सिद्धकुंजिका स्तोत्र – दुर्गा सप्तसती का फल देने वाला माँ दुर्गा का लघु स्त्रोत

 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र Mp3 – Siddha Kunjika Stotram 

 

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र Pdf (Kunjika Strotam) एक अत्यधिक प्रभावशाली स्तोत्र है जो माँ दुर्गा का है, माँ दुर्गा को जगत माता का दर्जा दिया गया है | माँ दुर्गा को आदिशक्ति भी कहा जाता है, इस स्तोत्र को सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Siddha Kunjika Strot Mp3) कहा गया है जिसमे बहुत ही प्रभावशाली मंत्र है जो इंसान की हर एक परेशानी दूर करने में सक्षम है, आपके जीवन में आने वाली बाधाए और विघ्नों को नाश करके आपके जीवन को सुखमय बना सकता है ये स्तोत्र | इस स्तोत्र का नित्य जप बहुत ही फलदायी है यह आपको जीवन में प्रगती करने में बहुत मदद करेगा | इस स्तोत्र को जागृत या सिद्ध स्तोत्र कहा गया है जिसका मतलब है की ये स्वयंसिद्ध है, आपको इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है |

भगवान शिव ने पार्वती से कहा है कि दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का जो फल है वह सिर्फ कुंजिकास्तोत्र के पाठ से प्राप्त हो जाता है। कुंजिकास्तोत्र का मंत्र सिद्ध किया हुआ इसलिए इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। जो साधक संकल्प लेकर इसके मंत्रों का जप करते हुए दुर्गा मां की आराधना करते हैं मां उनकी इच्छित मनोकामना पूरी करती हैं। इसमें ध्यान रखने योग्य बात यह है कि कुंजिकास्तोत्र के मंत्रों का जप किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं करना चाहिए। किसी को क्षति पहुंचाने के लिए कुंजिकास्तोत्र के मंत्र की साधना करने पर साधक का खुद ही अहित होता है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र इन हिंदी

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

अथ मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे

ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

   ॥ इति मंत्रः॥

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुर घातिन

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥2॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥3॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥4॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नीः, वां वीं वागेश्वरी तथा।

क्रां क्रीं श्रीं में शुभं कुरू, ऐं ॐ ऐं रक्ष सर्वदा ।।5।।

ॐॐॐ कार-रूपायै, ज्रां ज्रां ज्रम्भाल-नादिनी।

क्रां क्रीं क्रूं कालिकादेवि ! शां शीं शूं में शुभं कुरू ।।6।।

ह्रूं ह्रूं ह्रूंकार रूपिण्यै, ज्रं ज्रं ज्रम्भाल नादिनी।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! भवानि ते नमो नमः ।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं बिन्दुराविर्भव।

आविर्भव हं सं लं क्षं मयि जाग्रय जाग्रय

त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरू कुरू स्वाहा।

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा ।।8।।

म्लां म्लीं म्लूं दीव्यती पूर्णा, कुंजिकायै नमो नमः।

सां सीं सप्तशती सिद्धिं, कुरूश्व जप-मात्रतः ।।9।।

फलश्रुती 

इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्र-जागर्ति हेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति।।

यस्तु कुंजिकया देवि! हीनां सप्तशती पठेत्।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

। इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।

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