जानिए गणेश चतुर्थी आयोजन का गूढ़ रहस्य

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गणेश चतुर्थी आयोजन – Secrets Of Ganesh Chaturthi 

Ganesh Chaturthi in Hindi – गणपति उपासना दरअसल स्व-जागरण की एक तकनीकी प्रक्रिया है। ढोल नगाड़ों से जुदा और बाहरी क्रियाकलाप से इतर अपनी समस्त इंद्रियों पर नियंत्रण करके ध्यान के माध्यम से अपने अंदर ईश्वरीय तत्व का परिचय प्राप्त करना और मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होना ही वास्तविक गणेश पूजन है। विनायक कहीं बाहर नहीं हमारे भीतर, सिर्फ हमारे अंतर्मन में ही विराजते हैं। हमारे मूलाधार चक्र पर ही उनका स्थायी आवास है।

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गणेश है मूलाधार चक्र के अधिपति

समस्त गणों यानी इंद्रियों के अधिपति हैं महागणाधिपति। आदि देव गणेश जल तत्व के प्रतीक हैं। मूलाधार चक्र हमारे स्थूल शरीर का प्रथम चक्र माना जाता है। यही वो चक्र है, जिस पर यदि कोई जुम्बिश ना हो, जो यदि ना सक्रिय हुआ तो आज्ञाचक्र पर अपनी जीवात्मा का बोध मुमकिन नहीं है। ज्ञानी ध्यानी गणपति चक्र यानी मूलाधार चक्र के जागरण को ही कुण्डलिनी जागरण के नाम से पहचानते हैं।

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नकारात्मक कर्म और कष्टों से मुक्ति की यात्रा है ये 10 दिन – Ganesh Chaturthi Festival

कालांतर में जब हमसे हमारा स्वयं का बोध खो गया, हम कर्मों के फल को विस्मृत करके भौतिकता में अंधे होकर उलटे कर्मों के ऋण जाल में फंसकर छटपटाने लगे, हमारे पूर्व कर्मों के फलों ने जब हमारे जीवन को अभावग्रस्त कर दिया, तब हमारे ऋषि मुनियों ने हमें उसका समाधान दिया और हमें गणपति के कर्मकांडीय पूजन से परिचित कराया। पूर्व के नकारात्मक कर्म जनित दुःख, दारिद्रय, अभाव व कष्टों से मुक्ति या इनसे संघर्ष हेतु शक्ति प्राप्त करने के लिए, शारदातिलकम, मंत्र महोदधि, महामंत्र महार्णव सहित तंत्रशास्त्र के कई प्राचीन ग्रंथों में भाद्रपाद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानी 10 दिनों तक गणपति का विग्रह स्थापित करके उस पर ध्यान केंद्रित कर उपासना का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है।

गणेश तंत्र के अनुसार भाद्रपद की चतुर्थी को अपने अंगुष्ठ आकार के गणपति की प्रतिमा का निर्माण करके विधि विधान पूर्वक स्थापित करके, उनका पंचोपचार पूजन करें और उनके समक्ष ध्यानस्थ होकर ‘मंत्र जप’ करना आत्मशक्ति के बोध की अनेकानेक तकनीकों में से एक है।

गणपति के बीज मंत्र से मिलेगी ऐश्वर्य और समृद्धि 

यूं तो मंत्र सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करने का विषय नहीं है। इसे व्यक्तिगत रूप से किसी सक्षम और समर्थ गुरु से ही लेना चाहिए। इससे उस मंत्र को क्रियाशील होने के लिए शून्य से आरंभ नहीं करना पड़ता। सिर्फ संदर्भ के लिए, गकार यानी पंचांतक पर शशिधर अर्थात् अनुस्वर अथवा शशि यानी विसर्ग लगने से निर्मित “गं” या “ग:” गणपति का बीज मंत्र कहलाता है। इसके ऋषि गणक, छंद निवृत्त और देवता विघ्नराज हैं।

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अलग-अलग ऋषियों ने गणपति के पृथक-पृथक मंत्रों को प्रतिपादित किया है। भार्गव ऋषि ने अनुष्टुप छंद, वं बीज और यं शक्ति से “वक्रतुण्डाय हुम” और विराट छंद से “ॐ ह्रीं ग्रीं ह्रीं” को प्रकट किया। वहीं गणक ऋषि ने “गं गणपतये नमः” और कंकोल ऋषि ने “हस्तिपिशाचिलिखै स्वाहा” को जगत के समक्ष रखा।

इन मंत्रों का सवा लाख जप (कलयुग में चार गुना ज्यादा, यानि 5 लाख) किया जाय और चतुर्दशी को जापित संख्या का जीरे, काली मिर्च, गन्ने, दूर्वा, घृत, मधु इत्यादि हविष्य से दशांश आहुति दी जाय तो हमारे नित्य कर्म और आचरण में ऐसे कर्मों का शुमार होने लगता है जो हमें कालांतर में समृद्ध बनाते हैं, ऐश्वर्य प्रदान करते हैं, ऐसा पवित्र ग्रंथ कहते हैं।

हल्दी के गणपति से पुनः यश और प्रतिष्ठा प्राप्त होगी – Ganesh Chaturthi Puja

गणपति तंत्र कहता है कि अगर हमने दूसरों की आलोचना और निंदा करके यदि अपने यश, कीर्ति, मान और प्रतिष्ठा का नाश करके स्वयं को शत्रुओं से घेर लिया हो, और बाह्य तथा आंतरिक दुश्मनों ने जीवन का बेड़ा गर्क कर दिया हो, तो भाद्रपद की चतुर्थी को अंगूठे के आकार के हल्दी के गणपति की स्थापना उसके चतुर्दशी तक “ग्लौं” बीज का कम से कम सवा लाख जप किया जाए तो हमें अपने आंतरिक व बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्ति में सहायता मिलती है।

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रक्त चंदन के गणपति से उत्तम जीवन प्राप्त होगा – Ganesh Chaturthi Puja

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद की चतुर्थी को रक्त चंदन या सितभानु ( सफेद आक) के गणपति की अंगुष्ठ आकार की प्रतिमा की स्थापना करके चतुर्दशी तक नित्य अष्ट मातृकाओं ( ब्राम्‍ही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी, चामुंडा एवं रमा) तथा दस दिशाओं में वक्रतुंड, एक दंष्ट्र, लंबोदर, विकट, धूम्रवर्ण, विघ्न, गजानन, विनायक, गणपति, एवं हस्तिदन्त का पूजन करके मंत्र जप और नित्य तिल और घृत की आहुति उत्तम जीवन प्रदान करती है।

मिट्टी से निर्मित गणपति से शत्रुओ का नाश निश्चित है – Ganesh Chaturthi Puja

कुम्हार के चाक की मिट्टी से निर्मित प्रतिमा से संपत्ति, गुड़ निर्मित प्रतिमा से सौभाग्य और लवण की प्रतिमा की उपासना से शत्रुता का नाश होता है। ऐसी प्रतिमा का निर्माण यथासंभव स्वयं करें, या कराएं, जिसका आकार अंगुष्ठ यानि अंगूठे से लेकर हथेली अर्थात् मध्यमा अंगुली से मणिबंध तक के माप का हो।

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विशेष परिस्थितियों में भी इसका आकार एक हाथ जितना यानी मध्यमा अंगुली से लेकर कोहनी तक हो सकता है। इसके रंगों के कई विवरण मिलते हैं, पर कामना पूर्ति के लिए रक्त वर्ण यानी लाल रंग की प्रतिमा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। गणपति साधना में मिट्टी, धातु, लवण, दही जैसे कई तत्वों की प्रतिमा का उल्लेख मिलता है, पर प्राचीन ग्रंथ चतुर्थी से चतुर्दशी तक की इस उपासना में विशेष रूप से कुम्हार के चाक की मिट्टी के नियम की संस्तुति करते हैं। ध्यान रहे कि शास्त्रों में कहीं भी विशालकाय प्रतिमा का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है।

गणेश जी को यही भोग पसंद है – Ganesh Chaturthi Bhog

शारदातिलकम के त्रयोदश पटल यानि गणपति प्रकरण में लिखा है कि अष्ट द्रव्य यानि मोदक, चिउड़ा, लावा, सत्तू, गन्ने का टुकड़ा, नारियल, शुद्ध तिल और पके हुए केले को विघ्नेश्वर का नैवेद्य माना गया है।

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