प्रदोष व्रत क्यों किया जाता है ? कितने प्रकार के होते है

प्रदोष व्रत – Pradosh Vrat 

प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2022) भगवान शिव और पार्वती को समर्पित है, प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat Date) चार प्रकार के है – शनि प्रदोष, मंगल प्रदोष, सोम प्रदोष, पक्ष प्रदोष, जो की हर माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। सूर्यास्त के बाद रात्रि के प्रथम पहर को जिसे की सांयकाल या तीसरा पहर भी कहते है, प्रदोष काल (प्रदोषम) कहलाता है। इसमें उस कालावधि तक उपवास रखकर शिव पूजा करके उपवास समाप्त किया जाता हैं | हिन्दू पंचांग में एक साल में 12 महीने होता है इस तरह एक साल में 24 प्रदोष व्रत आते है।

  • शनिवार को आने वाला प्रदोष ‘शनि प्रदोष’ के नाम से जाना जाता है। उत्तम गुंण संपन्ना पुत्र प्राप्ति की कामना से शनि प्रदोष व्रत किया जाता है। इसके अतिरिक्त यदि गर्भ में ही संतती की प्रगति रूक जाएं तो उसकें निवारण के लिए भी शनि प्रदोष व्रत रखा जाता हैं। शनि प्रदोष व्रत की कालावधि 3 वर्षाें की होती है।
  • मंगलवार के दिन आने वाला प्रदोष मंगल प्रदोष’ कहलाता हैं । यदि आर्थिक स्थति खराब हो या कर्ज का बोझ बढ़ता जाए तो मंगल प्रदोष व्रत रखा जाता हैं ।
  • सोमवार को आने वाला प्रदोष ‘सोम प्रदोष’ कहलाता है। यह व्रत कुलदेवता की पूजा खंडित हो जाने से उत्पन्न बाधा को दूर करने के निमित्त रखा जाता है। साथ ही योग साधना एवं उपासना फलवती हो, इसके लिए भी सोम प्रदोष व्रत किया जाता हैं।
  • प्रत्येक 15 दिनों पर त्रयोदशी को आने वाला प्रदोष ‘पक्षप्रदोष’ कहलाता हैं। पक्षप्रदोष में शनि, मंगल एवं सोम-इन तीनों प्रदोंषों का समावेश होता है। इन तीनों प्रदोषों का समावेश होता हैं। इन तीनों प्रकार के प्रदोषों में दिनभर उपवास, शिव की आराधना, स्त्रोत पठन एवं शिव पूजन तथा उपवास समाप्ति का क्रम रहता हैं । नियमित रूप से प्रदोष व्रत रखने वाले व्यक्ति को इन तीनों व्रतों का लाभ ही प्राप्त नहीं होता बल्कि लौकिक एवं पारमार्थिक धरातल पर उनकी उन्नति होेती है।

प्रदोष व्रत विधि  – Pradosh Vrat Vidhi

उपवास प्रदोष व्रत का प्रधान अंग है। इस व्रत के पहले दिन रात को उपवास रखें यार रात्री के प्रथम प्रहर में भोजन करें। उपवास में केवल पानी पिएं। यदि स्वास्थ्य की दृष्टि से केवल पानी पर रहना संभव न हो तो नारीयल का पानी, फलों का रस या दूध के पदार्थ लें । किंतु मूंगफली के दाने अथवा साबुदाना आदि पकाएं पदार्थ न ले।

जड़ अथवा पित्तकारक पदार्थों का सेवन न करें। प्रदोष के दुसरे दिन विष्णु पूजन अनिवार्य रूप से करें। प्रदोष व्रत रखने का अधिकार सभी उम्र के स्त्री-पुरुषो को प्राप्त है। यदि वैवाहिक संबंधों में अवरोध उत्पन्न हो, संतति कुमार्गी हो, कर्ज से पीड़ित हों, सभी कार्यों में अपयश प्राप्त हो या कोर्ट-कचहरी के माकलों में उलझे हों तो प्रदोष व्रत ये काफी हद तक फायदा पहुचता है। नियमानुसार विधिपूर्वंक एवं श्रद्धायुक्त अंतःकरण से यह व्रत किए जाने पर इसके अधिकाधिक लाभ प्राप्त होते है। प्रदोष व्रत का प्रारंभ उत्तरायण में करना चाहिए।

प्रदोष व्रत उद्यापन विधि – Pradosh Vrat Udyapan Vidhi

स्कंद पुराणके अनुसार व्रती को कम-से-कम 11 अथवा 26 त्रयोदशी व्रत के बाद उद्यापन करना चाहिये। उद्यापन के एक दिन पहले( यानी द्वादशी तिथि को) श्री गणेश भगवान का विधिवत षोडशोपचार विधि से पूजन करें तथा पूरी रात शिव-पार्वती और श्री गणेश जी के भजनों के साथ जागरण करें। उद्यापन के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रमों से निवृत हो जायें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को शुद्ध कर लें। पूजा स्थल पर रंगीन वस्त्रों और रंगोली से मंडप बनायें । मण्डप में एक चौकी अथवा पटरे पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। अब शिव-पार्वती की विधि-विधान से पूजा करें। भोग लगायें। उस दिन जो भी वार हो उस वार की त्रयोदशी कथा सुने अथवा सुनायें।

अब हवन के लिये सवा किलो (1.25 किलोग्राम) आम की लकड़ी को हवन कुंड में सजायें। हवन के लिये गाय के दूध में खीर बनायें। हवन कुंड का पूजन करें । दोनों हाथ जोड़कर हवन कुण्ड को प्रणाम करें। अब अग्नि प्रज्वलित करें। तदंतर शिव-पार्वती के उद्देश्य से खीर से ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का उच्चारण करते हुए 108 बार आहुति दें। हवन पूर्ण होने के पश्चात् शिव जी की आरती करें । ब्राह्मणों को सामर्थ्यानुसार दान दें एवं भोजन करायें। आप अपने इच्छानुसार एक या दो या पाँच ब्राह्मणों को भोजन एवं दान करा सकते हैं। यदि भोजन कराना सम्भव ना हो तो किसी मंदिर में यथाशक्ति दान करें। इसके बाद बंधु बांधवों सहित प्रसाद ग्रहण करें एवं भोजन करें।

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत में महादेव व माता पार्वती की उपासना की जाती है। व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से स्कंद पुराण में वर्णन किया गया है। साधक प्रदोष व्रत का पालन अपने जीवन में हर तरह के सुख की प्राप्ति के लिए करता है। इस व्रत को स्त्री तथा पुरूष दोनों कर सकते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से साधक पर भगवान शिव की कृपा दृष्टि बनती है। साधक अपने पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है।

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