नक्षत्र चक्र
प्यार पर अवश्य ही किसी का जोर चलता है। ये जोर होता है आपके सितारों का। यानी ग्रह-नक्षत्रों का। इस मामले में अगर दावों पर यकीन करें तो लव ग्रह-नक्षत्रों की चाल पर टिके होते हैं। अगर ग्रहों की चाल आपके हक में है, तब तो सब कुछ होगा और रहेगा वरना बना-बनाया मामला बिगड़ जाएगा।
प्रेम की पाठशाला में आपके ग्रह-नक्षत्रों बताते हैं कि आपके प्यार का सफर शुरू होगा या नहीं, और अगर होगा तो कैसे और कहां तक जाएगा। वैसे लोग ग्रह-नक्षत्रों को अपने पाले में लाने के जतन भी करते हैं। उनकी यह कोशिश कितनी रंग लाती है इस बारे में सबके अनुभव जुदा हैं। जानकारों का मानना है कि प्रेम के मामले में पूरा दारोमदार शुक्र पर निर्भर है। जहां तक ग्रहों की बात है तो पूरा का पूरा मामला शुक्र और मंगल पर है। शुक्र मजबूत है तो रिश्ते बनेंगे। वैसे बहुत कुछ बाकी ग्रहों के शुक्र से मिलन पर भी निर्भर करता है।
मुख्य रूप से शुक्र ग्रह हमारी प्रेम भावनाओं को प्रदर्शित करता है। ‘मून’ यानी चन्द्र मन का जातक होने के कारण जब शुक्र के साथ कॉम्बिनेशन बनाता है तो प्रेम की फीलिंग्स जागती है। जन्म कुंडली में पांचवां भाव हमारे दिल के भावों को प्रस्तुत करता है। विशेषकर प्रेम संबंधों का।
7 वे भाव व्यक्ति के फीजिकल रिलेशन का प्रतिनिधित्व करता है। जन्म कुंडली में 11 भाव जातक की लाभ प्राप्ति और इच्छापूर्ति का स्थान कहलाता है। इन भावों में शुक्र और चंद्र की स्थिति और दृष्टि संबंध जातक के प्रेम-प्यार की स्थिति का वर्णन करते हैं। वे सभी जातक, जिनकी कुंडली में शुक्र, चंद्र और इन भावों का कॉम्बिनेशन बनता है, इस प्रेम एन्जॉय करते हैं।
ग्रह-नक्षत्रों पर सब कुछ ही निर्भर करता है। जहां तक प्रेम संबंधों का सवाल है सबसे प्रबल ग्रह है शुक्र। शुक्र से तरंगें पैदा होती हैं। शुक्र के अस्त होने से मन की भावनाएं मर जाती हैं इसीलिए सब कुछ शुक्र पर है।
मंगल और शुक्र यदि मिल जाएं तो समझो ऐश है। शुक्र और चंद्र का मिलन भी प्रेम की नैया को आगे ले जाने वाला होता है।
किंतु यदि शुक्र राहु से मिल जाए तो नकारात्मक चीजें सामने आती हैं। यदि शुक्र का सूर्य से मिलन हो गया तो दाम्पत्य जीवन नष्ट हो जाता है क्योंकि सूर्य की गर्मी से शुक्र जल जाता है। कह पाना कठिन है कि किन राशियों के लोगों में प्यार के फूल खिलेंगे लेकिन यह बात हम अवश्य कह सकते हैं कि जिस राशि का स्वामी शुक्र होगा वह प्रेम के लिहाज से उत्तम है।
चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है । खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है इसी पथ में पड़ने वाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है । इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर ‘नक्षत्र चक्र’ कहलाता है ।
इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त ‘अभिजित्’ नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है, इससे अब २७ ही नक्षत्र गिने जाते हैं