सावन में शिव भक्तों की हर-हर महादेव, बम-बम भोले, जय शिव शंभू की पवित्र गूंजों से हर शिवालय गूंज उठता है। इस अवसर पर देवाधिदेव महादेव की उपासना, व्रत एवं संकल्प के द्वारा आत्मबोध की झलक-झांकी पाने का प्रयास किया जाता है। यह साधना का परम दुर्लभ योग है, जिसमें उपवास और उपासना करने वाले पर महादेव महाकाल की कृपा बरसती है। भगवान भूतनाथ उस पर ही प्रसन्न होते हैं। सदाशिव महामृत्यंजय उसका परमकल्याण करते हैं।
शिवरात्रि अर्थात भगवान् शिव की आराधना अभ्यर्थना की रात्रि। प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मास शिवरात्रि कहते हैं और फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहते हैं। महाशिवरात्रि को महादेव से मिलन की रात्रि है। इसमें आत्मा का मंगलकारी शिव से मिलन संयोग होता है। भोलेनाथ के संग सुवास में इस मिलन की महत्ता और भी बढ़ जाती है।
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शिवरात्रि बोधोत्सव है, ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव के अंश हैं, हम भी शिव अर्थात कल्याणकारी हैं। महाशिवरात्रि उपदेश देती है कि हम जीव को शिव मानकर उसकी सेवा करें। जीवन में श्रेष्ठ व मंगलकारी व्रतों, संकल्पों तथा विचारों को दोहराने व अपनाने की प्रेरणा प्रदान करती है महाशिवरात्रि। नव चेतना का संचार करने, हर साल आती है महाशिवरात्रि।
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भारतीय जीवन धारा में आत्मबोध का स्वर सदा से है और सर्वत्र मुखर रहा है। उपनिषदों की विचार भूमि से भी यही अमृतोपम विचार उद्घोषित हो रहा है- आत्मानं विद्धिः अर्थात् संसार को जानने के साथ-साथ स्वयं को भी पहचानो। बिना आत्मज्ञान के मानव जीवन की सच्ची सार्थकता सिद्धि नहीं हो सकती है।
महाशिवरात्रि के गूढ़ उद्देश्य को समझने और जानने के लिए माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से पूछा- है भगवन्! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के हेतु आप हो। साधकों की साधना से संतुष्ट होकर आप ही वर प्रदान करते हो। अतः यह जानने की इच्छा होती है कि किस प्रकार के कर्म, किस व्रत या किस प्रकार की तपस्या से तुम प्रसन्न होते हो? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-
फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथिः स्याच्चतुर्दशी।
तस्यां या तामसी रात्रिः सोच्यते शिवरात्रिका।।
तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां धु्रवम्।
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया।।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः॥
फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आश्रय लेकर जिस अंधकारमयी रजनी का उदय होता है, उसे महाशिवरात्रि कहते है। उस दिन जो उपवास करता है, वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है। शिवपुराण में शिव सूत जी के संवाद का उल्लेख मिलता है। शिवजी से सूत जी ने पूछा- ‘हे भगवन्! जिस व्रत के अनुष्ठान से भक्तजनों को भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो सके, उसका आप विशेष रूप से वर्णन करें।’
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यही प्रश्न ब्रह्मा, विष्णु तथा माता पार्वती ने भी शिवजी से पूछा था। इसके जवाब में शिवजी कहते हैं- ‘‘मेरे बहुत से व्रत हैं जो भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। उनमें मुख्य दस व्रत हैं- जिन्हें जाबाल श्रुति के विद्वान ‘दस शैवव्रत’ कहते हैं।’’ मुक्तिमार्ग में प्रवीण पुरुषों को मोक्ष की प्राप्ती करानेवाले चार व्रतों का नियमपूर्वक पालन करना चाहिए। यह चार व्रत है- शिवजी की पूजा, रुद्र मंत्रों का जप, शिव मंदिर में उपवास तथा काशी में रमण। यह मोक्ष के सनातन मार्ग हैं। यहां पर काशीतीर्थ मात्र भौतिक स्थान से संबंधित नही, बल्कि अपने साथ एक आध्यात्मिक रहस्य को सजोए हैं।
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भगवान् भोलेनाथ आगे कहते है कि इन चारों में भी महाशिवरात्रि का व्रत अपने में सबसे अधिक महत्ता और विशेषता को समेटे हुए है। अतः भोग और मोक्ष रूपी फल की इच्छा रखने वाले लोगों को मुख्यतः इस महाव्रत का पालन करना चाहिए। यह व्रत सबके लिए धर्म का उत्तम साधन है। निष्काम अथवा सकाम भाव रखने वाले सभी के लिए यह श्रेष्ठ व्रत हितकारक है। शिवरात्रि घोर पाप-संताप और संकटो से मुक्तिदायिनी है। इस व्रत का भक्तिपूर्वक पालन करने से उपासक के समस्त दुःखों का नाश होता है और उसे भोग, मोक्ष आदि संपूर्ण मनोवांछित फलों की उपलब्धि होती है।