महाराणा प्रताप : मुगुलों को छटी का दूध याद दिलाने वाले वीर राजपूत देशभक्त

महाराणा प्रताप का इतिहास – Maharana Pratap History

महाराणा प्रताप के नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान हैं. यह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने मुगुलों को छटी का दूध याद दिला दिया था. इनकी वीरता की कथा से भारत की भूमि गोरवान्वित हैं. महाराणा प्रताप मेवाड़ की प्रजा के राणा थे. वर्तमान में यह स्थान राजिस्थान में आता हैं.प्रताप राजपूतों में सिसोदिया वंश के वंशज थे.यह एक बहादुर राजपूत थे जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी आखरी सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की.

इन्होने सदैव अपने एवम अपने परिवार से उपर प्रजा को मान दिया.एक ऐसे राजपूत थे जिसकी वीरता को अकबर भी सलाम करता था.महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में तो निपूर्ण थे ही लेकिन वे एक भावुक एवम धर्म परायण भी थे उनकी सबसे पहली गुरु उनकी माता जयवंता बाई जी थी. महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा उदयसिंह के पुत्र थे | महाराणा प्रताप बचपन से ही वीर और साहसी थे| उन्होंने जीवन भर अपनी मातृभूमि की रक्षा और स्वाभिमान के लिए संघर्ष किया | जब पूरे हिन्दुस्तान में अकबर का साम्राज्य स्थापित हो रहा था,तब वे 16वीं शताब्दी में अकेले राजा थे जिन्होंने अकबर के सामने खड़े होने का साहस किया| वे जीवन भर संघर्ष करते रहे लेकिन कभी भी स्वंय को अकबर के हवाले नहीं किया |

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महाराणा प्रताप का कद साढ़े सात फुट एंव उनका वजन 110 किलोग्राम था| उनके सुरक्षा कवच का वजन 72 किलोग्राम और भाले का वजन 80 किलो था| कवच, भाला, ढाल और तलवार आदि को मिलाये तो वे युद्ध में 200 किलोग्राम से भी ज्यादा वजन उठाए लड़ते थे| आज भी महाराणा प्रताप का कवच, तलवार आदि वस्तुएं उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए है|

महाराणा प्रताप  जीवन कहानी  – Maharana Pratap Life Story

महाराणा प्रताप का जन्म दिन आज के कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 में उत्तर दक्षिण भारत के मेवाड़ में हुआ था. हिंदी पंचाग के अनुसार यह दिन ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की तीज को आता हैं. आज भी इस दिन राजस्थान में प्रताप का जन्मदिन मनाया जाता हैं. प्रताप उदयपुर के राणा उदय सिंह एवम महारानी जयवंता बाई के पुत्र थे. महाराणा प्रताप की पहली रानी का नाम अजबदे पुनवार था. अमर सिंह और भगवान दास इनके दो पुत्र थे. अमर सिंह ने बाद में राजगद्दी संभाली थी.

महारानी जयवंता के अलावा राणा उदय सिंह की और भी पत्नियाँ थी जिनमे रानी धीर बाई उदय सिंह की प्रिय पत्नी थी. रानी धीर बाई की मंशा थी कि उनका पुत्र जगमाल राणा उदय सिंह का उत्तराधिकारी बने. इसके अलावा राणा उदय सिंह के दो पुत्र शक्ति सिंह और सागर सिंह भी थे. इनमे भी राणा उदय सिंह के बाद राजगद्दी सँभालने की मंशा थी, लेकिन प्रजा और राणा जी दोनों ही प्रताप को ही उत्तराधिकारी के तौर पर मानते थे. इसी कारण यह तीनो भाई प्रताप से घृणा करते थे.

इसी घृणा का लाभ उठाकर मुग़लों ने चित्तोड़ पर अपना विजय पताका फैलाया था. इसके आलावा भी कई राजपूत राजाओं ने अकबर के आगे घुटने टेक दिए थे और आधीनता स्वीकार की जिसके कारण राजपुताना की शक्ति भी मुगलों को मिल गई जिसका प्रताप ने अंतिम सांस तक डटकर मुकाबला किया लेकिन राणा उदय सिंह और प्रताप ने मुगलों की आधीनता स्वीकार नहीं की.

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आपसी फुट एवम परवारिक मतभेद के कारण राणा उदय सिंह एवम प्रताप चित्तोड़ का किला हार गए थे लेकिन अपनी प्रजा की भलाई के लिए वे दोनों किले से बाहर निकल जाते हैं. और प्रजा को बाहर से संरक्षण प्रदान करते हैं.पूरा परिवार एवम प्रजा अरावली की तरफ उदयपुर चला जाता हैं.अपनी मेहनत और लगन से प्रताप उदयपुर को वापस समृद्ध बनाते हैं और प्रजा को संरक्षण प्रदान करते हैं.

अकबर ने प्रताप के सामने प्रस्ताव रखा था कि अगर महाराणा प्रताप उनकी सियासत को स्वीकार करते है, तो आधे हिंदुस्तान की सत्ता महाराणा प्रताप को दे दी जाएगी लेकिन महाराणा ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया| लगातार 30 वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका|

महाराणा का सबसे बड़ा दुश्मन अकबर – Maharana Pratap and Akbar

उन दिनों अकबर मुगल साम्राज्य का शासक था। अकबर उस समय सबसे शक्तिशाली सम्राट भी था। अकबर के आगे कई राजपूत राजा पहले ही घुटने टेक चुके थे इसलिए अकबर अपनी मुग़ल सेना को अजेय मानता था। अकबर पूरे भारत पर राज करना चाहता था। इसलिए उसने कई राजपूत राजाओं को हराकर उनका राज्य हथिया लिया तो वहीं कई राजाओं ने मुग़ल सेना के डर से आत्मसमर्पण कर दिया।

अकबर ने महाराणा प्रताप को भी 6 बार संधि वार्ता का प्रस्ताव भेजा कि अगर महाराणा प्रताप उनकी सियासत को स्वीकार करते है, तो आधे हिंदुस्तान की सत्ता महाराणा प्रताप को दे दी जाएगी लेकिन महाराणा ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया| लगातार 30 वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका|

हल्दी घाटी का युद्ध – Battle of Haldi Ghati Story in hindi

यह इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था, इसमें मुगलों और राजपूतों के बीच घमासान हुआ था, जिसमे कई राजपूतों ने प्रताप का साथ छोड़ दिया था और अकबर की आधीनता स्वीकार की थी.

1576 में राजा मान सिंह ने अकबर की तरफ से 5000 सैनिकों का नेतृत्व किया और हल्दीघाटी पर पहले से 3000 सैनिको को तैनात कर युद्ध का बिगुल बजाया. दूसरी तरफ अफ़गानी राजाओं ने प्रताप का साथ निभाया, इनमे हाकिम खान सुर ने प्रताप का आखरी सांस तक साथ दिया. हल्दीघाटी का यह युद्ध कई दिनों तक चला. मेवाड़ की प्रजा को किले के अंदर पनाह दी गई. प्रजा एवम राजकीय लोग एक साथ मिलकर रहने लगे.लंबे युद्ध के कारण

अन्न जल तक की कमी होने लगी. महिलाओं ने बच्चो और सैनिको के लिए स्वयम का भोजन कम कर दिया. सभी ने एकता के साथ प्रताप का इस युद्ध में साथ दिया.उनके हौसलों को देख अकबर भी इस राजपूत के हौसलों की प्रसंशा करने से खुद को रोक नहीं पाया.लेकिन अन्न के आभाव में प्रताप यह युद्ध हार गये. युद्ध के आखरी दिन जोहर प्रथा को अपना कर सभी राजपूत महिलाओं ने अपने आपको अग्नि को समर्पित कर दिया. और अन्य ने सेना के साथ लड़कर वीरगति को प्राप्त किया.

इस सबसे वरिष्ठ अधिकारीयों ने राणा उदय सिंह, महारानी धीर बाई जी और जगमाल के साथ प्रताप के पुत्र को पहले ही चित्तोड़ से दूर भेज दिया था. युद्ध के एक दिन पूर्व उन्होंने प्रताप और अजब्दे को नीन्द की दवा देकर किले से गुप्त रूप से बाहर कर दिया था. इसके पीछे उनका सोचना था कि राजपुताना को वापस खड़ा करने के लिए भावी संरक्षण के लिए प्रताप का जिन्दा रहना जरुरी हैं.

मुगुलो ने जब किले पर हक़ जमाया तो उन्हें प्रताप कहीं नहीं मिला और अकबर का प्रताप को पकड़ने का सपना पूरा नही हो पाया. युद्ध के बाद कई दिनों तक जंगल में जीवन जीने के बाद मेहनत के साथ प्रताप ने नया नगर बसाया जिसे चावंड नाम दिया गया. अकबर ने बहुत प्रयास किया लेकिन वो प्रताप को अपने अधीन ना कर सका.

महाराणा प्रताप व उनकी पत्नी अजब्देह  की कहानी – Pratap and Ajabade Love Story

अजब्दे सामंत नामदे राव राम रख पनवार की बेटी थी. स्वभाव से बहुत ही शांत एवं सुशील थी. यह बिजोली की राजकुमारी थी. बिजोली चित्तोड़ के आधीन था. प्रताप की माँ जयवंता एवम अजबदे की माँ अपने बच्चो के विवाह के पक्ष में थी. उस वक्त बाल विवाह की प्रथा थी. अजबदे ने प्रताप को कई परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने में साथ दिया था. वो हर तरह से महारानी जयवंता बाई जी की छवि थी. उन्होंने युद्ध के दौरान भी प्रजा के बीच रहकर उनके मनोबल को बनाये रखा था.

अजबदे प्रताप की पहली पत्नी थी. इसके आलावा इनकी 11 पत्नियाँ और भी थी. प्रताप के कुल 17 पुत्र एवम 5 पुत्रियाँ थी.जिनमे अमर सिंह सबसे बड़े थे. वे अजबदे के पुत्र थे. महाराणा प्रताप के साथ अमर सिंह ने शासन संभाला था.

महाराणा प्रताप के सभी 11 पत्नियों के नाम

महारानी अज्बदे पुनवर, अमर्बाई राठौर, रत्नावातिबाई परमार, जसोबाई चौहान, फूल बाई राठौर, शाहमतिबाई हाडा, चम्पाबाई झाती, खीचर आशा बाई, अलाम्देबाई चौहान, लखाबाई, सोलान्खिनिपुर बाई।

महाराणा प्रताप के  सभी 17 पुत्र के नाम

अमर सिंह, भगवन दास, शेख सिंह, कुंवर दुर्जन सिंह, कुंवर राम सिंह, कुंवर रैभाना सिंह, चंदा सिंह, कुंवर हाथी सिंह, कुंवर नाथा सिंह, कुंवर कचरा सिंह, कुंवर कल्यान दास, सहस मॉल, कुंवर जसवंत सिंह, कुंवर पूरन मॉल, कुंवर गोपाल, कुंवर सनवाल दास सिंह, कुंवर माल सिंह।

महाराणा प्रताप और चेतक का अनूठा संबंध – Maharana Pratap and Chetak in Hindi

चेतक, महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा था. चेतक में संवेदनशीलता, वफ़ादारी और बहादुरी कूट कूट कर भारी हुई थी. यह नील रंग का अफ़गानी अश्व था.

एक बार, राणा उदय सिंह ने बचपन में प्रताप को राजमहल में बुलाकर दो घोड़ो में से एक का चयन करने कहा. एक घोडा सफ़ेद था और दूसरा नीला. जैसे ही प्रताप ने कुछ कहा उसके पहले ही उनके भाई शक्ति सिंह ने उदय सिंह से कहा उसे भी घोड़ा चाहिये शक्ति सिंह शुरू से अपने भाई से घृणा करते थे.

प्रताप को नील अफ़गानी घोड़ा पसंद था लेकिन वो सफ़ेद घोड़े की तरफ बढ़ते हैं और उसकी तारीफों के पूल बाँधते जाते हैं उन्हें बढ़ता देख शक्ति सिंह तेजी से सफ़ेद घोड़े की तरफ जा कर उसकी सवारी कर लेते हैं उनकी शीघ्रता देख राणा उदय सिंह शक्ति सिंह को सफ़ेद घोड़ा दे देते हैं और नीला घोड़ा प्रताप को मिल जाता हैं. इसी नीले घोड़े का नाम चेतक था, जिसे पाकर प्रताप बहुत खुश थे.

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प्रताप की कई वीरता की कहानियों में चेतक का अपना स्थान हैं. चेतक की फुर्ती के कारण ही प्रताप ने कई युद्धों को सहजता से जीता. प्रताप अपने चेतक से पुत्र की भांति प्रेम करते थे. हल्दी घाटी के युद्ध में चेतक घायल हो जाता हैं. उसी समय बीच में एक बड़ी नदी आ जाती हैं जिसके लिए चेतक को लगभग 21 फिट की चौड़ाई को फलांगना पड़ता हैं. चेतक प्रताप की रक्षा के लिए उस दुरी को फलांग कर तय करता हैं लेकिन घायल होने के कारण कुछ दुरी के बाद अपने प्राण त्याग देता हैं. 21 जून 1576 को चेतक प्रताप से विदा ले लेता हैं. इसके बाद आजीवन प्रताप के मन में चेतक के लिए एक टीस सी रह जाती हैं. आज भी हल्दीघाटी में राजसमंद में चेतक की समाधी हैं जिसे दर्शनार्थी उसी श्र्द्धा से देखते हैं जैसे प्रताप की मूरत को.

महाराणा प्रताप की मृत्यु  – Maharana Pratap Death Date

प्रताप एक जंगली दुर्घटना के कारण घायल हो जाते हैं. 29 जनवरी 1597 में प्रताप अपने प्राण त्याग देते हैं. इस वक्त तक इनकी उम्र केवल 57 वर्ष थी. आज भी उनकी स्मृति में राजस्थान में महोत्सव होते हैं.उनकी समाधी पर लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

प्रताप के शौर्यता से अकबर भी प्रभावित था. प्रताप और उनकी प्रजा को अकबर सम्मान की दृष्टि से देखते थे. इसलिये हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान उनकी सेना में वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों एवम सामंतों को हिन्दू रीती अनुसार श्रद्धा के साथ अंतिम विदा दी जाती थी.

प्रताप की मृत्यु के बाद मेवाड़ और मुग़ल का समझौता  – After Maharana Pratap’s Death

प्रताप की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र अमर सिंह ने राजगद्दी संभाली. शक्ति की कमी होने के कारण अमर सिंह ने अकबर के बेटे जहाँगीर के साथ समझौता किया, जिसमे उन्होंने मुगलों की आधीनता स्वीकार की, लेकिन शर्ते रखी गई. इस आधीनता के बदले मेवाड़ और मुगलों के बीच वैवाहिक संबंध नहीं बनेंगे. यह भी निश्चित किया गया कि मेवाड़ के राणा मुग़ल दरबार में नहीं बैठेंगे, उनके स्थान पर राणा के छोटे भाई एवम पुत्र मुग़ल दरबार में शामिल होंगे. इसके साथ ही चितौड़ के किले को मुगुलों के आधीन दुरुस्त करवाने की मुगलों की इच्छा को भी राजपूतों ने मानने से इनकार किया, क्यूंकि भविष्य में मुगल इस बात का फायदा उठा सकते थे.

इस तरह महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद मेवाड़ और मुगलों के बीच समझौता स्वीकार किया गया, लेकिन महाराणा प्रताप में जीते जी इस आधीनता को स्वीकार नहीं किया, विकट स्थिती में भी धेर्यता के साथ आगे बढ़ते रहे.

महाराणा प्रताप की जयंती – Maharana Pratap Birthday

 हिंदी पंचाग के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की तीज को आता हैं, इसलिए प्रतिवर्ष महाराणा प्रताप की जयंती इस दिन मनाई जाती है.

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