अध्यात्म में रूचि रखने वाले व्यक्तियों के लिए साधना – How to do Sadhana
हमारे जीवन में कभी-कभी ऐसे संत मनीषियों का प्रादुर्भाव हो जाता है जो केवल भजन करते हुए अपना समस्त जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं। इस प्रकार के संतों की आध्यात्मिक उन्नति, उनके ललाट पर रवि-किरणों की तरह दमकती रहती है। इन्हें संसार की किसी वस्तु का लोभ नहीं होता, और उन्हें देख कर या उनसे प्रेरणा पाकर एक समय करीब करीब सभी के जीवन में ऐसा आता है जब उनके मन में साधना करने की इच्छा जागती है।
साधना की शुरुआत कैसे करें?
किन्तु वे नहीं जानते के साधना कैसे की जाये. वैसे यह प्रश्न तो आम तोर पर एक साधना कर रहे व्यक्ति के भीतर भी रहता है कि वह जो साधना कर रहा है वह सही है कि नहीं। यहाँ पर इसी प्रश्न के समाधान के लिए एक साधना का उल्लेख है जो की स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तकों में अध्यात्म में रूचि रखने वाले व्यक्तियों के लिए बतलायी है।
स्वामी सत्यानंद जी सरस्वती द्वारा बतलायी गयी साधना
प्रातः चार बजे उठिए। चार बजे उठना कोई मुश्किल नहीं, यदि आपमें इच्छा शक्ति हो। कम सोना स्वास्थ्य और मन के लिए सदैव अच्छा है। सर्वप्रथम उठ कर वहीं बिस्तर में बैठ कर अपने इष्ट देव की प्रार्थना कीजिए। प्रार्थना मन में भाव के साथ कीजिए। अपने को उनका शरणागत समझिए। उनसे माँगिए- धन नहीं, स्त्री नहीं, दीर्घायु नहीं, स्वास्थ्य नहीं, बल्कि प्रभु भक्ति, निर्मल बुद्धि, सेवा-शक्ति और योग्यता। एक से पाँच मिनट प्रार्थना कीजिये। पवनमुक्तासन, सुप्त उदराकर्षणासन, सेतुबंधासन, व नौकासन कीजिये। शौच को जाइए और स्नान कर लीजिए। जाड़े के दिनों में केवल हाथ-मुँह और पैर धो लेना उनके लिए काफी होगा जो स्नान नहीं करना चाहते।
प्रातःकाल साधना के लिए आसनो का क्रम
इसके पश्चात आप दस मिनट इस क्रम से आसन कीजिए –
- पद्मासन
- योग मुद्रासन
- शशांकासन
- भुजंगासन
- शलभासन
- धनुरासन
- अर्धमत्स्येन्द्रासन
- सर्वांगासन
- पादहस्तासन
- शवासन
प्रत्येक आसन एक-एक मिनट कीजिए। स्वामी जी कहते हैं कि आप इन आसनों के स्थान पर सूर्यं नमस्कार भी १२ बार कर सकते हैं ।
साधना के पूर्व करें ये तीन प्राणायाम
आसनों को करने के बाद अब प्राणायाम कीजिए। आपको मात्र ये तीन सरल प्राणायाम करने हैं –
- शीतली
- भ्रामरी
- भस्त्रिका
इनके भी तीन-तीन राउण्ड करें। इसके पश्चात आप साधना के लिए तैयार होकर बैठ जाइये । पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाइये।
ॐ का उच्चारण – सर्वप्रथम ॐ का उच्चारण 13 बार आपको करना है।
ॐ का उच्चारण करने के अनेक तरीके होते हैं। किन्तु आप इस तरह करें – ॐ का उच्चारण जितनी लम्बी आपकी श्वास हो, उतनी देर तक एक ॐ का उच्चारण चलता रहे। ‘ओ’ कहते हुए उच्चारण शुरू कीजिए और ‘म’ के साथ उच्चारण का अन्त कीजिए। एक ॐ के उच्चारण में आपको पन्द्रह सेकण्ड लगने चाहिए।
आत्मशुद्धि मंत्र – तत्पश्चात आत्मशुद्धि मंत्र पढ़िये। आत्म-शुद्धि के लिए भाव के साथ अर्थ समझते हुए निम्नलिखित श्लोक व मंत्र का उच्चारण आपको करना है।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
भजन – आत्मशुद्धि मंत्र के बाद चार भजन कीजिए ।
भजन और कीर्तन साधना के पूर्व अवश्य करना चाहिए। संगीत का मस्तिष्क के केन्द्रों पर बड़ा सुन्दर प्रभाव पड़ता है, मस्तिष्क के तनाव दूर होते हैं। आत्मा के लिए संगीत बहुत जरूरी है। संगीत से मनुष्य के ऊपर इच्छानुसार प्रभाव डाला जा सकता है हिन्दू धर्म में संगीत भी साधना का अंग माना गया है। सूर, मीरा, कबीर, दादू, नानक, जैसे अनेक सन्तों ने भजन को अपनी साधना का अंग बनाया। भजन निश्चित होने चाहिए। रोज-रोज उन्हें बदला न जाए। साधना के लिए संगीत का ज्ञान आवश्यक नहीं। केवल भाव चाहिए। प्रेमपूर्वक आपसे जैसा बन पड़े गाइए। चार भजन में आपको आठ या दस मिनट से अधिक नहीं लगेंगे।
साधना के लिए मंत्र जाप – 108 बार किसी मंत्र का जप कीजिए।
इसके बाद आप अपने मंत्र को, जिसे आपने अपने गुरु से लिया हो या स्वयं अपनाया हो, उसे 108 बार माला लेकर जपें। जप तीन तरह के होते हैं – मुँह से बोलकर, अस्फुट उच्चारण के साथ, और मन ही मन। आप तीनों में से किसी एक तरीके से कर सकते हैं।
साधना में त्राटक का अभ्यास – इष्ट की फोटो पर पाँच मिनट त्राटक कीजिए।
जप के बाद त्राटक अपने इष्ट व गुरु के चित्र पर करें। चित्र को इस प्रकार एक ऊँचे स्थान पर रखें कि वह आपके नेत्रों के ठीक सामने रहे। आपके नेत्र और चित्र के बीच डेढ फुट का फासला रहे। इस बात का ध्यान आपको रखना है कि जिस चित्र पर आप त्राटक कर रहे हैं, वो बदलें नहीं। निर्निमेष नेत्रों से व बिना पलक झपकाए उस चित्र को लगातार देखने का अभ्यास आपको करना है। त्राटक करने के बाद आपको ऑंखें बंद करके उसी चित्र को अपनी भृकुटि के बीच में देखना है।
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अंतर्मौन का महत्त्व
त्राटक के बाद आँखें बन्द करके पहले अंतर्मौन का अभ्यास करें। अंतर्मौन को आप अपनी मुख्य साधना बना लें। स्वामी सत्यानंद जी ज़ोर देकर यह कहते हैं कि यदि केवल अंतर्मौन की ही निष्ठापूर्वक जीवन में साधना की जाय, तो आपको वह ज्ञान प्राप्त हो सकेगा, जो सचमुच में ही वाणी, नेत्र और श्रोत्र के परे है। ‘राम नाम मणि दीप’ यही है जिसे ‘जीव देहरी द्वार’ पर रखकर ‘अंदर’ और ‘बाहर’ दोनों को प्रकाशित किया जा सकता है।
अजपा जप का अभ्यास – इसके बाद अजपा की साधना बीस मिनट कीजिए।
अजपा जप में आपको सोऽहं या ॐ का ही जप करना चाहिए। बहुत से लोग इस दुविधा में पड़ जाते हैं कि हमारा इष्ट तो राम है, फिर ॐ का जप कैसे करें। गुरु ने मुझे कृष्ण का मंत्र दिया, तो ‘सोऽह’ कैसे किया जाय? पर आप केवल गुरु की आज्ञा मानकर उनके वचनों में विश्वास रखकर साधना शुरू कर दे। आप सोऽहं में अजपा जप का अभ्यास करें। साधना करते वक़्त अपनी चेतना को भूमध्य के बीच में टिका कर रखें। श्वास और मंत्र की भावना एक साथ इस प्रकार हो कि दोनों मिलकर एक हो जाएँ। अजपा के समय श्वास गहरी होनी चाहिए।
‘सो’ के साथ श्वास अंदर और ‘हं’ के साथ श्वास बाहर। फिर ‘सो’ के साथ अंदर, ‘हं’ के साथ बाहर। यह साधना करते-करते आपको ‘तन्मयता’ आ जानी चाहिए। साधना के अतिरिक्त कोई विचार-ख्याल मन में नहीं आना चाहिए। चित्त को एकाग्र और निरुद्ध करने के लिए यह सर्वोत्तम और सबसे सरल उपाय है।
आत्मनिवेदन एवं स्तुति करके उठिए
अजपा के अभ्यास के बाद इष्ट की भाव के साथ प्रार्थना व आत्म-निवेदन कीजिए। प्रार्थना शब्दोच्चारण मात्र न रहे। जो भी प्रार्थना की जाए, उसमें अपने को बहा दीजिए। भरसक अपने टूटे-फूटे शब्दों में स्वयं ही प्रार्थना कीजिए तो उत्तम। इष्टदेव व गुरु को मन में प्रणाम कीजिए।
इतनी साधना आपकी 4.30 से 5.30 बजे के अन्दर हो जानी चाहिए। सिर्फ इतना समय देकर ही आप स्वास्थ्य, शान्ति और उत्फुल्लता प्राप्त कर सकते हैं। अनेक चिन्ताओं से भी मुक्त हो सकते हैं और डॉक्टरों के पैसे भी बचा सकते हैं। इस साधना कार्यक्रम को आप सुविधानुसार छोटा-बड़ा भी कर सकते हैं।
रात्रि में सोने से पूर्व किसी ग्रंथ का स्वाध्याय कीजिए। गीता, उपनिषद्, या योग ग्रंथों को समझने और प्रेरणा लेने के लिए पढ़िए। पुनः 15 मिनट अजपा का अभ्यास बिस्तर में ही कीजिए। किसी मित्र, पड़ोसी, सम्बन्धी के लिए शुभ विचारों को संकल्प कर भेजिए। अन्त में मन में जप करते-करते सो जाइए। अपनी निद्रा को समाधि समझ कर योगनिद्रा में सुखपूर्वक सोइए।
नियमपूर्वक छः महीने साधना को चलाइये।