शिखा (चोटी) का महत्व क्यों ?
शिखा (चोटी) को हिंदू धर्म का एक उपलक्षण माना गया है। प्रकृति एवं विज्ञान के नियमों को ध्यान में रखकर ‘शिखा शास्त्र’ की रचना की गई है। शिखा संस्कार को ही चूडा़-कर्म कहा गया है। शिखा का भेद समझने के लिए हमें सर्वप्रथम मस्तक की रचना समझनी चाहिए। मस्तक के दो भाग होते हैं। यह आपस में जुडे़ रहते हैं। शरीर में स्थित इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाडी़ मस्तक के दोनों कपालों के मध्य से ऊध्र्व दिशा यानी ऊपर की ओर जाती है। मानव का सर्वाेच्च लक्ष्य आत्म साक्षात्कार है। यह साक्षात्कार सुषुम्ना नाडी़ के माध्यम से होता है।
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सुषुम्ना नाडी़ अपान मार्ग से होती हुई मस्तक द्वारा ब्रह्मरंध्र में विलीन हो जाती है। ज्ञान, क्रिया और इच्छा-इन तीनों शक्तियों का संगम हैं ब्रह्मरंध्र। इसी कारण मस्तक के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मरंध्र को अधिक ठंडापन महसूस होता हैं। इसलिए उतने भाग पर बालों का होना बहुत ही आवश्यक हैं। बाहर ठंडी हवा होने पर बाल ब्रह्मरंध में पर्याप्त रूप से गर्मी बनाए रखते हैं।
शिखा को इंद्रयोनि भी कहा गया है। कर्म, ज्ञान और इच्छा से संबंधित ऊर्जा इंद्रियों को ब्रह्मरंध्र के माध्यम से ही प्राप्त होती है। शिखा को मनुष्य का ‘एंटिना’ कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा। जिस प्रकार दूरदर्शन या आकाशवाणी की तरंगों को पकडने के लिए एंटिना का उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मण्डीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए शिखा को माध्यम बनाया गया है। अन्य मर्म स्थलों की अपेेक्षा ब्रह्मरंध्र अति महत्त्वपूर्ण एवं बहुत कोमल है। इसी कारण शिखा की योजना इस स्थान पर हुई है।
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मंत्र पढते हुए या अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते समय शिखा पर गांठ बांधनी चाहिए। इसका कारण यह है कि गांठ बांधने से मंत्र स्पंदनों द्वारा उत्पन्न होने वाली ऊर्जा शरीर में ही एकत्रित होती हैं। शिखा के माध्यम से व्यर्थ नही जाती है। अतिरिक्त ऊर्जा होने पर संक्रामक आसन से वह अपने आप निकल जाती हैं संध्या करते समय शिखा बंधन स्वतंत्र विधि है। शिखा ग्रंथि में चामुण्डा देवी का अधिष्ठान माना गया हैं चामुंडा देवी विचार प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण रोकती हैं, अतः तिष्ठ देवि शिखा बन्धे प्रार्थना उनके लिए ही की जाती हैं।
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‘आयुर्वेद’ में मांस मर्म, शिरा मर्म, स्नायु मर्म, अस्थि मर्म एवं संधि मर्म आदि कुल एक सौ सात मर्म है। उनमें से अति महत्वपूर्ण उन्नीस मर्म-अधिप हैं। अधिपों की रक्षा के लिए यहां अधिक केस रहते है। ब्रह्मरंध्र मर्म सम्राट है। इस कारण वहां अधिक केश पाए जाते हैं। इस तरह शिखा रखना स्वास्थ्या एवं आध्यात्मिक प्रगति के लिए हितकारी होता है।