यह ब्रह्माण्ड बहुत विशाल है, इसके हर तत्त्व को, इसकी हर रचना को ना तो जाना जा सकता है और ना ही समझा जा सकता है, हमारी पृथ्वी का एक ही सूर्य लाखों डिग्री ताप के साथ इस पृथ्वी को तपा कर रख देता है, जबकी ब्रह्माण्ड में ऐसे ऐसे कोटि कोटि सूर्य हैं | हम इस पृथ्वी के एक ही चाँद को जानते हैं जबकि इसी पृथ्वी के 300 से भी अधिक चाँद हैं और उनमें से कुच्छ चाँद तो हमें दिखाई देने वाले हमारी पृथ्वी के इस चाँद से भी बड़े हैं | अकेले शनी ग्रह पर 62 चाँद हैं, असत्य या आश्चर्य आदि शब्दों को यहाँ भूल जाना चाहिए क्योंकि सब कुछ सत्य ही तो है , केवल हमें उसका ज्ञान नहीं है और थोड़ा बहुत किसी की कृपा से ज्ञान हो भी जाए तो एक विवशता और है की “अध् जल गगरी छलकत जाए” |
जब महाप्रलय का युग समाप्त हुआ और नई सृष्टी की रचना होने लगी तब केवल अन्धकार ही अन्धकार था, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था | ऋगवेद कहता है की – “नासदासीन नो सदासीत तदानीं नासीद रजो नो वयोमापरो यत” इस श्लोक का अर्थ तो यही निकलता है की सृष्टी से पहले कुछ भी नहीं था, तो यदि कुछ भी नहीं था तो यह लिखने वाला कहाँ से आ गया ? क्या भगवान् के बारे में वेद सब कुछ जानते हैं ?
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यदि जानते होते तो भगवान् ने ऐसा क्यों कहा होता – “वेद मेरा सार हैं, मैं हूँ वेदां माहीं, लेकिन जो मेरे मन में है , वह वेदों में नाहीं” अर्थात,वेद भी सब कुछ नहीं जानते, तो अब कोई बताये की हम कहाँ जाएं ? किस से पूछें ? नहीं पूछेंगें, नहीं जानेगे तो पुनः अज्ञान के साथ ही जन्म होगा और तब तक प्रश्न वाचक चिन्ह बिच्छू की तरह डंक मारता ही रहेगा|
मनुष्य चार प्रकार के होते हैं :-पामर , विषयी, साधक और सिद्ध
इनमें से कोई भी प्रकार ऐसी नहीं है जो षटरिपु, षटविकार जैसे 6 प्रकार के शत्रुओं से बचा हुआ हो |
भक्त कितने प्रकार के होते हैं ? भक्त भी चार प्रकार के होते हैं जैसे – आर्त,जिज्ञासु ,यथार्थी और ज्ञानी |
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इनमें से एक तो भगवान से माँगता ही रहता है , कभी तृप्त नहीं होता, उसकी मांगें, इच्छाएं,तृष्णाएँ कभी नहीं मिटती | एक केवल भगवान् के बारे में जानना ही चाहता है बस और कुछ नहीं चाहिए | एक यथार्थी है फिर भी लालच पीछा नहीं छोड़ता है, और एक ज्ञानी है जो केवल भगवान् को समर्पित है | ये चारों भी किसी ना किसी रोग से ग्रस्त रहते हैं
पुत्र कितने प्रकार के होते हैं ? मनु महाराज ने 12 प्रकार के पुत्र बताए हैं परन्तु मुख्य चार ही श्रेणियां हैं –
कोई सेवक बन कर पिछ्ला ऋण चुकाने आया, कोई पिछला ऋण उगाहने आया यानि शत्रु भाव, कोई आगे ऋण चढाने आया | कोई श्रवण कुमार अब नई निर्माण फक्ट्री में नहीं बन रहा इसलिए वृधाश्र्मों की चांदी हो रही है | क्या ज्ञान प्राप्ति से भाग्य बदल सकता है ? क्या भक्तों को कोई कष्ट नहीं है ? क्या साधू- संत आनंद में हैं या चिंता मुक्त हैं ?
इन सब का एक ही उत्तर है की जाही विधी राखे राम ताही विधी रहिये |