विवाह के प्रकार – Vivah Ke Prakar
हिंदू धर्म में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना गया है जिसमें दो आत्माओं का मिलन होता है। विवाह को सोलह संस्कारों में से पंद्रहवां संस्कार बताया गया हैं जिसमें एक व्यक्ति अपने ब्रह्मचर्य जीवन से गृहस्थ जीवन प्रवेश करता है। इसके साथ ही मनुस्मृति में विवाह के प्रकार के अनुसार उनको आठ भागों में विभाजित किया गया है। इन्हीं के आधार पर विवाह करने की परंपरा रही है। आज हम आपको विवाह के विभिन्न प्रकारों के बारे में विस्तार से बताएँगे।
1. ब्रह्म विवाह
विवाह के प्रकार में ब्रह्म विवाह को सर्वश्रेष्ठ विवाह माना गया हैं जिसमें दो परिवारों का मिलन होता है। ब्रह्म विवाह की सबसे बड़ी विशेषता कन्यादान मानी जाती है। ब्रह्म विवाह के लिए वर व वधु दोनों का ब्रह्मचर्य आश्रम से गृहस्थ आश्रम में आना आवश्यक होता है अर्थात उनकी आयु पच्चीस वर्ष से अधिक होनी चाहिए। ब्रह्म विवाह होने के लिए दोनों का एक वर्ण का होना आवश्यक है।
इसमें सर्वप्रथम वर के परिवार वाले रिश्ता लेकर वधु के घर जाते है तथा विवाह का प्रस्ताव रखते है। जब वधु के परिवार से सहमति मिल जाती है तो रिश्ता पक्का माना जाता है। इसके पश्चात पूरे विधि-विधान से तथा वैदिक मंत्रों के साथ विवाह करवाया जाता है जिसमें वधु के पिता के द्वारा कन्यादान कर दिया जाता है। कन्यादान के पश्चात वह स्त्री अब वर पक्ष की मान ली जाती है तथा उसे अब वही रहकर अपने जीवन के कर्तव्य पूर्ण करने होते है।
2. प्रजापत्य विवाह
विवाह के प्रकार में प्रजापत्य विवाह में वधु के माता-पिता विवाह के लिए उसकी सहमति नही लेते हैं तथा छोटी आयु में ही उसका विवाह संपन्न करवा देते हैं। इसमें कन्या का पिता अपनी पुत्री को वर को सौंपने की बजाये उसके पिता को सौंपता है। इसलिये विवाह के पश्चात वह अपने ससुराल चली जाती है।
चूँकि वह अभी छोटे ही होते है तो वधु को घर में कन्या के तौर पर ही रखा जाता है तथा गृहस्थ जीवन शुरू होने पर उन्हें एक साथ रहने की अनुमति मिल जाती है। यह ब्रह्म विवाह का ही एक स्वरुप होता है बस इसमें विवाह पहले करवा दिया जाता है।
3. दैव विवाह
विवाह के प्रकार में यह भी एक तरह से ब्रह्म विवाह का ही रूप है लेकिन इसमें कोई धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि नही होता था। यह तब किया जाता था जब कोई व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह करवाने में अक्षम होता था तथा उसके पास इतना धन नही होता था या कन्या का विवाह एक निश्चित आयु सीमा के भीतर नही हो पा रहा हो या उसके लिए कोई उचित वर न मिल पा रहा हो।
उस स्थिति में वह अपनी कन्या का विवाह किसी सिद्ध पुरुष या ज्ञानी व्यक्ति से करवा देते थे अर्थात वह धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि में अपनी कन्या का दान कर देता था। इसे ही दैव विवाह की संज्ञा दी गयी है। यद्यपि धर्मशास्त्रों में दैव विवाह को जहाँ तक हो सके ना करने को कहा गया है लेकिन स्थिति के अनुसार इसका करना उचित समझा जाता था।
4. आर्श विवाह
विवाह के प्रकार में यह सामान्यतया वह विवाह होता था जिसमें वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से विवाह के बदले में उन्हें गाय तथा बैल देते थे। इसमें किसी प्रकार के धन का आदान-प्रदान नही होता था। इसलिये इसे गोदान विवाह भी कहा जाता था। यह मुख्यतया आदिवासी या निर्धन परिवारों की सहायता करने के उद्देश्य से भी किया जाता था। इस विवाह के द्वारा वर पक्ष कन्या शुल्क के रूप में गाय का दान करते थे।
5. गंधर्व विवाह
विवाह के प्रकार में इसे आज के समय के अनुसार प्रेम विवाह भी कहा जा सकता है। यह वह विवाह होता था जिसमें एक पुरुष तथा स्त्री एक दूसरे को पसंद करते थे लेकिन इसमें उनके परिवारों की सहमति नही होती थी। इसलिये उनकी आज्ञा के बिना यह विवाह किया जाता था तब इसे गंधर्व विवाह की संज्ञा दी गयी है। इसमें वे किसी बड़े धार्मिक अनुष्ठान के बिना विवाह कर लेते थे। इतिहास में देखा जाये तो महाराज दुष्यंत का शकुंतला से हुआ विवाह गंधर्व विवाह की श्रेणी में ही आता है।
6. असुर विवाह
विवाह के प्रकार में इस विवाह को उचित विवाह की श्रेणी में नही रखा जाता था। यह सामान्यता निर्धन परिवारों की कन्याओं के साथ ज्यादा होता था जिसमें एक कन्या से विवाह के लिए उसका मूल्य चुकाया जाता था। इसमें वर पक्ष के द्वारा वधु पक्ष के लोगों को उनकी आवश्यकता से अधिक धन देकर कन्या का सौदा कर लेते थे तथा विवाह संपन्न हो जाता था।
यह सामान्यता उस स्थिति में होता था जब पुरुष में या तो कोई दोष हो, नीची जाति का हो या उस कन्या के लायक न हो जैसे कि उससे आयु में बड़ा होना या कोई अन्य कारण। शास्त्रों में इस विवाह को अच्छा नही माना गया है।
7. राक्षस विवाह
विवाह के प्रकार में जब कोई पुरुष तथा महिला एक दूसरे को पसंद करते हो तथा वर पक्ष के परिवार वाले इससे सहमत हो लेकिन वधु पक्ष के असहमत तब कन्या की पसंद को देखते हुए उससे विवाह कर लेना राक्षस विवाह की श्रेणी में आता था।
भगवान श्रीकृष्ण का भी राक्षस विवाह हुआ था जिसमें रुकमनी को वे पसंद थे लेकिन उनके घरवाले इसके लिए तैयार नही थे। तब श्रीकृष्ण ने रुकमनी को भगाकर उनसे विवाह किया था। इसके अलावा अन्य प्रसिद्ध उदाहरणों में भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा का अर्जुन से विवाह तथा महाराज पृथ्वीराज चौहान का सयोंगिता से विवाह भी राक्षस विवाह ही था।
8. पैशाच विवाह
विवाह के प्रकार में इस विवाह को सबसे अधिक अनुचित विवाह की श्रेणी में रखा गया है। यह तब किया जाता था जब कोई कन्या या तो अपने होश में नही है या गहरी निद्रा में है या जबरदस्ती उसका विवाह किसी और से करवा दिया गया हो, उस विवाह को पैशाच विवाह की श्रेणी में रखा गया है।यह विवाह अनुचित विवाह ही होता था जिसमे एक कन्या की सहमति के बिना किसी पराये पुरुष से उसका विवाह जबरदस्ती करवा दिया जाता था तथा जब उसे होश आता था तब उसे अपने विवाहित होने का पता चलता था।