परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र

परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र

ये तो हम सभी जानते हैं कि परमपिता ब्रह्मा से ही इस सारी सृष्टि का आरम्भ हुआ। सर्वप्रथम ब्रह्मा ने पृथ्वी सहित सारी सृष्टि की रचना की। तत्पश्चात उन्होंने जीव रचना के विषय में सोचा और तब उन्होंने अपने शरीर से कुल ५९ पुत्र उत्पन्न किये। इन ५९ पुत्रों में उन्होंने सर्वप्रथम जो १६ पुत्र अपनी इच्छा से उत्पन्न किये वे सभी “मानस पुत्र” कहलाये। इन १६ मानस पुत्रों में १० “प्रजापति” एवं उनमें से ७ “सप्तर्षि” के पद पर आसीन हुए। ये सभी मानस पुत्र ब्रह्मा के अन्य पुत्रों से अधिक प्रसिद्ध हैं। पुराणों में इन्हे “साम ब्रह्मा”, अर्थात ब्रह्मा के सामान कहा गया है।

वैसे तो पुराणों में उनके पुत्रों के नाम अलग-अलग दिए गए हैं किन्तु भागवत पुराण में वर्णित मानस पुत्रों को ही सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। कही कही मानस पुत्रों की संख्या १४ भी बताई गयी है क्यूंकि ४ सनत्कुमारों एवं मनु और शतरूपा को अलग-अलग नहीं गिना जाता। यदि सब को अलग-अलग गिनें तो इनकी संख्या १८ हो जाती है। आइये इनके विषय में संक्षेप में जानते हैं:

1. मन से मरीचि – (सप्तर्षि एवं प्रजापति): इन्हे द्वितीय ब्रह्मा भी कहा जाता है। इनकी सम्भूति, कला एवं ऊर्णा नामक तीन पत्नियां थी। ऋषियों में श्रेष्ठ महर्षि कश्यप इन्ही के पुत्र हैं। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि – “मरुतों में मैं मरीचि हूँ।” इस एक वाक्य से ही इनकी महत्ता समझ में आती है।

2. नेत्र से अत्रि – (सप्तर्षि एवं प्रजापति): इन्होने अपनी पत्नी अनुसूया से त्रिदेवों को पुत्र के रूप में पाया। माता अनुसूया के गर्भ से ब्रह्मा के अंश से चंद्र, विष्णु के अंश से दत्तात्रेय एवं शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म हुआ। अपने वनवास काल में श्रीराम इनसे मिलने आये थे।

3. मुख से अंगिरस – (सप्तर्षि एवं प्रजापति): परमपिता ब्रह्मा से वेदों की शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले सप्तर्षि महर्षि अंगिरा ही थे। इन्होने ने ही सर्वप्रथम अग्नि को उत्पन्न किया था। इनकी सुरूपा, स्वराट, पथ्या एवं स्मृति नामक ४ पत्नियाँ हैं। देवगुरु बृहस्पति एवं महर्षि गौतम इन्ही के पुत्र हैं। इन्होने ही रानी चोलादेवी को देवी लक्ष्मी के श्राप से मुक्ति दिलवाई थी।

4. नाभि से पुलह – (सप्तर्षि एवं प्रजापति): इन्होने ब्रह्माण्ड के विस्तार में अपने पिता को सहयोग दिया था। इनकी क्षमा एवं गति नामक दो पत्नियां थी। इसके अतिरिक्त किंपुरुष भी इन्ही के पुत्र माने जाते हैं। ये महादेव के बहुत बड़े भक्त थे और कशी का पुहलेश्वर शिवलिंग इन्ही के नाम पर पड़ा है।

5. हाथ से क्रतु – (सप्तर्षि एवं प्रजापति): इन्होने ने ही सर्वप्रथम वेदों का विभाजन किया था। इनकी पत्नी का नाम सन्नति था जिनसे इन्हे ६०००० पुत्रों की प्राप्ति हुई जो बालखिल्य कहलाये।

6. कान से पुलस्त्य – (सप्तर्षि एवं प्रजापति): ये रावण के पितामह एवं महर्षि विश्रवा के पिता थे। इनकी प्रीति एवं हविर्भुवा नामक पत्नियां थी और महान अगस्त्य इन्ही के पुत्र माने जाते हैं।

7. प्राण से वशिष्ठ – (सप्तर्षि एवं प्रजापति): ये श्रीराम के कुलगुरु थे और देवी अनुसूया की छोटी बहन अरुंधति इनकी पत्नी थी। गौ माता कामधेनु की पुत्री नंदिनी इन्ही के गौशाला में रहती थी। इन्होने राजर्षि विश्वामित्र को परास्त किया और उन्हें ब्रह्मर्षि पद प्राप्त करने में सहायता की।

8. त्वचा से भृगु – (प्रजापति): इनका वंश प्रसिद्ध भार्गव वंश कहलाया जिस कुल में आगे चल कर भगवान परशुराम ने जन्म लिया। इन्ही के पुत्र शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु के पद पर आसीन हुए। इन्होने ने ही त्रिदेवों की परीक्षा ली और श्रीहरि को त्रिगुणातीत घोषित किया। माता लक्ष्मी भी इन्ही की पुत्री मानी जाती हैं।

9. पांव के अंगूठे से दक्ष – (प्रजापति): ये प्रजापतियों में सबसे प्रसिद्ध माने जाते हैं। इनकी पुत्रियों से ही मानव वंश का अनंत विस्तार हुआ। इन्होने अपनी पत्नियों प्रसूति एवं वीरणी से ७४ कन्याओं को प्राप्त किया जिनका विवाह विभिन्न ऋषियों एवं देवों से हुआ। इन्ही की पुत्री सती महादेव की पहली पत्नी थी। इनकी पुत्रियों एवं उनके पतियों के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें।

10. छाया से कर्दम – (प्रजापति): इन्होने स्वयंभू मनु की पुत्री देवहुति से विवाह कर ९ पुत्रियों – कला, अनुसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती एवं शान्ति तथा एक पुत्र कपिल मुनि को प्राप्त किया। इनकी पुत्रियों के विवाह भी महान ऋषियों से हुए।

11. गोद से नारद – ये श्रीहरि के महान भक्त थे जिन्हे देवर्षि का पद प्राप्त है। इन्होने सनत्कुमारों को दीक्षा देकर संन्यासी बना दिया जिससे क्रुद्ध होकर इनके पिता ब्रह्मा ने इन्हे एक जगह स्थिर ना होने का श्राप दे दिया। तब से ये सर्वत्र विचरण करते रहते हैं। देव और दैत्य दोनों इनका सम्मान करते हैं।

12. इच्छा से ४ सनत्कुमार – इन चारों को ब्रह्मा ने मैथुनी सृष्टि रचने के लिए उत्पन्न किया किन्तु देवर्षि नारद ने इन्हे दीक्षा देकर संन्यासी बना दिया। तब ब्रह्मा ने नारद को स्थिर ना रहने का और इन चारों को ५-५ वर्ष के बालक रूप में रहने का श्राप दिया। ये महादेव के अनन्य भक्त हैं। इन्होने ही श्रीहरि के पार्षदों जय एवं विजय को श्राप दिया जिससे वे तीन जन्मों तक पृथ्वी पर भटकते रहे एवं श्रीहरि के अवतारों द्वारा मुक्ति प्राप्त की। ये हैं:

1. सनक
2. सनन्दन
3. सनातन
4. सनत्कुमार

13. शरीर से मनु एवं शतरूपा: सनत्कुमारों के संन्यास ग्रहण करने के पश्चात ब्रह्मा ने अपने शरीर से स्वयंभू मनु एवं शतरूपा को प्रकट किया जिनसे अनंत पुत्र-पुत्रियों की उत्पत्ति हुई। मनु के नाम से ही हम मानव कहलाते हैं। ये ही प्रथम मन्वन्तर के अधिष्ठाता हैं एवं इन्ही के शासन काल में ब्रह्मा के सात ऋषि पुत्रों ने सप्तर्षि का कार्य भार संभाला।

1. वाम अंग से शतरूपा
2. दक्षिण अंग से स्वयंभू मनु

14. धयान से चित्रगुप्त: ये कायस्थ वंश के जनक हैं और यमराज के मंत्री के रूप में इनकी प्रतिष्ठा है। सभी इंसानों के कर्मों का लेखा-जोखा यही रखते हैं। इन्होने दो कन्याओं – इरावती एवं नंदिनी से विवाह किया जिससे १२ पुत्र जन्में जिससे समस्त कायस्थ वंश चला।

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