मानसिक तनाव कैसे दूर करें | How To Deal With Depression
पिछली पीढ़ी की तुलना में इस पीढ़ी में डिप्रेशन के मामलों में अचानक उछाल आया है। मानसिक तनाव, डिप्रेशन, बेचैनी जैसी कई बीमारियां आज काफी बढ़ गई हैं। हमारी पिछली पीढ़ी को ऐसी परेशानियों का सामना कभी नहीं करना पड़ा। हमारे समाज में आज क्या बदल गया है? सद्गुरु हमें इसके कारण और इससे बचने के कुछ बहुत सरल तरीके बता रहे हैं।
सबसे बुनियादी कारण – कम गतिविधि
सद्गुरु : आज दुनिया में डिप्रेशन के लक्षण वास्तव में बढ़ गए हैं। इसका सबसे बुनियादी कारण यह है कि हम बहुत ज्यादा खा रहे हैं, लेकिन उस अनुपात में गतिविधि नहीं कर रहे हैं।
लोग यह नहीं समझ रहे हैं कि रासायनिक संतुलन बनाए रखने के लिए शारीरिक गतिविधि बहुत जरूरी है। हम लोगों की पीढ़ी में शारीरिक गतिविधियां बहुत तेजी से कम हुई हैं। गौर कीजिए कि हमसे पिछली पीढ़ी के लोग शारीरिक तौर पर कितने सक्रिय थे और हमारी शारीरिक क्रियाशीलता कितनी तेजी से कम हुई है। इसीलिए रासायनिक संतुलन बनाए रखना बहुत कठिन हो गया है। डिप्रेशन तो उसका सिर्फ एक परिणाम है।
डिप्रेशन की शुरुआत में लोग उदास होकर एक कोने में जाकर बैठ जाते हैं। अगर आपने उन्हें इस स्थिति में बहुत देर तक छोड़ दिया तो उनमें से कई पागल हो जाते हैं। उनमें सनकी डिप्रेशन की स्थिति आ जाती है, जिसमें वे हिंसक हो सकते हैं। फिर आपको उन लक्षणों को दवाओं और इंजेक्शन जैसे केमिकल्स से कम करने होंगे वरना ‘लोबोटॉमी’ करनी होगी, जो दिमाग का एक तरह का ऑपरेशन होता है। ये तरीके बिलकुल आखिरी स्थिति के लिए हैं, जो कई तरह से व्यक्ति की क्षमता को नष्ट कर देते हैं। इन सबसे बचने का सबसे आसान तरीका शरीर को सक्रिय रखना है। जैसा कि मैंने बच्चों के मामले में भी कहा था कि उनके लिए खुली हवा में शारीरिक गतिविधि करना सबसे ज्यादा जरूरी है। संतुलन बनाने का सबसे आसान तरीका यही है।
प्रकृति के संपर्क में रहना होगा
दूसरी बात यह है कि आप प्रकृति के पांचों तत्वों धरती, पानी, हवा, सूरज की रोशनी और आकाश के संपर्क में रहें। आप पूछेंगे कि क्या पहले समय में लोग इनके संपर्क में लगातार रहते थे? उन्हें रहना ही पड़ता था।
आज अगर आप जमीन जोत रहे हैं तो क्या आपको नहीं पता होगा कि इस समय कौन-सी ऋतु है? खैर, अगर आप एअरकंडीशंड कमरे में भी बैठे हैं, तब भी आप जानते हैं कि इस समय कौन-सा मौसम है। लेकिन मान लीजिए, आप खेत में काम कर रहे हैं या जंगल में चल रहे हैं, तब आपको हर चीज साफ तौर पर महसूस होती है – वह भी अनुभव के आधार पर, बुद्धि के आधार पर नहीं। तब आप स्वाभाविक रूप से प्रकृति के सभी तत्वों के बारे में जागरूक होंगे कि किस पल आपको कौन-सा तत्व प्रभावित कर रहा है।
प्रकृति के प्रति जागरूक रहना, संतुलन लाने का एक अहम पहलू है। शारीरिक स्तर पर खूब सक्रिय रहना इसका दूसरा पक्ष है। आजकल जिस तरह हम ओवर-प्रोसेस्ड फूड खा रहे हैं, वह भी इसका एक बड़ा कारण है। इसके अलावा, जिस भावनात्मक असुरक्षा से आधुनिक पीढ़ी परेशान है, वह भी इसका एक अहम कारण है। ऐसा कोई नहीं जिससे भावनात्मक रूप से जुड़ सकें, क्योंकि कोई भी हमेशा के लिए जुड़ा नहीं रहता।
अगर हम इन चीजों का ध्यान रखें तो दुनिया से डिप्रेशन की महामारी को निश्चित ही कम कर पाएंगे। दुनिया में डिप्रेशन एक महामारी की तरह है, जो हर जगह पैर पसार रहा है। एशिया काफी हद तक इससे मुक्त था, लेकिन अब ये एशिया में भी आ गया है। पिछली पीढ़ी तक डिप्रेशन यहां नहीं पहुंचा था। इस पीढ़ी के लोग बड़ी संख्या में डिप्रेशन से ग्रस्त हो रही हैै। शायद डिप्रेशन की पहली लहर यूरोप में आई थी।
उसके बाद अमेरिका की पिछली पीढ़ी में इसे देखा गया और अब रहन-सहन की वजह से एशिया के लोग भी इसकी चपेट में आ गए हैं। बहुत अधिक खाना, बहुत कम व्यायाम, प्रकृति से दूरी, पंच तत्वों से अलगाव और भावनात्मक असुरक्षा कुछ ऐसे प्रमुख कारण हैं, जिनकी वजह से डिप्रेशन आज दुनिया में आम बात बन गया है । ऐसा किसी एक के साथ नहीं हो रहा है, बल्कि यह एक महामारी की तरह फैल रहा है।