पितृ पक्ष श्राद्ध 2022 – Pitru Paksha Shradh 2022
आज हम श्राद्ध पक्ष के बारे में, पितृ पक्ष श्राद्ध के नियम, पितृ पक्ष श्राद्ध कैसे करें, पितृ पक्ष श्राद्ध का क्या महत्व होता है, श्राद्ध में तर्पण करना क्यों जरुरी होता है और किस दिन हमे किसका श्राद्ध करना चाहिए तथा श्राद्ध पक्ष में किन नियमो और सावधानियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए ये भी आप जरूर जानेंगे |
इतना ही नहीं श्राद्ध करने के पीछे क्या पौराणिक कथा है और कैसे हमारे परिवार के पितरो को तृप्त कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है और साथ ही इसी कड़ी में पंच बलि कर्म और उसके महत्व के साथ पितरो के निमित्त सम्पूर्ण जानकारी आपको इस पोस्ट में मिल जाएगी
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पितरों के लिए श्रद्धा भाव से किए गए मुक्ति कर्म को ही हम श्राद्ध कहते हैं, और भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक जो पंद्रह दिन की अवधी है उसे ही हम श्राद्ध पक्ष कहते है
माना जाता है कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. और परिवार के सदस्यों को पितृ दोष भी लगता है, वहीं ये भी कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वो प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. साथ ही कुल में कोई दुःखी नहीं रहता।
पितरों की पूजा करके मनुष्य दीर्घायु होता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है, समाज में उसकी कीर्ति और यश दिनोदिन बढ़ता है और समस्त सुख और धन-धान्य की प्राप्ति के साथ मृत्य के पश्चात स्वर्ग प्राप्त करता है इसलिए अपने पूर्वजों का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण अवश्य करना चाहिए
अब यहाँ में आपको बता दू की पितरों के प्रति श्रद्धा के साथ अर्पित किया गया तिल मिश्रित जलदान ही तर्पण कहलाता है हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तर्पण का जल सूर्योदय से आधे प्रहर तक अमृत, एक प्रहर तक शहद, डेढ़ प्रहर तक दूध और साढ़े तीन प्रहर तक जल रूप में हमारे पितरों को प्राप्त होता है। अत: हमें सुबह सवेरे ही तर्पण करना चाहिए।
पितृ पक्ष में किस दिन किसका तर्पण और श्राद्ध करे
यहाँ में आपको बता दू की साल के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ है उनका श्राद्ध आपको उसी तिथि को करना चाहिए, जैसे यदि देहांत की तिथि पूर्णिमा हो तो श्राद्ध जो है वो भी भाद्र माह की पूर्णिमा को ही होगा, इन पंद्रह दिनों में वो एक तिथि आती है और आपको ये ध्यान रखना है की आप श्राद्ध उसी दिन करें
यदि आप उस तिथि से अवगत नहीं है तो ऐसे में शास्त्रों में इसका उपाय बताया गया है, शास्त्रों में वर्णित है की यदि आपको आपके परिवार जन की देवगमन तिथि मालूम न हो या किसी का अंतिम संस्कार किसी कारणवश न हुआ हो तो आपको आश्विन मास की अमावस्या जिसको सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या भी कहते है, को उनका श्राद्ध कर्म करना चाहिए
इनके अलावा अगर आपके घर मे कोई व्यक्ति अविवाहित ही देवलोक चले गये हो तो उनका श्राद्ध पंचमी को करना चाहिए, वही पिता का श्राद्ध आपको अष्टमी तिथि को और मां का श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, नवमी के दिन जिन महिलाओं का देवलोक गमन सुहागिन रूप में हुआ है उनका श्राद्ध भी इसी तिथि को किया जाता है
अगर बात करे सन्यासी या साधु महात्माओ की तो उनका श्राद्ध कर्म द्वादशी तिथि के दिन किये जाने का विधान है, वही यदि परिवार में किसी परिजन की अकाल मृत्यु हुई है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए है. और यदि आप अपने नाना नानी का श्राद्ध कर रहे है तो उनका श्राद्ध आपको अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को करना होता है, आइये अब बात करते है उन नियमों की जिनका पालन आपको श्राद्ध पक्ष में करना चाहिए
पितृ पक्ष श्राद्ध के नियम
श्राद्ध पक्ष में व्यसन और मांसाहार पूरी तरह से वर्जित माना गया है। पूर्णत: पवित्र रहकर ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं और हा साथ ही रात्रि में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाइये … श्राद्धकर्म के लिए दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है।
आईये अब बात करते है की आप श्राद्धकर्म की तिथि को आपको किन बातों का ध्यान रखना होता है
• सबसे पहले आप स्वछता का पूरा ध्यान रखें
• श्राद्ध के दिन आप पितरों का तर्पण जरूर करें
• क्रोध न करें, मन को शांत रखे झूठ न बोलेन किसी के लिए बुरा न सोचें
• धैर्य से श्राद्ध और तर्पण की विधि करें आप जल्दबाज़ी में पूजा न करें
• यदि हो सके तो यम स्त्रोत्र और पितृ स्त्रोत्र का पाठ अवश्य करें
• साथ ही आप कुछ विशेष बातों जैसे
• आपको साबुन से स्नान नहीं करना होता है
• नाख़ून और बाल नहीं काटने होते है
अगर बात करे पितरो के निमित्त भोजन की तो श्राद्ध के दिन आप पितरों की पसंद का शुद्ध शाकाहारी भोजन जो बिना प्याज़ लहसुन के हो वो ही बनाएं क्यों की प्याज और लहसुन को तामसिक भोजन की श्रेणी में माना जाता है और पितरो को हमेशा सात्विक भोजन ही अर्पण किया जाना चाहिए जैसे खीर और पूरी सरल और सुलभ भोजन हो सकता है
वही श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाने के साथ पंचबलि कर्म भी अवश्य करना चाहिए, इसमें आपको ज्यादा कुछ नहीं बस अपने भोजन के अंश में से पांच अंश गाय, कौआ, कुक्कुर यानि कुत्ता, पितृ देव और अंत में चींटी, कीड़े-मकौड़ों के लिए अलग से निकाल कर उन्हें हाथ जोड़ समर्पित किया जाना चाहिए इसे ही पंचबलि कर्म कहा जाता है, इसे हमे अक्षत पुण्य की प्राप्ति होती है
श्राद्ध की पौराणिक कथा
दोस्तों कथा के अनुसार, महाभारत के दौरान, कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे। उन्होंने देवता इंद्र से पूछा किउन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया।