षटतिला एकादशी – Shattila Ekadashi
षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi ) के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। कुछ लोग बैकुण्ठ रूप में भी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिल से जुड़ा हुआ है। तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दू धर्म में तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। विशेषकर पूजा में इनका विशेष महत्व होता है। षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।
- तिल के जल से स्नान करें
- पिसे हुए तिल का उबटन करें
- तिलों का हवन करें
- तिल मिला हुआ जल पीयें
- तिलों का दान करें
- तिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएं
तिल के विशेष महत्व के कारण इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन तिलों का दान करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी कब है
पंचांग के अनुसार, पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 5 फरवरी को शाम 5.24 बजे से शुरू होगी। यह 6 फरवरी को दोपहर 4.07 बजे खत्म होगी। उदयातिथि के अनुसार, षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी।
षटतिला एकादशी व्रत मुहूर्त – Shattila Ekadashi Muhurat 2024
वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 05 फरवरी शाम 05 बजकर 25 मिनट से शुरू होगी और इस तिथि का समापन 06 फरवरी 04 बजकर 07 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, षटतिला एकादशी व्रत 06 फरवरी 2024, मंगलवार के दिन रखा जाएगा.
Shattila Ekadashi Parana Time
बता दें कि इस व्रत का पारण 07 फरवरी सुबह 07 बजकर 06 मिनट से सुबह 09 बजकर 17 मिनट के बीच किया जाएगा.
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क्या है षटतिला एकादशी व्रत विधि – Shattila Ekadashi Puja Vidhi
- किसी भी व्रत उपवास या दान-तर्पण आदि को करने से पहले मन का शुद्ध होना तो जरूरी है ही इसके साथ-साथ षटतिला एकादशी का उपवास अन्य एकादशियों के उपवास से थोड़ा भिन्न तरीके से रखा जाता है।
- माघ मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बनाये जाते हैं। फिर दशमी के दिन एक समय भोजन करना चाहिये और प्रभु का स्मरण करना चाहिये।
- एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान श्री कृष्ण के नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधिवत पूजा कर अर्घ्य दें।
- रात्रि में भगवान का भजन-कीर्तन करें और 108 बार “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र से उपलों को हवन में स्वाहा करना चाहिये। स्नान, दान से लेकर आहार तक में तिलों का प्रयोग करना चाहिये।