ऋग्वेद के उपनिषद – ऋग्वेदीयोपनिषद
ऐतरेयोपनिषद
ऋग्वेद के ऐतरेय आरण्यक के द्वितीय खंड के अंतर्गत चतुर्थ से षष्ठ अध्याय को ऐतरेय उपनिषद माना जाता है। इसमें 3 अध्याय है जिसमें विश्व की उत्पत्ति का विवेचन है तथा पुरुष सूक्त के आधार पर सृष्टि का क्रम निरुपित है। जन्म, जीवन और मरण का वर्णन प्राप्त होता है। आत्मा के स्वरूप का स्पष्ट निर्देश भी मिलता है। इस पर शंकर का भाष्य प्राप्त होता है।
कौषीतकी उपनिषद
यह उपनिषद ऋग्वेद के कौषीतकी आरण्यक के तृतीय से षष्ठ अध्याय तक का अंश है। इसमें चार अध्याय हैं जो खण्डों में विभक्त है। यह उपनिषद गद्यात्मक है। इसमें देवयान, पितृयान, आत्मा के प्रतीक प्राण तथा इससे सम्बद्ध विवेचन है। प्रतर्दन के इंद्र से ब्रह्म विद्या सीखने के प्रसंग में प्राणसिद्धांत का विवेचन है। अजातशत्रु एवं बलाकि के आख्यान में परब्रह्म का स्वरूप वर्णित है।
इसके अतिरिक्त ऋग्वेदीय उपनिषदों की संख्या निम्न है–
आत्मबोध उपनिषद • निर्वाण उपनिषद • नादबिन्दुपनिषद • सौभाग्यलक्ष्मी उपनिषद • अक्षमालिक उपनिषद • भवऋचा उपनिषद • मुदगल उपनिषद • त्रिपुरा उपनिषद • बहवृचोपनिषद • मृदगलोपनिषद • राधोपनिषद