काल भैरव – Kaal Bhairav
भैरवगढ़ नदी के छोर पर शहर से तीन मील दूरी पर है। प्राचीन अवन्तिका इधर बसी हुई है। अब भी एक उपनगर के समान यहां की भी बस्ती है। छपाई के काम करने वाले लोग अधिकांश यहां रहते हैं। इस स्थान के प्रमुख देव भैरव हैं। यह बस्ती टीले पर बसी हुई है।
इस कारण भैरवगढ़ के नाम से इस स्थान की ख्याति है। पश्चिमोत्तर दिशा की ओर अधिकांश भाग में शहर पनाह (पत्थर की ऊंची दीवार) बनी हुई है। इसमें अंदर ही शिप्रा के उत्तर तट पर ‘कालभैरव’ का सुविशाल मंदिर है।
मंदिर के पास नीचे शिप्रा नदी का घाट बहुत बड़ा और सुंदर पुख्ता बना हुआ है। प्रवेश द्वार बहुत भव्य ऊंचा बना हुआ है। द्वार के अंदर प्रवेश करने पर दीप स्तंभ खड़ा दिखाई देता है। बाद में मंदिर हैं। कालभैरव की मूर्ति भव्य एवं प्रभावोत्पादक है। मूर्ति को मद्यपान कराया जाता है। मुख में कोई छेद नहीं है। यह यहां का आश्चर्यपूर्ण चमत्कार है।
कई बार मूर्ति की वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने पड़ताल की है लेकिन वे भी इस रहस्य को जान नहीं सके हैं कि प्रतिमा कैसे मदिरापान कर लेती है जबकि कोई छिद्र नहीं है। कहते हैं कि यह मंदिर ‘राजा भद्रसेन’ का बनाया हुआ है। मंदिर पर खुदाई का काम किया हुआ है। नदी में जल खूब भरा रहता है। यहां भैरव अष्टमी को यात्रा लगती है और भैरवजी की सवारी निकलती है।
काल भैरव मंदिर – Kaal Bhairav Mandir
यह मंदिर अतिप्राचीन है। पुराणों में अष्ट भैरवों की प्रसिद्धि है। उनमें ये प्रमुख हैं। प्रसिद्ध तांत्रिक गोपीनाथ, रामअवधेश, सुधाकर, मौनीबाबा और केलकर सा. अक्सर यहीं साधना करने आते हैं। बाईं तरफ के द्वार से बाहर हैं किले की ओर जाने का मार्ग।
यह किला लगभग 300 हाथ लंबा और 30 हाथ ऊंचा है। इसी जगह पहले सम्राट अशोक ने उज्जैन का जेलखाना बनवाया था। सम्राद अशोक के काल में इसे ‘नरक या नरकागार’ कहा जाता था। आज इसमें उज्जयिनी का बड़ा जेल है। इस जेल के कैदी द्वारा निर्मित भेरूगढ़ प्रिंट की चादरें विख्यात हैं। जेल में हाथ की कती-बुनी दरी वगैरह बनाई जाती है।
काल भैरव मंदिर का समय, उज्जैन – Kaal Bhairav Temple Ujjain Timings
समय: सोमवार से रविवार – सुबह 5.00 बजे से शाम 7.00 बजे तक।
काल भैरव कथा – Kaal Bhairav Story
कालभैरव के जन्म को लेकर पुराणों में एक बड़ी ही रोचक कथा है। शिव पुराण के अनुसार एक बार सभी देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है तब दोनो ने अपने को श्रेष्ठ बताया और आपस में इसके लिए एक दूसरे युद्ध करने लगे। इसके बाद सभी देवताओं ने वेदशास्त्रों से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है अनादि अंनत और अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं।
वेद शास्त्रों से शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्मा ने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कहा। इससे वेद दुखी हुए। इसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रूद्र’ रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ।
ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। उस दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सर को ही काट दिया।
शिव के कहने पर भैरव काशी प्रस्थान किये जहां ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये बगैर विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है।
काल भैरव अष्टमी – Kala Bhairava Ashtami
भैरव अष्टमी, जिसे भैरवाष्टमी, भैरव जयंती, काल-भैरव अष्टमी और काल-भैरव जयंती के रूप में भी जाना जाता है, एक हिंदू पवित्र दिन है, जो भगवान शिव के भैरव रूप का जन्मदिन है। यह कार्तिक के हिंदू महीने के पंद्रहवें दिन (अष्टमी) को घटते चंद्रमा (कृष्ण पक्ष) के पखवाड़े में पड़ता है।
काल भैरव पूजा से लाभ – Kala Bhairava Pooja Benefits
काल भैरव अष्टमी के लाभ: यह विशिष्ट धार्मिक दिन काल भैरव के उत्साही भक्तों द्वारा उनके जीवन से बाधाओं को दूर करने के लिए मनाया जाता है। व्यवसायी सफलता, धन, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करने के लिए इस उल्लेखनीय त्योहार का स्वागत करते हैं।