महाशिवरात्रि की कथा, महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है 10 लाइन

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है

फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को महा शिवरात्रि (महाशिवरात्रि की कथा) के नाम से जाना जाता है। इस दिन उपवास सहित विधि विधान से भगवान शिव की पूजा करने से नरक का योग मिटता है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि की रात ग्रहों की दशा कुछ ऐसी होती है जो हममें शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर कर देती है. लेकिन इसे पाने के लिए हमें रात भर जागना होता है वह भी साधनारत होकर.

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है – महाशिवरात्रि पर 10 लाइन

अमावस्या से एक दिन पहले हर चंद्र महीने के 14वीं रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है. इस रात अध्यात्म में दिलचस्पी रखने वाले लोग साधना करते हैं. माघ के चंद्र महीने में पड़ने वाली 12वीं शिवरात्रि को महाशिवरात्रि की संज्ञा दी गई है. यह शुभ अवसर साल में एक बार ही मिलता है. इसे महाशिवरात्रि इसलिए कहते हैं क्योंकि 12 शिवरात्रों में इसे सबसे ज्यादा शक्तिशाली और प्रभावी माना गया है.

यह कोई जरूरी नहीं कि साधना करने वालों की जिंदगी में ही सिर्फ आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है. लेकिन इतना जरूर कहा गया है कि साधक योग साधना करते हैं जिससे उनमें ऊर्जा का संचार आसानी से होता है.

महाशिवरात्रि की कथा 

महाशिवरात्रि’ के विषय में भिन्न – भिन्न मत हैं, कुछ विद्वानों का मत है कि आज के ही दिन शिवजी और माता पार्वती विवाह-सूत्र में बंधे थे जबकि अन्य कुछ विद्वान् ऐसा मानते हैं कि आज के ही दिन शिवजी ने ‘कालकूट’ नाम का विष पिया था जो सागरमंथन के समय समुद्र से निकला था | ज्ञात है कि यह समुद्र मंथन देवताओं और असुरों ने अमृत-प्राप्ति के लिए किया था | एक शिकारी की कथा भी इस त्यौहार के साथ जुड़ी हुई है कि कैसे उसके अनजाने में की गई पूजा से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उस पर अपनी असीम कृपा की थी | यह कथा पौराणिक “शिव पुराण” में भी संकलित है –

महाशिवरात्रि की कथा
महाशिवरात्रि की कथा

महाशिवरात्रि व्रत कथा

प्राचीन काल में, किसी जंगल में एक गुरुद्रुह नाम का एक शिकारी रहता था जो जंगली जानवरों का शिकार करता तथा अपने परिवार का भरण-पोषण किया करता था| एक बार शिव-रात्रि के दिन जब वह शिकार के लिए निकला , पर संयोगवश पूरे दिन खोजने के बाद भी उसे कोई शिकार न मिला, उसके बच्चों, पत्नी एवं माता-पिता को भूखा रहना पड़ेगा इस बात से वह चिंतित हो गया , सूर्यास्त होने पर वह एक जलाशय के समीप गया और वहां एक घाट के किनारे एक पेड़ पर थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर, चढ़ गया क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि कोई न कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए यहाँ ज़रूर आयेगा | वह पेड़ ‘बेल-पत्र’ का था और उसी पेड़ के नीचे शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्रों से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहा था |

रात का पहला प्रहर बीतने से पहले एक हिरणी वहां पर पानी पीने के लिए आई |उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष पर बाण साधा | ऐसा करने में, उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते एवं जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर गिरीं और अनजाने में ही शिकारी की पहले प्रहर की पूजा हो गयी |हिरणी ने जब पत्तों की खड़खड़ाहट सुनी, तो घबरा कर ऊपर की ओर देखा और भयभीत हो कर, शिकारी से , कांपते हुए स्वर में बोली- ‘मुझे मत मारो |’ शिकारी ने कहा कि वह और उसका परिवार भूखा है इसलिए वह उसे नहीं छोड़ सकता |

हिरणी ने वादा किया कि वह अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर लौट आयेगी| तब वह उसका शिकार कर ले | शिकारी को उसकी बात का विश्वास नहीं हो रहा था | उसने फिर से शिकारी को यह कहते हुए अपनी बात का भरोसा करवाया कि जैसे सत्य पर ही धरती टिकी है, समुद्र मर्यादा में रहता है और झरनों से जल-धाराएँ गिरा करती हैं वैसे ही वह भी सत्य बोल रही है | क्रूर होने के बावजूद भी, शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसने ‘जल्दी लौटना’ कहकर , उस हिरनी को जाने दिया |

थोड़ी ही देर बाद एक और हिरनी वहां पानी पीने आई, शिकारी सावधान हो गया, तीर सांधने लगा और ऐसा करते हुए, उसके हाथ के धक्के से फिर पहले की ही तरह थोडा जल और कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गयी | इस हिरनी ने भी भयभीत हो कर, शिकारी से जीवनदान की याचना की लेकिन उसके अस्वीकार कर देने पर ,हिरनी ने उसे लौट आने का वचन, यह कहते हुए दिया कि उसे ज्ञात है कि जो वचन दे कर पलट जाता है ,उसका अपने जीवन में संचित पुण्य नष्ट हो जाया करता है | उस शिकारी ने पहले की तरह, इस हिरनी के वचन का भी भरोसा कर उसे जाने दिया |

अब तो वह इसी चिंता से व्याकुल हो रहा था कि उन में से शायद ही कोई हिरनी लौट के आये और अब उसके परिवार का क्या होगा | इतने में ही उसने जल की ओर आते हुए एक हिरण को देखा, उसे देखकर शिकारी बड़ा प्रसन्न हुआ, अब फिर धनुष पर बाण चढाने से उसकी तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो गयी लेकिन पत्तों के गिरने की आवाज़ से वह हिरन सावधान हो गया |

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उसने शिकारी को देखा और पूछा –“ तुम क्या करना चाहते हो ?” वह बोला-“अपने कुटुंब को भोजन देने के लिए तुम्हारा वध करूंगा |” वह मृग प्रसन्न हो कर कहने लगा – “मैं धन्य हूँ कि मेरा यह शरीर किसी के काम आएगा, परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जायेगा पर कृपया कर अभी मुझे जाने दो ताकि मैं अपने बच्चों को उनकी माता के हाथ में सौंप कर और उन सबको धीरज बंधा कर यहाँ लौट आऊं |”

शिकारी का ह्रदय, उसके पापपुंज नष्ट हो जाने से अब तक शुद्ध हो गया था इसलिए वह विनयपूर्वक बोला –‘ जो-जो यहाँ आये, सभी बातें बनाकर चले गये और अभी तक नहीं लौटे ,यदि तुम भी झूठ बोलकर चले जाओगे ,तो मेरे परिजनों का क्या होगा ?” अब हिरन ने यह कहते हुए उसे अपने सत्य बोलने का भरोसा दिलवाया कि यदि वह लौटकर न आये; तो उसे वह पाप लगे जो उसे लगा करता है जो सामर्थ्य रहते हुए भी दूसरे का उपकार नहीं करता | शिकारी ने उसे भी यह कहकर जाने दिया कि ‘शीघ्र लौट आना |

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रात्रि का अंतिम प्रहर शुरू होते ही उस शिकारी के हर्ष की सीमा न थी क्योंकि उसने उन सब हिरन-हिरनियों को अपने बच्चों सहित एक साथ आते देख लिया था |उन्हें देखते ही उसने अपने धनुष पर बाण रखा और पहले की ही तरह उसकी चौथे प्रहर की भी शिव-पूजा संपन्न हो गयी | अब उस शिकारी के शिव कृपा से सभी पाप भस्म हो गये इसलिए वह सोचने लगा-‘ओह, ये पशु धन्य हैं जो ज्ञानहीन हो कर भी अपने शरीर से परोपकार करना चाहते हैं लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को कि मैं अनेक प्रकार के कुकृत्यों से अपने परिवार का पालन करता रहा |’ अब उसने अपना बाण रोक लिया तथा मृगों से कहा की वे सब धन्य है तथा उन्हें वापिस जाने दिया |

उसके ऐसा करने पर भगवान् शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया तथा उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर “गुह’’ नाम प्रदान किया | मित्रों, यही वह गुह था जिसके साथ भगवान् श्री राम ने मित्रता की थी |

शिव जी जटाओं में गंगाजी को धारण करने वाले, सिर पर चंद्रमा को सजाने वाले, मस्तक पर त्रिपुंड तथा तीसरे नेत्र वाले ,कंठ में कालपाश [नागराज] तथा रुद्राक्ष माला से सुशोभित , हाथ में डमरू और त्रिशूल है जिनके और भक्तगण बड़ी श्रद्दा से जिन्हें शिवशंकर, शंकर, भोलेनाथ, महादेव, भगवान् आशुतोष, उमापति, गौरीशंकर, सोमेश्वर, महाकाल, ओंकारेश्वर, वैद्यनाथ, नीलकंठ, त्रिपुरारि, सदाशिव तथा अन्य सहस्त्रों नामों से संबोधित कर उनकी पूजा-अर्चना किया करते हैं — ऐसे भगवान् शिव एवं शिवा हम सबके चिंतन को सदा-सदैव सकारात्मक बनायें एवं सबकी मनोकामनाएं पूरी करें |

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