महाशिवरात्रि व्रत और पूजन विधि 2025

महाशिवरात्रि व्रत और पूजन विधि

फाल्गुन कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, इस दिन शंकर जी और पार्वती जी का विवाह संपन्न हुआ था, साथ ही महाशिवरात्रि को अर्द्ध रात्रि के समय ब्रह्माजी के अंश से शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था। इसलिए रात्रि व्यापिनी चतुर्दशी का अधिक महत्व होता है। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। यहां रात्रि शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। परमात्मा ही ज्ञानसागर है जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं।

महाशिवरात्रि परम कल्याणकारी व्रत है जिसके विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल पति, पत्नी, पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है तथा वह जीवन के अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त करने के योग्य बन जाता है। इस व्रत में रात्रि जागरण व पूजन का बड़ा ही महत्त्व है इसलिए सांयकालीन स्नानादि से निवृत्त होकर यदि वैभव साथ देता हो तो वैदिक मंत्रों द्वारा प्रत्येक पहर में वैदिक ब्राह्मण समूह की सहायता से पूर्वा या उत्तराभिमुख होकर रूद्राभिषेक करवाना चाहिए। इसके पश्चात्‌ सुगंधित पुष्प, गंध, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप-दीप, भांग, नैवेद्य आदि द्वारा रात्रि के चारों पहर में पूजा करनी चाहिए। किन्तु जो आर्थिक रूप से शिथिल हैं उन्हें भी श्रद्धा व विश्वासपूर्वक किसी शिवालय में या फिर अपने ही घर में उपरोक्त सामग्री द्वारा पार्थिव पूजन प्रत्येक पहर में करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप करना चाहिए।

यदि अशक्त होने पर सम्पूर्ण रात्रि का पूजन न हो सके तो पहले पहर की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। इस प्रकार अंतिम पहर की पूजा के साथ ही समुचित ढंग व बड़े आदर के साथ प्रार्थना करते हुए संपन्न करें। तत्पश्चात्‌ स्नान से निवृत्त होकर व्रत खोलना यानी पारण करना चाहिए।

इस व्रत में त्रयोदशी विद्धा (युक्त) चतुर्दशी तिथि ली जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव इस ब्रह्माण्ड के संहारक व तमोगुण से युक्त हैं जो महाप्रलय की बेला में तांडव नृत्य करते हुए अपने तीसरे नेत्र से ब्रह्माण्ड को भस्म कर देते हैं। अर्थात्‌ जो काल के भी महाकाल हैं जहां पर सभी काल (समय) या मृत्यु ठहर जातें हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की गति वहीं स्थित या समाप्त हो जाती है।

रात्रि की प्रकृति भी तमोगुणी है, जिससे इस पर्व को रात्रि काल में मनाया जाता है। भगवान शंकर का रूप जहाँ प्रलयकाल में संहारक है वहीं भक्तों के लिए बड़ा ही भोला,कल्याणकारी व वरदायक भी है जिससे उन्हें भोलेनाथ, दयालु व कृपालु भी कहा जाता है। अर्थात्‌ महाशिवरात्रि में श्रद्धा और विश्वास के साथ अर्पित किया गया एक भी पत्र या पुष्प पापों को नष्ट कर पुण्य कर्मों को बढ़ा तत्काल भाग्योदय करता है। इसीलिए इसे परम उत्साह, शक्ति व भक्ति का पर्व कहा जाता है।

घर पर कैसे करें शिवरात्रि का पूजन

भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें। अब स्वस्ति-पाठ करें।

स्वस्ति-पाठ –

स्वस्ति इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।

  • इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए। यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए।
  • संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए।
  • इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।
  • भगवान शिव का ध्यान करने के बाद आसन, आचमन, स्नान, दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं।
  • इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। फिर सुगंध-स्नान कराएं फिर शुद्ध स्नान कराएं।
  • अब भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। वस्त्र के बाद जनेऊ चढाएं। फिर सुगंध, इत्र, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र चढाएं।
  • अब भगवान शिव को विविध प्रकार के फल चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप-दीप जलाएं।
  • हाथ धोकर भोलेनाथ को नैवेद्य लगाएं।
  • नैवेद्य के बाद फल, पान-नारियल, दक्षिणा चढ़ाकर आरती करें। (जय शिव ओंकारा वाली शिव-आरती)
  • इसके बाद क्षमा-याचना करें।

क्षमा मंत्र : आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम, पूजाश्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:।

इस प्रकार संक्षिप्त पूजन करने से ही भगवान शिव प्रसन्न होकर सारे मनोरथ पूर्ण करेंगे। घर में पूरी श्रद्धा के साथ साधारण पूजन भी किया जाए तो भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं।

समस्याओं से मुक्ति हेतु करें ये विशेष उपाय

  • निरोगी काया की प्राप्ति हेतु शिवलिंग पर शहद से अभिषेक करें।
  • धन के अभाव से मुक्ति हेतु शिवलिंग पर चढ़े सिंदूर से घर के मेन गेट पर “श्रीं” लिखें।
  • दरिद्रता से मुक्ति हेतु शिवलिंग पर चढ़ा चांदी का सिक्का तिजोरी में रखें।
  • पारे से बने छोटे शिवलिंग की पूजा कार्यो में जल्दी सफलता मिल जायेगीं।
  • पके हुए चावलों से शिवलिंग का श्रृंगार करें और फिर पूजा करें. ऐसा करने से मंगलदोष शांत होता हैं।
  • केसर में मिला हुआ जल शिवलिंग पर चढ़ाए, वैवाहिक जीवन से जुड़ीं सभी समस्याएं दूर हो जायेंगी।
  • शनि दोष और रोग समाप्त करने के लिए शिवलिंग पर काले तिल और दूध मिलाकर, जल चढ़ाये बिमारियों से छुटकारा।
  • शिवलिंग पर नित्य दूर्वा चढ़ाने से दीर्घायु होंगे, और गणेशजी भी प्रसन्न होते है जिससे घर में सुख- समृद्धि आती है।
  • मासिक शिवरात्रि को शिवजी के निमित्त सवा किलो या 11 किलो चावल या गेहूं का दान करें।
  • शिवलिंग पर नित्य अक्षत चढ़ाने से लक्ष्मी की स्थाई कृपा मिलती है।
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