश, हरिद्वार और रुद्रप्रयाग जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग से बद्रीनाथ – Badrinath By Road
बद्रीनाथ में अंतरराज्यीय बसें चलती हैं, जो विभिन्न शहरों और राज्यों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, श्रीनगर, देहरादून, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ और अन्य से आसानी से जुड़ जाती हैं। इन बसों में किफायती किराए हैं और दूरी को कवर करने के लिए सबसे अच्छे विकल्प हैं।
हेलीकाप्टर द्वारा बद्रीनाथ – Badrinath By Helicopter
बद्रीनाथ जाने के लिए हेलीकॉप्टर मार्ग भी है। हेलीकॉप्टर से यात्रा करने पर यात्रा का समय काफी कम हो जाता है और तीर्थयात्रियों के लिए बद्रीनाथ धाम की यात्रा को सुविधाजनक बनाया जाता है।
Destinations : देहरादून- बद्रीनाथ जी- देहरादून
निर्धारित कार्यक्रम और दिन की लागत – Badrinath By Helicopter Cost
देहरादून से चार्टर हेलीकॉप्टर उड़ान द्वारा बद्रीनाथ यात्रा परिवार या दोस्तों के लिए बद्रीनाथ धाम (अधिकतम 4) के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध पैकेज है। एक चार्टर हेलीकॉप्टर उड़ान बद्रीनाथ में एक बार में अधिकतम 4 व्यक्तियों को ले जा सकती है।
12:30: 13:30 बजे: हेलीकॉप्टर द्वारा बद्रीनाथ के लिए सहस्त्रधारा
13:45: 14:30 बजे: सरोवर पोर्टिको, बद्रीनाथ में दोपहर का भोजन
15:00: 15:45 बजे: बद्रीनाथ मंदिर (वीआईपी दर्शन)
16:00: 17:00 बजे: हेलीकाप्टर द्वारा बद्रीनाथ से सहस्त्रधारा
उसी दिन की वापसी मौसम की स्थिति के आधार पर।
हेलीकॉप्टर पैकेज द्वारा बद्रीनाथ यात्रा लगभग 70,000 / – रुपये प्रति व्यक्ति है।