दीपावली पर निबंध – दीपावली पर लेख
दीपावली पर निबंध – इस दीपोत्सव पर वह दीप जलाएं जिससे न केवल घर आंगन, शहर, देश बल्कि पूरे विश्व में उसका प्रकाश आलोकित हो जाएं, अंधेरे के माथे पर इसके प्रकाश का तिलक लगाकर ऐसा दीपोत्सव मनाएं कि वह भी देवी लक्ष्मी को नमन करें, आप सबका जीवन सुखमय, धन- सम्पदा, योग्य सन्तान, स्वस्थ होने की कामना से पूर्ण हो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की नरक चतुर्दशी के दिन नरक के लिए भी दीपदान करें ताकि पितर नरक में न रहें, न उन्हें कभी ‘‘यम यातना‘ ‘सहनी पड़े, इन दीपकों का प्रकाश उन्हें मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करें, उनसे शुभ मंगलमय आशीर्वाद प्राप्त हों।
यों दीपावली के दिन यानी कार्तिकी अमावस्या को धन, सम्पदा, ऐश्वर्य की दात्री देवी लक्ष्मी की पूजा, दीप जलाने के पुराणों में जो भी प्रसंग है, उनमें यदि एक प्रसंग जो न केवल विशेष, दीपकों से पितरों के संबंध, बल्कि कार्तिकी कृष्ण पक्षीय त्रयोदशी से अमावस्या तक अलग महत्व रखती है को नहीं जानते हों तो जाने।
नरक चतुर्दशी की कथा
जब भगवान् वामन ने त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच परम दानी दैत्यराज बलि के राज्य को तीन कदम में नाप दिया तो, बलि ने अपना पूरा राज्य उन्हें दान कर दिया। इस पर भगवान् वामन ने प्रसन्न होकर बलि से वर मांगने को कहा। बलि ने भगवान् से कहा कि ‘मैंने जो कुछ आपको दिया है, उसे तो मैं मांग सकता नहीं, न ही अपने लिए कुछ और मांगूंगा, लेकिन संसार के लोगों के कल्याण के लिए मैं एक वर मांगता हूं। आपकी शक्ति है, तो दे दीजिए।‘
इस पर भगवान् वामन ने कहा- क्या वर मांगना चाहते हो राजन मांगो?‘‘ यह सुन दैत्यराज बलि ने कहा कि ‘आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली। इन तीन दिनों में प्रतिवर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए तथा इन तीन दिन की अवधि में जो व्यक्ति मेरे राज्य में दीपावली मनाये उसके घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास हो तथा ‘‘जो व्यक्ति चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करेंगे, उनके सभी पितर कभी नरक में न रहें, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए।
राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान् वामन बोले- ‘मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके सभी पितर लोग कभी भी नरक में नहीं रहेंगे तथा जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी कहीं भी नहीं जायेगी। इस कथा के अनुसार भगवान् वामन द्वारा बलि को दिये इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन, दीपदान का प्रचलन आरम्भ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।
माँ लक्ष्मी का तिल्ली के तेल में निवास
जाने तो यह भी कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की नरक चतुर्दशी यानी छोटी दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी तिल्ली के तेल में भी निवास करती है। भविष्यपुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक वर्ष के समस्त पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं। इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल की मालिश करनी चाहिए, यद्यपि कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित होती है, किन्तु नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है। नरक चतुर्दशी को तिल्ली के तेल में देवी लक्ष्मी तथा जल में गंगा का निवास होता है।
देवी लक्ष्मी किसी का अशुभ, निर्धनता, धनाभाव में कष्टपूर्ण जीवन नहीं चाहती, यह सब तो व्यक्ति के कर्मफल, उसकी प्रवृत्ति पर निर्भर है। कंचन-कामिनी किसे नहीं चाहिए, यानी कनक तथा कान्ता के मोहजाल में कौन नहीं बंधना चाहता। व्यक्ति के उत्कर्ष, सुख के लिए धन तथा स्त्री दोनों साधन अत्यावश्यक है। धन के बिना जीवन का निर्वहन, स्त्री के बिना परिवार, घर, वंश असंभव है। शास्त्रकारों ने द्वितीय (धन) तथा सप्तम ( भार्या ) इन दोनों भावों को मारक भाव की संज्ञा दी।
सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर भी यही सिद्ध होता है कि धन (द्वितीय), भार्या (सप्तम) यह दोनों भाव यथार्थ में मारक भाव हैं। कनक, कान्ता का प्रभाव, आकर्षण इतना अद्भुत, अगाध, अगम्य है कि विरक्त व्यक्ति भी, विश्वामित्र जैसे ऋषि भी इसके मोहपाश में बंध सकते हैं।
धन के प्राप्ति के लिए इस जगत् में ऐसा भला या बुरा कौनसा कर्म है जिसे वह नहीं करना चाहता, चाहे वह पुण्य या पाप कर्म क्यों न हो। धन के लिए इस जगत में ऐसा कौनसा मार्ग है जिसे मनुष्य स्वीकार करना नहीं चाहता, चाहे वह अनुचित कुमार्ग क्यों न हो। धन प्राप्ति के लिए इस संसार में ऐसा कौनसा स्थान है जहां मनुष्य नहीं जाना चाहता, चाहे वह देश हो या विदेश। यही नहीं, धन के लिए इस संसार में ऐसा कौनसा योग्य तथा आयेग्य पात्र है जिसकी मर्जी से सम्पादन करने के लिए मनुष्य भरसक प्रयत्न नहीं करता, चाहे वह उत्कृष्ट या निकृष्ट पुरूष क्यों न हो।
धनलक्ष्मी का सद्पयोग करे
यह सच है कि विश्व में धन का अभाव नहीं है पर उसके सद्उपयोग, सद्प्रवृत्ति का अभाव है। जब लोग इंदियतृप्ति की भावना से प्रेरित होते हैं तो जो भी धन कमाया जाता है वह नष्ट हो जाता है। इस प्रकार मनुष्य के भगवान् से विमुख होने के कारण मानव जाति की शक्ति नष्ट हो जाती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि श्री भगवान् ही समस्त शक्तियों के स्वामी हैं। धन-सम्पदा की पूजा होती है उसे भाग्य की देवी या मां लक्ष्मी कहा जाता है। कोई भी मनुष्य भाग्यलक्ष्मी का उपभोग श्री नारायण की सेवा के बगैर नहीं कर सकता। इसलिए जो व्यक्ति धनलक्ष्मी का गलत उपयोग करना चाहेगा, उसे प्रकृति के नियमों द्वारा दंडित होना पड़ेगा।
ये नियम निश्चित करेंगे कि धन-संपदा स्वयं शांति, सुख सम्पन्नता लाने के बजाय विनाश का कारण बन जाएं। इसलिए धन के उपयोग के प्रति हमें अपने विवेक का परिचय देना चाहिए, यह सुनिश्चत कर लेना चाहिए कि जो भी धन है उसका मानव कल्याण के लिए उपयोग हो। अगर धन के उपयोग के प्रति हमारे मन के भीतर भोग की भावना होगी तो उस धन का अपव्यय ही होगा, हमारा अपना आंतरिक नुकसान भी होगा। धन का सउपयोग ही हमारे भीतर वास्तविक सुख लाता है। जीवन में आनन्द, संतुष्टि प्राप्त होती है।
भोजन इतना नहीं कि अपच हो जाए, भोग- इतना भी नहीं कि रोगग्रस्त, अस्वस्थ हो जाएं, छलांग इतनी लम्बी नहीं कि चोट लगे, बोझ इतना भी न उठाएं कि उससे स्वयं दब जाएं, क्रोध इतना भी नहीं कि अपनी ही हानि कर बैठें, इतना भी ऊपर देखें कि नीचे खड्डा भी नजर न आएं। जीवन की व्यवस्था, धन का उपयोग इतना संतुलित होना चाहिए कि सुख, प्रसन्नता, संतुष्टि की सुगंध से जीवन का हर दिन, हर पल महक उठे।
तृतीय पराक्रम तथा अष्टम आयु मर्यादा भाव के स्वामी पर द्वितीय तथा सप्तम (कनक तथा कान्ता का प्रभाव अधिक न पड़कर उन पर वह ऐहिक तथा पारलौकिक विजय प्राप्त कर अपनी जीवन यात्रा शांति, सुख से व्यतीत करें। यह अनेक कर्मयोगी तथा विद्वानों के जीवन चरित्र से सिद्ध हो चुका है जिनका स्मरण संसार से विज्ञ पुरूष प्रतिदिन कर रहे हैं। इसलिए दीपोत्सव पर देवी लक्ष्मी के समक्ष प्रार्थना कीजिए
शुभम् करोति कल्याणम् आरोग्य धन-सम्पदा । शत्रु-बुद्धि विनाशाय दीप ज्योति नमोस्तुते॥
यानी दीप ज्योति हमारा कल्याण करें, हमें आरोग्यता के साथ सुख और सम्पदा प्रदान करें, उसे दीप ज्योति को हम नमस्कार करते हैं। आप सभी को सपरिवार दीपावली के पांचों दिनों में ‘धनवन्तरि जयन्ती, धनत्रयोदशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाईदूज पर पूज,‘‘ आराधना पर्व, दीपोत्सव आप सबके जीवन को सुख, समृद्धि, शांति, सौहार्द, तथा अपार खुशियों की रोशनी से जगमगा करें। सभी स्वस्थ, प्रसन्न, धर्मानुरागी हो, यही कामना है, यही प्रार्थना है।