सनातन धर्म के तीन काण्ड – कर्म, ज्ञान और भक्ति

सनातन धर्म के तीन काण्ड

सनातन धर्म (हिंदू धर्म या वैदिक धर्म) के धार्मिक ग्रंथ वेदों में, तीन मार्ग बताए गए हैं। मनुष्य क्या करे और क्या नहीं करे, वह किस मार्ग पर चले, उसका आचरण कैसा हो, वह कैसे अपने भौतिक और आध्यात्मिक उद्देश्य को प्राप्त करे – उसके लिये वेदों में तीन मार्ग हैं। इन तीन मार्गों को तीन काण्ड भी कहते है। दूसरे शब्दों में, सम्पूर्ण वैदिक धर्म को तीन काण्डों में विभाजित किया गया है। श्रीमद्भागवत पुराण ने कहा भागवत ११।२१।३५ ‘वेदा ब्रह्मात्मविषयास्त्रिकाण्डविषया’ अर्थात् वेदों में तीन काण्ड हैं। श्रीमद्भागवत पुराण में, श्रीकृष्ण ने योग शब्द का उपयोग करते हुए इन तीनों काण्डों का उल्लेख किया है।

श्रीभगवानुवाच-

योगास्त्रयो मया प्रोक्ता नॄणां श्रेयोविधित्सया।
ज्ञानं कर्म च भक्तिश्च नोपायोऽन्योऽस्ति कुत्रचित्॥भागवत ११।२०।६

भावार्थः – भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- प्रिय उद्धव! मैंने ही वेदों में एवं अन्यत्र भी मनुष्यों का कल्याण करने के लिये अधिकारिभेद से तीन प्रकार के योगों का उपदेश किया हैं। वे हैं – ज्ञान, कर्म और भक्ति। मनुष्य के परम कल्याण के लिये इनके अतिरिक्त और कोई उपाय कहीं नहीं है। अतएव वेदों में तीन काण्ड है –

1। कर्मकाण्ड

2। ज्ञानकाण्ड

3। भक्ति / उपासना काण्ड

ध्यान दे, उपर्युक्त भागवत ११।२०।६ में श्रीकृष्ण ने तीन काण्ड को ‘योग’ शब्द का प्रयोग करते हुए कहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि योग का अर्थ होता है ‘मिलन’। मनुष्य का उसके उद्देश्य से कैसे मिलन हो, उसके लिए यह तीन काण्ड है। फिर इस श्लोक में, श्री कृष्ण ने इन तीन काण्ड को मनुष्य के परम कल्याण का मार्ग कहा है। यह परम कल्याण मार्ग है क्योंकि इससे मनुष्य मोक्ष, भक्ति आदि की अवस्था को प्राप्त कर सकता है। अतएव, इतने महत्वपूर्ण काण्ड को अब एक-एक करके संक्षेप में समझते है।

कर्मकाण्ड

कर्मकाण्ड का मूलतः सम्बन्ध मानव के सभी प्रकार के कर्मों से है, जिनमें धार्मिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं। एक लाख वेद मन्त्र में से अस्सी हजार कर्मकाण्ड की ऋचाएँ है। वेद के कर्मकाण्ड भाग में यज्ञादि विविध अनुष्ठानों का विशेष रूप से वर्णन मिलता है अतः यज्ञ कर्मकाण्ड का मुख्य विषय है। यज्ञ कर्मकाण्ड का मुख्य विषय होने के कारण कर्मकाण्ड में मंत्रों का प्रयोग (उच्चारण) किया जाता है। स्थूल रूप से धार्मिक क्रियाओं को ही ‘कर्मकाण्ड’ कहते हैं। सरल शब्दों में कहे तो कर्मकाण्ड में वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) और आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्था, वानप्रस्थ, संन्यास) अर्थात् वर्णाश्रम धर्म का पालन करना होता है। जो भक्ति को छोड़कर केवल कर्मकाण्ड के नियम को अपनाते है, मान-सम्मान, धन, स्वर्ग आदि की अभिलाषा में, उन्हें कर्मकाण्डी कहा जाता है।

ज्ञानकाण्ड

वेद का अधिकांश कर्मकाण्ड से परिपूर्ण है, शेष अल्पभाग ज्ञानकाण्ड है। एक लाख वेद मन्त्र में से चार हजार ज्ञान काण्ड की ऋचाएँ है। इसमें जीव और ब्रह्म के पारस्परिक संबंध, स्वरूप, लोक, परलोक आदि पर विचार किया गया है। इसके अतिरिक्त, ज्ञानकाण्ड में भगवान के निराकार स्वरूप पर अधिक विचार किया गया हैं। जो निराकार ब्रह्म (भगवान) के स्वरूप के उपासक हैं उन्हें ज्ञानी कहा जाता है। वेद के ज्ञानकाण्ड के अधिकारी बहुत थोड़े से व्यक्ति होते हैं। अधिकांश कर्मकाण्ड के अधिकारी हैं। तुलसीदास जी रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में लिखते है ‘ग्यान पंथ कृपान कै धारा। परत खगेस होइ नहिं बारा॥’ अर्थात् “ज्ञान का मार्ग कृपाण (दोधारी तलवार) की धार के समान है। हे पक्षीराज! इस मार्ग से गिरते देर नहीं लगती।” इसलिए ज्ञान मार्ग पर चलना बहुत ही कठिन है।

भक्ति / उपासनाकाण्ड

उपासनाकाण्ड में ईश्वर-भजन की विधि बताई गई है। इसके पालन करने से मनुष्य को लोक-परलोक में सुख मिलता है और भगवान की प्राप्ति होती है। एक लाख वेद मन्त्र में से सोलह हजार उपासना काण्ड की ऋचाएँ है। ‘उपासना’ का शब्दार्थ है – ‘उप – समीप और आसना – बैठना।’ उपासना को आराधना और भक्ति भी कहा जाता है। इसलिए उपासना काण्ड का दूसरा नाम भक्तिकाण्ड भी है। कर्मकाण्ड और विशेष रूप से ज्ञानकाण्ड के लिए, पहले अधिकारी बनना पड़ता है। परन्तु भक्ति / उपासना काण्ड के सभी अधिकारी है चाहे वो किसी भी वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) का हो या किसी भी आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्था, वानप्रस्थ, संन्यास) में हो। गीता में कहा गया –

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्॥गीता ९।३२

भावार्थ :- (भगवान श्री कृष्ण ने कहा) हे पार्थ! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डालादि जो कोई भी हों, वे भी मेरी शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं।यानी जो भगवान की शरण में गया, जिन्होंने भगवान की भक्ति की, वे परम गति को प्राप्त होते हैं। अतएव सभी लोग उपासना काण्ड यानी भक्ति करने के अधिकारी हैं। सबसे सुलभ मार्ग भक्ति है। उपासना / भक्ति काण्ड के मार्ग पर चलने वाले को भक्त कहा जाता है।

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