पितृ, सूर्य, लक्ष्मी, ब्रह्म गायत्री मंत्र और शिव गायत्री मंत्र का अर्थ

गायत्री मंत्र  – Gaytri Mantra 

शास्त्रों में गायत्री मंत्र को अति प्रभावकारी और फलदायी माना गया है, परन्तु अगर हम विशेष प्रयोजन की बात करे तो मंत्र जाप तभी सार्थक होता है जब किसी विशेष कार्य हेतु सम्पुट लगाकर तथा इच्छित संकल्प के साथ जाप किया जाये | साधको और मंत्र जाप करने वालों के लिए सम्पुट मंत्र कोई नया शब्द नहीं है, और जो नहीं जानते उनको मैं बता देता हूँ की सम्पुट मंत्र वह होता है जो किसी मंत्र के बाद बोला जाता है और हर मंत्र की पुनरावृति के साथ ही इस मंत्र का जाप होता है, इसे सम्पुट मंत्र कहते है |

यहाँ हम गायत्री मंत्र के साथ सम्पुट विधि से प्रयोजन सिद्धि के बारे में चर्चा कर रहे थे | गायत्री मंत्र वेदमाता गायत्री का मंत्र है और इस मंत्र को मनवांछित फल देने वाला तथा अति उत्तम माना गया है |

गायत्री मंत्र
गायत्री मंत्र

गायत्री मंत्र जाप विधि – Gayatri Mantra japa Vidhi

  • सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत होकर, स्वच्छ आसन लेकर पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके आसन पर बैठिये |
  • अब सबसे पहले गायत्री मन्त्र का आवाह्न करे तथा जाप आरम्भ करे |
  • तत्पश्चात जो भी कार्य आप करना चाहते है उसका संकल्प लेकर पूर्ण श्रृद्धा से माता भगवती गायत्री के चरणों में अर्पित कर देवें |
  • अब जाप आरम्भ करे तथा गायत्री मंत्र के बाद आपने जो भी सम्पुट लिया है उसका पाठ करे और यह क्रम आपको प्रत्येक मंत्र के बाद दोहराना होगा |

इस प्रकार सम्पुट लगाकर आप किसी भी मन्त्र का प्रयोग कर मनवांछित कार्य की सिद्धि प्राप्त सकते है, तथा इसके लिए आपको गायत्री माता में पूर्ण आस्था तथा विश्वास होना परम आवश्यक है | अत: आपको जाप करते  समय पूर्ण एकाग्रभाव से माँ भगवती का ध्यान करते रहना चाहिए |

कुछ विशेष और सर्वविदित सम्पुट जो प्रयोजन सिद्धि है, इस प्रकार है:-

सुख सम्पति की प्राप्ति के लिए – Mantra To Happiness & prosperity

सुख सम्पति की प्राप्ति के लिए गायत्री मंत्र जाप के साथ साथ इस मंत्र को सम्पुट लगाकर श्रृद्धा से माता गायत्री का ध्यान करते हुए जप करना चाहिए |

सम्पुट मंत्र – ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं 

संतान प्राप्ति के लिए – Mantra To Get Child

जिन लोगों को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ है, या जिनको इच्छित संतान की कामना हो उन्हें इस मंत्र का सम्पुट गायत्री मंत्र के साथ प्रयोग करना चाहिए | और यह ध्यान रहे की जाप अर्थात मन्त्रों की संख्या प्रतिदिन समान रहे | सम्पुट मंत्र इस प्रकार है:-

सम्पुट मंत्र – ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं 

विघ्न बाधा निवारण हेतु – Mantra To Get Rid From Disturbance And Interruption 

किसी भी प्रकार की विघ्न बाधा आने पर गायत्री मंत्र के साथ इस सम्पुट का उपयोग करने से माता भगवती की कृपा से सारे विघ्न दूर हो जाते है |

सम्पुट मंत्र – ऊँ ऐं हीं क्लीं 

मनोकामना सिद्धि के लिए – Mantra To Fulfillment All Wishes

मनोकामना सिद्धि प्राप्त करने हेतु गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र के प्रयोग से सारे मनोरथ पूरे हो जाते है | तथा माता गायत्री का श्रृद्धा पूर्वक ध्यान करना चाहिए |

सम्पुट मंत्र – ऊँ आं ह्रीं क्लीं 

विद्या प्राप्ति हेतु मंत्र – Mantra To Getting Wisdom & Education

विद्या की प्राप्ति हेतु गायत्री मंत्र के साथ इस सम्पुट मंत्र का श्रृद्धा पूर्वक जाप करना चाहिए | जिससे की माता गायत्री की कृपा से विद्या प्राप्त होती है |

सम्पुट मंत्र:- ऊँ ऍ ओम् 

गायत्री मंत्र के सम्पुट जाप के बाद हवन करना परमावश्यक है, क्योकि हवन करने से पुण्यफल में दुगुनी वृद्धि होती है और हवनकर्ता से माता भगवती गायत्री अत्यंत प्रसन्न होती है और साधक पर उनकी अपार कृपा होती है |

श्री हयग्रीवा गायत्री मंत्र – Haygriva Gayatri Mantra

हयग्रीव विष्णु के अवतार थे। जैसा कि नाम से स्पष्ट है उनका सिर घोड़े का था और शरीर मनुष्य का। वे बुद्धि के देवता माने जाते हैं। भगवान हयग्रीव के इस गायत्री मंत्र के जाप से सारे भय नष्ट हो जाते है तथा हयग्रीव भगवान की कृपा होती है |

|| ऊँ वाणीश्वराय विद्महे हयग्रीवा धीमहि, तन्नो: ह्याग्रीवः प्रचोदयात ||

श्री यमराज गायत्री मंत्र – Yamaraja Gayatri Mantra

मृत्यु के देव श्री यमराज के इस गायत्री मंत्र का सदैव जाप करने वाले प्राणियों में मृत्यु का भय नहीं रहता है और इस मंत्र को श्रृद्धा पूर्वक जाप करने से अकाल मृत्यु हमेशा के लिए टल जाती है |

|| ऊँ सूर्याय पुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि, तन्नो: यमः प्रचोदयात ||

श्री तुलसी गायत्री मंत्र – Tulsi Gayatri Mantra

तुलसी माता के इस गायत्री मंत्र जाप से मन शांत होता है तथा मन में सेवाभाव का संचार होता है | तथा गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र का ध्यान करने से गृह क्लेश आदि बाधाओं से मुक्ति मिलती है |

|| ऊँ त्रिपुराय विद्महे तुलसी पत्राय धीमहि, तन्नो: तुलसी प्रचोदयात ||

श्री अग्नि गायत्री मंत्र – Agni Gayatri Mantra

श्री अग्नि देव को वेदों में आग अर्थात तेज का देवता माना गया है, और सभी यज्ञादि कार्यों को अग्नि देव के सहायतार्थ ही संपन्न किया जाता है | पुरानों में यह भी मान्यता है कि आप यज्ञ और हवं में जो कुछ भी अग्नि में अर्पित करते है वह सभी देवताओं तथा पितरों को प्राप्त हो जाता है | पुराणों के अनुसार अग्नि देव के दो सिर है तथा पत्नी का नाम स्वाहा, उनका वाहन मेंढा (भेड़) है, और ऋग्वेद के अनुसार इनको इन्द्रा और वरुण देवता के समतुल्य माना और पूजा जाता है | इस अग्नि गायत्री मंत्र का जप करने से मन और तन में तेजस्विता (तेज) आता है | तथा अग्नि और उष्णता सम्बन्धी कष्टों का निवारण होता है |

अत: अग्नि देव गायत्री मंत्र इस प्रकार है

|| ऊँ महाज्वालाय विद्महे अग्नि मध्याय धीमहि, तन्नो: अग्नि प्रचोदयात ||

सीता (जानकी) गायत्री मंत्र – Sita Gayatri Mantra

|| ओम् जनकजायै   विद्मिहे रामप्रियायै  धीमहि, तन्नो: सीता  प्रचोदयात ||

|| ओम् सीं सीतायै नमः ||

भावार्थ –हे जनकनंदिनी ! हे श्री राम प्रियाये, मुझ अनन्य और तुच्छ भक्त को भक्ति प्रधान करें और मुझे इस अंधकारमय जीवन से उजाले की ओर ले जाईये, और हे माता जगतजननी मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ |

रामायण में माता सीता का काफी वर्णन मिलता है , और माता सीता जो कि मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम प्रभु की अर्धांगिनी है और धन की देवी लक्ष्मी का अवतार है और भगवान विष्णु उनके पति है | साधकों को इस मंत्र का जाप कारण चाहिए और यज्ञ या हवन से पहले सभी देवी देवताओं के गायत्री मंत्र की आहुति जरूर लगानी चाहिए |

देवी (ब्रह्माणी) गायत्री मंत्र – Brahmani Gayatri Mantra

|| ओम् ब्रह्मण्ये विद्मिहे महाशक्त्ये धीमहि, तन्नो: देवी  प्रचोदयात ||

|| ओम् हीं श्री क्लीं नमः ||

दुर्गा (जगदम्बा) गायत्री मंत्र – Jagdamba Gayatri Mantra

|| ओम् कात्यान्ये च विद्मिहे कन्याकुमार्ये धीमहि, तन्नो: देवी  प्रचोदयात ||1||

|| ओम् गिरिजायये  विद्मिहे शिवप्रियाये धीमहि, तन्नो: दुर्गा  प्रचोदयात ||2||

गणेश गायत्री मंत्र – Ganesha Gayatri Mantra

|| ओम् तत्पुरुषाय विद्मिहे वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो: दन्ती प्रचोदयात ||

ब्रह्म गायत्री मंत्र – Brahma Gayatri Mantra

भगवान ब्रह्मा जगतपिता और परमपिता कहे जाते है क्योकि सारी सृष्टि के वे जनक कहे जाते है और उनको प्रजापति ब्रह्मा के नाम से भी जाना जाता है | जगत में पूजे जाने वाले तीनों देवो में इनको सर्वपूज्य माना जाता है और वयोवृद्ध होने के कारण सब देवों में पिता के रूप में पूजा जाता है अत: इसलिए इनको परमपिता भी कहा जाता है | भगवान ब्रह्मा को चार मुख होने के कारण चतुर्मुख ब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है |

शास्त्रों के अनुसार तीनो देवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के अलग अलग कार्य है | भगवन ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता के रूप में जाना जाता है तो भगवान विष्णु को पालनकर्त्ता तथा भोलेनाथ को संहारकर्ता के रूप में पूजा जाता है | भगवान ब्रह्मा का पूरे विश्व में एकमात्र मंदिर भारत में राजस्थान राज्य के अजमेर जिलान्तर्गत पुष्कर में स्थित है | जहाँ कि दिव्य छठा देखते ही बनाती है |

भगवान ब्रह्मा भी भगवान शिव जैसे ही भोले और उदार स्वभाव के है और भक्त कि भक्ति से प्रसन्न होकर वो भक्त के लिए कुछ भी करने को तत्पर हो जाते है | भगवान ब्रह्मा ने ही चारों वेदों कि रचना कि थी और भगवान ब्रह्मा ही सारे ब्रह्माण्ड के रचियता है | ब्रह्मा गायत्री मंत्र इस प्रकार है:-

भगवान ब्रह्मा के कुछ मंत्र जो कि गायत्री बीज मंत्र से उद्दृत है यहाँ पर दिए गए है , हवन तथा यज्ञादि सुबह कर्मो में इन मन्त्रों की आहुति शुभ फल देने वाली मानी जाती है |  

|| ओम् वेदात्मने च विद्मिहे हिरण्यगर्भा धीमहि, तन्नो: ब्रह्म: प्रचोदयात ||1||

|| ओम् चतुर्मुखाय विद्मिहे कमण्डलुधाराय धीमहि, तन्नो: ब्रह्म: प्रचोदयात ||2||

भगवान विष्णु गायत्री मंत्र – Lord Vishnu Gayatri Mantra

जिन सकाम भक्तों को माता लक्ष्मी की कृपा चाहिए उन भक्तों को भगवान विष्णु की स्तुति विशेषरूप से करनी चाहिए, क्योकि शास्त्रों में कहा गया है की माता लक्ष्मी वाही बसती अर्थात निवास करती है जहाँ भगवान श्री कमलनयन का वास होता है | अर्थात भगवान विष्णु को पूजने वाले भक्तों को कभी भी लक्ष्मी की कमी नहीं होती है | और विशेषत इस विष्णु गायत्री मंत्र का ध्यान करने वालों भक्तों  पर भगवान कृपानिधान की सदैव कृपा बरसती है |

|| ओम् श्रीविष्णवे च विद्मिहे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो: विष्णोः प्रचोदयात ||1||

|| ओम् त्रैलोक्यमोहनाय विद्मिहे आत्मारामाय धीमहि, तन्नो: विष्णुं प्रचोदयात ||2||

|| ओम् नारायणाय च विद्मिहे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो: विष्णोः प्रचोदयात ||3||

श्रीराम गायत्री मंत्र – Lord Rama Gayatri Mantra

|| ओम् दशरथये विद्मिहे सीता वल्लभाय धीमहि, तन्नो: राम: प्रचोदयात ||

श्रीराम मूल मंत्र –

ओम् ह्रीं ह्रीं रां रामाय नमः  

 कृष्ण गायत्री मंत्र – Krishna Gayatri Mantra 

गायत्री मन्त्रों का सभी प्रकार के मन्त्रों में अहम स्थान है | इसी तरह २४ गायत्री में से कृष्ण गायत्री मंत्र भी श्री कृष्ण भगवान की स्तुति और आराधना हेतु प्रयुक्त किया जाता है | कृष्ण गायत्री मंत्र का प्रत्येक यज्ञ या शुभ कर्मों पर आहुति देने से सर्वत्र शांति और सुख बना रहता है |

|| ओम् देवकी नन्दनाय विद्मिहे वासुदेवाय धीमहि, कृष्णं तन्नो: प्रचोदयात ||1||

|| ओम्  दामोदराय  विद्मिहे रुक्मणि वल्लभाय धीमहि, तन्नो: कृष्णं प्रचोदयात ||2||

|| ओम् क्लीं कृष्णाय नमः ||

देवकी और वासुदेव के पुत्र और तीनो लोकों में पूज्य भगवान श्री कृष्ण के भक्तों को इस कृष्ण गायत्री मंत्र और भगवान कृष्ण के मूल मंत्र का जाप करना चाहिए | मूल मंत्र  “ओम् क्लीं कृष्णाय नमः” की जगह भक्तजन नारायणाय नमः , गोपीजनवल्लभाय नमः, और वासुदेवाय नमः  आदि का प्रयोग कर सकते है |

हनुमान गायत्री मंत्र – Hanuman Gayatri Mantra 

हनुमान गायत्री महिमा

गायत्री मंत्र को जाप करने वाले और सात्विक मन्त्रों में श्रेष्ठ माना गया है, और माता भगवती कि कृपानुसार गायत्री मंत्र को विभिन्न वर्गों में विभाजित किया गया है तथा यज्ञ और हवन में इन मंत्रो की आहुति को अत्यधिक महत्व दिया जाता है और शुभ माना जाता है | किसी भी यज्ञ या हवन के शुरुआत में सभी गायत्री मंत्रो की आहुति को अति उत्तम माना जाता है | गायत्री के मंत्रो को कई देवताओं के श्रेणी में रखते हुए हर देव का गायत्री मंत्र और मूल मंत्र बनाया गया है जो अति प्रभावशाली है 

नीचे दिया हुआ मंत्र हनुमान गायत्री मंत्र कहलाता है,  इस मंत्र के जाप से हनुमान जी प्रसन्न होते है और भक्तों की उन पर कृपा होती है | मंत्र निम्न प्रकार से है:-

|| ओम् आंजनेयाय विद्मिहे वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो: हनुमान: प्रचोदयात ||1||

|| ओम् रामदूताय विद्मिहे कपिराजाय धीमहि, तन्नो: मारुति: प्रचोदयात ||2||

|| ओम् अन्जनिसुताय विद्मिहे महाबलाय धीमहि, तन्नो: मारुति: प्रचोदयात ||3||

|| ओम् ह्रीं ह्रीं हूँ हौं हृ: || 

हनुमानजी के भक्तों को इस हनुमत गायत्री मंत्र का जाप अवश्य कारण चाहिए तथा साथ में हनुमत मूल मंत्र का जाप भी श्रेष्ठ होता है | इस मंत्र का ध्यान व स्मरण करने मात्र से ही हनुमानजी प्रसन्न होते है व भक्तों के संकट और पीड़ा को हर लेते है |

हनुमान गायत्री मंत्र जाप विधि – Hanuman Gayatri Mantra Japa Vidhi

प्रत्येक मंत्र को जपने और स्मरण करने का विधान होता है, और भक्तो को चाहिए कि वे विधि पूर्वक ही प्रत्येक मंत्र का जाप करे | इस हनुमान गायत्री मंत्र को मंगलवार या शनिवार के दिन प्रातकाल शुद्ध होकर आसन पर पूर्वदिशाभिमुख होकर विराजमान होकर मंत्र का जाप आरम्भ करना चहिये | इस प्रकार हनुमान जी का स्मरण करते हुए कम से कम 108 बार मंत्र जाप करे | भक्त चाहे तो मंत्र को हवन या यज्ञ विधि से सिद्ध भी कर सकते है |

शिव गायत्री मंत्र – Shiv Gayatri Mantra

भगवान भोलेनाथ के गायत्री मंत्र का जाप करने से सभी बाधाओं और आपदाओं से मुक्ति मिलती है | और मंत्र जाप करते समय मुख हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए अथवा कशी की तरफ मुख करके जाप करना चाहिए, ऐसा करने से जप सफल व फलदायी होता है |

|| ओम् महादेवाय विद्मिहे रुद्रमुर्तये धीमहि. तन्नो: शिव: प्रचोदयात ||

|| ओम् सं सं सं ह्रीं ऊँ शिवाय नमः ||

|| ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।’ॐ ||

भगवान भोलेनाथ के गायत्री मंत्र का जाप करने से सभी बाधाओं और आपदाओं से मुक्ति मिलती है | और मंत्र जाप करते समय मुख हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए अथवा कशी की तरफ मुख करके जाप करना चाहिए, ऐसा करने से जप सफल व फलदायी होता है |

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