माता अमृतानंदमयी
दक्षिण भारत के केरल राज्य में मछुआरों की बस्ती में एक दरिद्र परिवार में जन्मीं माता अमृतानंदमयी मां ने वित्त मंत्री अरूण जेटली को ‘नमामी गंगे अभियान’ के लिए 100 करोड़ रूपए का चैक दिया। इसके पहले सुनामी के समय भी उन्होंने गरीब मछुआरों की मदद के लिए लगभग एक हजार करोड़ रूपया खर्च किया था। उनकी संस्था द्वारा चलाई जा रही सेवाओं का मुख्य उद्देश्य दीनहीन लोगों की निःस्वार्थ मदद करना है। मसलन, उनके सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में गरीब और अमीरदोनों का एक जैसा इलाज होता है। पर गरीब से फीस उसकी हैसियत अनुसार नाम मात्र की ली जाती है। गरीबों के लिए अपना सब कुछ लुटा देने वाली ये अम्मा कोई साधारण व्यक्तित्व नहीं हो सकतीं।
केरल की ये अम्मा गरीबों का दुख निवारण करने के लिए सदैव तत्पर रहती है। इसका ही परिणाम है कि केरल में जहां गरीबी व्याप्त थी और उसका फायदा उठाकर भारी मात्रा में धर्मांतरण किए जा रहे थे, वहीं आज अम्मा की सेवाओं के कारण धर्मांतरण बहुत तेजी से रूका है। हिंदू धर्मावलंबी अब अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए मिशनरियों के प्रलोभनों में फंसकर अपना धर्म नहीं बदलते। पर, इस स्थिति को पाने के लिए अम्मा ने वर्षों कठिन तपस्या की है।
कृष्ण भाव में तो वे जन्म से ही डूबी रहती थीं। पर उनके अनाकर्षक रूप, रंग और इस असामान्य व्यवहार के कारण उन्हें अपने परिवार से भारी यातनाएं झेलनी पड़ीं। वयस्क होने तक अपने घर में नौकरानी से ज्यादा उनकी हैसियत नहीं थी। जिसकी दिनचर्या सूर्योदय से पहले शुरू होती और देर रात तक खाना बनाना, बर्तन मांझना, कपड़े धोना, गाय चराना, नाव खेकर दूर से मीठा पानी लाना, क्योंकि गांव में खारा पानी ही था, गायों की सेवा करना, बीमारों की सेवा करना, यह सब कार्य अम्मा को दिन-रात करने पड़ते थे। ऊपर से उनके साथ हर वक्त गाली-गलौज और मारपीट कर जाती थी। उनके बाकी भाई-बहिनों को खूब पढ़ाया लिखाया गया। पर, अम्मा केवल चैथी पास रह गईं। इन विपरीत परिस्थितियों में भी अम्मा ने कृष्ण भक्ति और मां काली की भक्ति नहीं त्यागी। इतनी तीव्रता से दिन-रात भजन किया कि उनकी साधना सिद्ध हो गई। कलियुग के लोग चमत्कार देखना चाहते हैं, पर अम्मा स्वयं को सेविका बताकर चमत्कार दिखाने से बचती रहीं। पर ये चमत्कार क्या कम है कि वे आज तक दुनियाभर में जाकर 5 करोड़ लोगों को गले लगा चुकी हैं। उनको सांत्वना दे चुकी हैं, उनके दुख हर चुकी हैं और उन्हें सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती रही हैं।
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इस चमत्कार के बावजूद हमारी ब्राह्मणवादी हिंदू व्यवस्था ने एक महान आत्मा को मछुआरिन मानकर वो सम्मान नहीं दिया, जो संत समाज में उन्हें दिया जाना चाहिए था। दुनियाभर के तमाम पढ़े-लिखे लोग, वैज्ञानिक, सफल व्यवसायी, भारी मात्रा में उनके शिष्य बन चुके हैं और उनके आगे बालकों की तरह बिलख-बिलख कर अपने दुख बताते हैं। मां सबको अपने ममतामयी आलिंगन से राहत प्रदान करती हैं। उनके आचरण में न तो वैभव का प्रदर्शन है और न ही अपनी विश्वव्यापी लोकप्रियता का अहंकार। उनके द्वार पर कोई भी, कभी भी, अपनी फरियाद लेकर जा सकता है। ऐसा वहां जाकर आए बहुत से लोगों ने बताया है।