केतु के उपाय – Ketu ke Upay
केतु के उपाय लाल किताब में सहज ही मिल जायेंगे, केतु की महादशा के उपाय से जातक कष्टों से मुक्ति पा सकता है , केतु की शांति के उपाय से जातक केतु की कृपा का पात्र बनता है और आध्यात्मिकता की और अग्रसर होता है, साथ ही कई मनोवांछित फलो की प्राप्ति भी होती है, तो चलिए जानते है केतु के उपाय
केतु की शांति के उपाय – Ketu Ke Upay Lal Kitab
राहु और केतु अगर जातक की कुंडली में दशा-महादशा में हों तो यह व्यक्ति को काफी परेशान करने का कार्य करते हैं। यदि कुंडली में उनकी स्थिति ठीक हो तो जातक को अप्रत्याशित लाभ मिलता है और यदि ठीक न हो तो प्रतिकूल प्रभाव भी उतना ही तीव्र होता है।
केतु बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है। केतु स्वभाव से एक क्रूर ग्रह हैं और यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक माना जाता है। अच्छी स्थिति में यह जहाँ जातक को इन्हीं क्षेत्रों में लाभ देता है तो बुरी अवस्था में यहीं हानि भी पहुंचता है।
केतु के उपाय लाल किताब – Ketu Remedies in Lal Kitab
1. अशुभ भाव में स्थित केतु के लिए गणपति सहस्त्रनाम सहित गणेश पूजा करें और दूर्वा से उनका अभिषेक करें।
2. केतु के वैदिक या तांत्रिक मंत्र का नियमित रूप से जाप करें।
3. पीपल वृक्ष की प्रदिक्षणा एवं नाग मूर्ति की प्रतिष्ठा भी लाभकारी है।
4. केतु के अशुभ प्रभाव के शमन में गणपति उपासना सर्वोपरि मानी जाती है। उनके अथर्वशीर्ष मंत्र के अनुष्ठान से भी लाभ प्राप्त करें।
5. केतु द्वादश नाम का नित्य पाठ करना चाहिए।
6. राहु-केतु के दोष निवृति हेतु सर्पाकार चांदी की अंगूठी धारण करें।
7. केतु को प्रसन्न करने हेतु लहसुनिया युक्त केतु यन्त्र गले में धारण करें।
8. दत्त चरित्र के ग्यारह परायण करें।
9. केतु कृत शारीरिक पीड़ा में (टी.बी. के कारण जीर्ण ज्वर में) बकरे के मूत्र से स्नान करना और लोबान की धुप देना लाभप्रद है।
10. काले-सफ़ेद कुत्ते को भोजन का हिस्सा दे या घर में कुत्ता पालें।
11. काले और सफेट तिल जल में प्रवाहित करें।
12. केतु उच्च का हो तो केतु की चीजों का दान न दें और केतु नीच का हो तो केतु की चीजों का दान न लें।
13. गणेश और देवी मंदिर में नित्य अर्चना करें और दीन-मलीन भिखारियों को यथाशक्ति दान तथा मछलियों एवं चीटियों को चीनी मिश्रित आटा खिलाये।
14. हाथी दांत से बनी वस्तुओं का व्यवहार या स्नान के जल में उसे डालकर स्नान करने से भी अरिष्ट निवारक होता है।
15. केतु यदि वृहस्पति-सूर्य-मंगल से युत या दृष्ट हो तो टाइगर ऑय रतन से युक्त केतु यन्त्र गले में अवश्य धारण करें।
16. कपिला गाय का दान देवें या सेवा करें तथा गौशाला में चारा आदि दें।
17. केतु पीड़ा की विशेष शांति हेतु बला, कूठ, लाजा, मुस्लि, नागरमोथा सरसों, देवदार, हल्दी, लोध एवं सरपंख मिलाकर आठ मंगलवार तक स्नान करें।
18. खटाई वाली चीजें नींबू , इमली या गोल-गप्पे लड़कियों को खुलायें।
19. काला-सफ़ेद कम्बल क धर्म स्थान में संकल्पपूर्वक दें या शमशान में दबाएं।
20. जिस के जन्मांग में कालसर्प योग की दुर्भाग्यकारक स्थिति हो, उन्हें एक वर्ष नियमित संकट चतुर्थी के व्रत सहित गणपति मंत्र और गणपति अथर्वशीर्ष का जप तथा यथाशक्ति हवन करना चाहिए और कालसर्प शांति अनुष्ठान कराना चाहिए।
21. केतु के कुयोग से यदि राजयोग भंग हो रहा हो, दरिद्रता और दुर्भाग की प्राधार प्रबलता हो उच्छिष्ट गणपति प्रयोग चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। अतः इस प्रयग को अवश्य हो संपन्न करावें।
केतु की महादशा के प्रभाव – Ketu Mahadasha Remedies
केतु की महादशा (Ketu Maha Dasha) में जातक को अनेक प्रकार के विषाद, धनधान्य का नाश, करीब- करीब सब विपत्तियों का आगमन, अनर्थो की प्रवृति, चारो तरफ से भय, रोग, विपत्ति की वृद्धि तथा अंततः शरीर का भी अवसान हो जाता है | जातक कष्ट उठाता है एव बंधुओ से विरोध सहने को विवश हो जाता है | व्यसनों से अपने आप को पतित कर देता है | उसके सर तथा नेत्रों में रोग उत्पन्न होते है, एवं व्यापार से लाभ प्राप्त होता है तथा स्त्री से हानि पहुचती है |
शूल रोग : हड्डियों के रोग, ज्वर, कम्प, चोर, वन्य पशु, संग्रहणी से दुःख, फोड़ा , फुंसी तथा अनेक रोगो से पीड़ा होती है |ब्राह्मणो से द्वेष, मूर्खता के कर्म, कारागृह, विश्वास- पात्र मित्र तथा बान्धवो से हानि, स्त्री वियोग से दुःख, द्रव्य हानि, कष्ट पर कष्ट तथा परदेश वास होता है|
षष्ठ स्थान में स्थित केतु की दशा में
राजकोप, बड़ाभय, चोर, अग्नि, विष से भय, फटे वस्त्र पहनने को मिले |
अष्ठम स्थान में स्थित केतु की दशा में
बड़ाभय, पिता की मृत्यु, स्वास, कास, संग्रहणी, क्षयरोग इत्यादि|
द्वादश स्थान में स्थित केतु की दशा में
विशेष कष्ट, स्थान हानि, प्रदेश वास, राज्य से पीड़ा, नेत्र नाश इत्यादि|
केतु मंत्र – Mantra of Ketu
ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते पार्श्व तीर्थंकराय धरेन्द्रयक्ष पद्मावतीयक्षी सहिताय |
ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: केतुमहाग्रह मम दुष्टग्रह, रोग कष्टनिवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू हूं फट् || 7000 जाप करे ||
तान्त्रिक मंत्र– ऊं स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम: || 17000 जाप करे ||