षटतिला एकादशी व्रत कथा – Shattila Ekadashi Vrat Katha

Shattila Ekadashi Vrat Katha – षटतिला एकादशी की कथा 

Shattila Ekadashi Vrat Katha – माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी षटतिला एकादशी कहलाती है। वैसे तो माघ महीने के हर दिन को पवित्र माना जाता है लेकिन एकादशियों का अपना विशेष महत्व है। हालांकि वर्ष की सभी एकादशियां व्रत, दान-पुण्य आदि के लिये बहुत शुभ होती हैं लेकिन माघ चूंकि पावन मास कहलाता है इसलिये इस मास की एकादशियों का भी खास महत्व है।

षटतिला एकादशी का महत्व – Shattila Ekadashi Significance 

दरअसल माघ मास में शरद ऋतु अपने चरम पर होती है और मास के अंत के साथ ही सर्दियों के जाने की आहट भी होने लगती है। इस मौसम में तिलों का व्यवहार बहुत बढ़ जाता है क्योंकि यह सर्दियों में बहुत ही लाभदायक रहता है। इसलिये स्नान, दान, तर्पण, आहार आदि में तिलों का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि तिलों का छह प्रकार से उपयोग इस दिन किया जाता है जिसमें तिल से स्नान, तिल का उबटन, तिलोदक, तिल का हवन, तिल से बने व्यंजनों का भोजन और तिल का ही दान किया जाता है। तिल के छह प्रकार से इस्तेमाल करने के कारण ही इसे षटतिला कहा जाता है।

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षटतिला एकादशी व्रत कथा – Shattila Ekadashi Vrat Katha

पौराणिक ग्रंथों में षटतिला एकादशी की कथा कुछ यूं मिलती है। क्या होता है कि एक बार देवर्षि नारद, भगवान विष्णु के दरबार में जा पंहुचे और बोले भगवन माघ मास की कृष्ण एकादशी का क्या महत्व है, इसकी कहानी क्या हैं, मार्गदर्शन करें। श्री हरि नारद के अनुरोध पर कहने लगे हे देवर्षि इस एकादशी का नाम षटतिला एकादशी है। पृथ्वीलोक पर एक निर्धन ब्राह्मणी मुझे बहुत मानती थी। दान पुण्य करने के लिये उसके पास कुछ नहीं था लेकिन मेरी पूजा, व्रत आदि वह श्रद्धापूर्वक करती थी।

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एक बार मैं स्वंय उसके भिक्षा के लिये जा पंहुचा ताकि उसका उद्धार हो सके अब उसके पास कुछ देने के लिये कुछ था नहीं तो क्या करती है कि मुझे मिट्टी का एक पिंड दे देती है। कुछ समय पश्चात जब वह काल का ग्रास बनीं तो अपने को एक मिट्टी के खाली झौंपड़े में पाती है जहां केवल एक आम का पेड़ ही उसके साथ था। वह मुझसे पूछती है कि हे भगवन मैनें तो हमेशा आपकी पूजा की है फिर मेरे साथ यहां स्वर्ग में भी ऐसा क्यों हो रहा है।

तब मैनें उसे भिक्षा वाला वाकया सुना दिया, ब्राह्मणी पश्चाताप करते हुए विलाप करने लगी। अब मैने उससे कहा कि जब देव कन्याएं आपके पास आयें तो दरवाजा तब तक न खोलना जब तक कि वह आपको षटतिला एकादशी की व्रत विधि न बता दें। उसने वैसा ही किया। फिर व्रत का पारण करते ही उसकी कुटिया अन्न धन से भरपूर हो गई और वह बैकुंठ में अपना जीवन हंसी खुशी बिताने लगी। इसलिये हे नारद जो कोई भी इस दिन तिलों से स्नान दान करता है। उसके भंडार अन्न-धन से भर जाते हैं। इस दिन जितने प्रकार से तिलों का व्यवहार व्रती करते हैं उतने हजार साल तक बैकुंठ में उनका स्थान सुनिश्चित हो जाता है।

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