तुलसी विवाह | Tulsi Vivah
आज आपको तुलसी विवाह कथा (Tulsi Vivah Katha) तुलसी विवाह कैसे किया जाता है (Tulsi Vivah Story) तुलसी विवाह गीत (Tulsi Vivah ki Kahani) तुलसी विवाह की आरती के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे।
तुलसी विवाह देव उठनी एकादशी भी कहलाती है। तुलसी विवाह का महत्व हिंदू धर्म में इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस दिन से ही शादी-विवाह का लग्न शुरू हो जाता है। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने सोने के बाद जागते हैं। जो भी महिलाएं कार्तिक स्नान करतीं हैं वे इस दिन तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम से करवातीं हैं.
तुलसी विवाह की कहानी | Tulsi Vivah Katha
तुलसी से जुड़ी एक कथा बहुत प्रचलित है। श्रीमद देवि भागवत पुराण में इनके अवतरण की दिव्य लीला कथा भी बनाई गई है। एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।
दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहां से पराजित होकर वह देवि पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।
भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु मां ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहां से अंतध्यान हो गईं। देवि पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत ज़रूरी था।
इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा।
ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्चिछत हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।
भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का ज़रा आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।
इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को शिला होने का श्राप दे दिया तथा स्वयं सति हो गईं। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उगा। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा, ‘हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।’
जिस घर में तुलसी होती हैं, वहां यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। गंगा व नर्मदा के जल में स्नान तथा तुलसी का पूजन बराबर माना जाता है। चाहे मनुष्य कितना भी पापी क्यों न हो, मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। जो मनुष्य तुलसी व आवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।
तुलसी विवाह कैसे किया जाता है
कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी यानी की देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी जी का विवाह शालिग्राम के साथ किया जाता है। कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पांचवें दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह करते हैं। तुलसी विवाह के समय शाम को तुलसी के पौधे को घर के आंगन या छत के बीचों-बीच में रखा जाना चाहिए। आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है।
तुलसी विवाह सामग्री लिस्ट
पूजा में मूली, आंवला, बेर, शकरकंद, सिंघाड़ा, मूली, सीताफल, अमरुद और अन्य ऋतु, मंडप के लिए गन्ने, भगवान विष्णु की प्रतिमा, तुलसी का पौधा, चौकी, धूप, दीपक, वस्त्र, माला, फूल, सुहाग का सामान, सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी, साड़ी, हल्दी।
तुलसी विवाह में मंडप ?
जिस प्रकार किसी शादी समारोह में विवाह मंडप होता है, उसी तरह से गन्ने का प्रयोग करके तुलसीजी और भगवान विष्णु के विवाह के लिए मंडप बनाया जाता है। गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
तुलसी विवाह कैसे करें
तुलसी विवाह संपन्न कराने के लिए एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए और तुलसी जी के साथ विष्णु जी की मूर्ति घर में स्थापित करनी चाहिए। तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाना चाहिए। पीला विष्णु जी की प्रिय रंग है। तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे के गमले को गेरु आदि से सजाएं। गमले के चारों ओर गन्ने का मंडप बनाएं। अब गमले के ऊपर ओढ़नी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाएं। तुलसी के पौधे को साड़ी पहनाएं। गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रृंगार करें।
इसके बाद एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं। आखिर में आरती करें, इसके साथ ही विवाहोत्सव संपन्न होता है। अगर आप चाहें तो पंडित या ब्राह्मण की सहायता से भी विधिवत रूप से तुलसी विवाह संपन्न कराया जा सकता है अन्यथा मंत्रोच्चारण “ऊं तुलस्यै नम:” के साथ स्वयं भी तुलसी विवाह किया जा सकता है।
तुलसी विवाह गीत | Tulsi Vivah Geet
मेरी तुलसी रानी का ब्याह, के मंगल गावो रे,
तुलसी राणी को नथ पहनावों,
तुलसी राणी को नथ पहनावों,
सोहणी चुनरी है लाल,
के मंगल गावो रे,
मेरी तुलसी रानी का ब्याह, के मंगल गावो रे,
तुलसी राणी को चूड़ियाँ पहनाओं,
कार्तिक का आया है मास,
के मङ्गल गावो रे,
मेरी तुलसी रानी का ब्याह, के मंगल गावो रे,
तुलसी रानी को सिन्दूर लगाओ,
एकादशी का दिन है आज,
के मङ्गल गावो रे,
मेरी तुलसी रानी का ब्याह, के मंगल गावो रे,
शालिग्राम बने हैं दूल्हा,
सोहणों मंडप सजा है ख़ूब,
के मङ्गल गावो रे,
मेरी तुलसी रानी का ब्याह, के मंगल गावो रे,
तुलसी रानी के फेरे काराओं,
करो पुरे विवाह संस्कार,
के मङ्गल गावो रे, मेरी तुलसी रानी का ब्याह
मेरी तुलसी रानी का ब्याह, के मंगल गावो रे,
तुलसी विवाह की आरती | Tulsi Vivah Aarti
जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।
बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।
हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।