भैरव उपासना क्यों ?
धर्म-शास्त्रों में भैरव को एक विशिष्ट देवता कहा गया है। इनका एक स्वतंत्र आगम है, जो ‘भैरव आगम’ के नाम से जाना जाता है। भैरव को भगवान विष्णु तथा भगवान शिव के बराबर माना जाता हैं। विष्णु-स्वरूप होकर भी ये साक्षात् शिव के दूसरे रूप माने जातें हैं।
शिवपुराण में कहा है- भैरवः पूर्णरूपों हि शंकरस्य परात्मः।
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आगमों तथा पुराणों में भैरव देवता के अनेक चरित्र प्राप्त होते है। उनके प्रगट होने से संबद्ध उपलब्ध अनेक कथाओं में से एक मुख्य कथा यह है कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ में योगाग्नि द्वारा सत्ती के देहोत्सर्ग की घटना को नारद द्वारा सुनकर भगवान शिव को तीव्र क्षोेभ उत्पन्न करता हुआ, आकाश को स्पर्श करने वाला भीमकाय दिव्य पुरूष प्रकट हो हुआ और बोला- ‘‘आज्ञा दे।’’
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फिर भगवान शिव के कथानुसार उसने दक्ष प्रजापति के उस यज्ञ को भंग कर दिया। वही पुरूष भैरव देव के नाम से विख्यात हुआ। अतः भैरव शिव के स्वरूप् एवं उनके पुत्र-दोनों रूपों में प्रसिद्ध हैं। पुराणों तथा तंत्र ग्रंथों में भैरव देव का अनेक रूपों में वर्णन मिलता है। इनकें प्रमुख आठ नाम है- असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उत्मत्त, कमालि, भीषण और संहार।
शारदातिलक तथा बृहज्योतिषार्णव आदि में श्रीबटुक भैरव की उपासना-पद्धति प्राप्त होती है। बटुक भैरव का पूजन सामान्य देवताओं की भांति ही किया जाता है।
‘सप्तविंशति रहस्यम्’ में तीन बटुक भैरवों के नाम तथा मंत्रों का वर्णन मिलता है। इनके नाम है-स्कंद, चित्र तथा विरंचि । ‘रूद्रयामल तंत्र’ में चैसठ भैरवों का वर्णन है, जबकि काली आदि दश महाविद्याओं के पृथक्-पृथक् दस भैरव है।
बटुक भैरव देवता के सात्विक, राजस एवं तामस- तीनो प्रकार के ध्यान, तंत्र-ग्रंथो में वर्णित है। उनका सात्विक ध्यान ‘‘शारदातिलक’’ में इस प्र्रकार है-
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वंदे बालं स्फटिक सदृशं कुंतलोल्लासिबकां
दिव्याकल्पैर्नवमणिमयैः किंकिणीनपुराद्यैः।
दीप्ताकारं विशदवदनं सुप्रन्नं त्रिनेत्रं
हस्ताब्जाभ्याहं बटुकमनिशं शूलदेडौ दधानम्।।
अत्यंत प्रभावपूर्ण शरीरयुक्त, प्रसन्न एवं घुघराले केश से उल्लसित विस्तृत मुखमंडलयुक्त और तीन नेत्रों से युक्त, दोनों कर-कमलों में क्रमशः त्रिशुल और दंड धारण किए हुए, अनुपम एवं दिव्य मणियों से निर्मित किंकिणी से सुशोभिम कटि वाले और मधुर ध्वानियुक्त नूपूरों से विभूषित पैर वाले तथा स्फटिक के समान उज्जवल वर्ण वाले बाल-स्वरूप् बटुक भैरव का हम अहर्निश वंदन करते हैं।
कपाली कुंडली भीमों भैरवों भीमविक्रमः।
व्यालोपवीती कवची शूली शूरः शिवप्रियः।।
एतानि दश नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
भैरवी यातना न स्याद् भयं क्वाकि न जायते।।
भगवान भैरव के कपाली, कुंडली, भीम, भैरव, भीमविक्रम, व्यालोपवीती, कवची, शूली, शूर तथा शिवप्रिय- इन दस नामों का जो प्रातःकाल उठकर पाठ करता है, उसे न तो कोई भैरवी-यातना होती है और न कोई सांसारिक भय होता है। आगम-ग्रंन्थों में इनके विभिन्न प्रकार के शतनाम, सहस्त्रनाम, कवच, स्तवराज आदि अनेक स्तोत्र दिए गए है।
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देवी-पूजन तथा कुमारिका-पूजन के साथ बटुक भैरव का पूजन होता है तथा प्रायः देवी एवं शिव-मंदिरों में इनका विग्रह अवश्य स्थापित रहता है।काशी-प्रयाग आदि मुख्य तीर्थों के ये क्षेत्रपाल एवं नगरपाल माने गए है। वहीं निर्विध्न निवास के लिए इनके दर्शन-पूजन एवं उपासना को आवश्यक कहा गया है।