गृह प्रवेश और भूमि पूजन – Grah Pravesh & Bhumi Pujan
भवन सम्बन्धी कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माह का चयन करना अति महत्वपूर्ण होता है । भारतीय कैलेण्डर के अनुसार फाल्गुन, वैसाख एवं सावन के महीने भूमिपूजन, शिलान्यास एवं गृह निर्माण ( Grah Nirman ) हेतु के लिए सर्वश्रेष्ठ महीने माने गए हैं। इन महीनो में गृह सम्बन्धी किसी भी कार्य की शुरुआत करने से मान सम्मान, धन संपत्ति और निरोगिता की प्राप्ति होती है , घर के सदस्यों के मध्य प्रेम बना रहता है, जबकि माघ, ज्येष्ठ, भाद्रपद एवं मार्गशीर्ष महीने को मध्यम श्रेणी में रखा गया हैं। लेकिन चैत्र, आषाढ़, आश्विन तथा कार्तिक मास उपरोक्त शुभ कार्य की शुरुआत के लिए वर्जित कहे गए है। इन महीनों में गृह निर्माण प्रारंभ करने से धन यश की हानि होती है एवं घर परिवार के सदस्यों की आयु भी कम होती है।
भवन बनाना शुरू करने से पहले हमें शुभ वार का अवश्य ही चयन करना चाहिए । भवन निर्माण के लिए सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार , शुक्रवार तथा शनिवार सबसे शुभ दिन माने गए हैं। लेकिन मंगलवार और रविवार को भवन सम्बन्धी कोई भी कार्य जैसे भूमिपूजन, गृह निर्माण का प्रारम्भ , गृह का शिलान्यास या गृह प्रवेश को बिलकुल भी नहीं करना चाहिए।
भवन सम्बन्धी कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ तिथि का चयन करना भी अति आवश्यक होता है । गृह निर्माण हेतु सर्वाधिक शुभ तिथियाँ द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी तिथियाँ मानी गयी है । इन तिथियाँ में गृह निर्माण करने से किसी भी प्रकार की अड़चने नहीं आती है जबकि अष्टमी तिथि को मध्यम माना गया है। लेकिन शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की तीनों रिक्त तिथियाँ अशुभ होती हैं। ये रिक्ता तिथियाँ हैं- चतुर्थी, नवमी एवं चतुर्दशी। इन तीनों तिथियों में गृह निर्माण सम्बन्धी कोई भी कदापि कार्य शुरू नहीं करने चाहिए इसके अतिरिक्त प्रतिपदा, अष्टमी और अमावस्या को भी गृह निर्माण सम्बन्धी कोई भी कार्य शुरू नहीं करना चाहिए अन्यथा इसके अशुभ परिणाम भोगने पड़ सकते है
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भवन सम्बन्धी कार्यों की शुरुआत के लिए यदि शुभ नक्षत्र का चयन किया जाय तो यह बहुत ही उत्तम साबित होता है । किसी भी शुभ माह के रोहिणी, पुष्य, अश्लेषा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, स्वाति, हस्तचित्रा, रेवती, शतभिषा, धनिष्ठा सर्वाधिक पवित्र और सभी प्रकार से लाभप्रद नक्षत्र माने जाते हैं। गृह निर्माण अथवा किसी भी तरह के शुभ कार्य की शुरुआत इन नक्षत्रों में करना बहुत हितकर होता है। बाकी अन्य सभी नक्षत्र मध्यम श्रेणी में माने जाते हैं।
हमारे शास्त्रानुसार (स) अथवा (श) वर्ण से शुरू होने वाले सात अति शुभ लक्षणों में गृह सम्बन्धी कार्यों की शुरुआत करने से ना केवल धन-संपत्ति, ऐश्वर्य, निरोगिता और सद्बुद्धि की ही प्राप्ति होती है वरन घर के सदस्यों में प्रेम एवं आपसी भाईचारा भी हमेशा बना रहता है । सात शुभ लक्षणों का योग है, सावन माह, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शनिवार का दिन, शुभ योग, सिंह लग्न में स्वाति नक्षत्र । इस योग में गृह निर्माण सर्वोत्तम माना गया है। इसमें या भी संभव है कि सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि में शनिवार ना हो या उस दिन उपरोक्त नक्षत्र ना हो फिर भी इसमें जितने भी योग मिल जाये वह बहुत ही लाभकारी है ।
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किसी भी निर्माण में शिलान्यास सर्वप्रथम अग्नेय दिशा में करना चाहिए फिर उसके बाद प्रदिक्षणा करने के क्रम से निर्माण करना चाहिए अर्थात अग्नेय दिशा के बाद दक्षिण, नैत्रत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर , ईशान और अंत में पूर्व की तरफ निर्माण को समाप्त करना चाहिए । यह अवश्य ही ध्यान रहे कि कभी भी निर्माण की समाप्ति दक्षिण दिशा में नहीं होनी चाहिए अन्यथा भवन स्वामी की स्त्री , पुत्र को गंभीर रोग / अकाल मृत्यु के साथ साथ धन की हानि भी हो सकती है ।
अतः इससे स्पष्ट है कि गृह निर्माण सम्बन्धी किसी भी कार्य के शुभारंभ में शुभ मुहूर्त पर विचार करके हम अपने घर को निश्चय ही सपनो का घर बना सकते है । लेकिन गृह निर्माण से पहले भूमि का पूजन करना शास्त्रों में अत्यावश्यक बताया गया है
क्यों आवश्यक है भूमि पूजन
जब भी किसी नई भूमि पर किसी तरह का निर्माण कार्य शुरु किया जाता है तो उससे पहले भूमि की पूजा की जाती है, मान्यता है कि यदि भूमि पर किसी भी प्रकार का कोई दोष है, या उस भूमि के मालिक से जाने-अनजाने कोई गलती हुई है तो भूमि पूजन से धरती मां हर प्रकार के दोष पर गलतियों को माफ कर अपनी कृपा बरसाती हैं। कई बार जब कोई व्यक्ति भूमि खरीदता है तो हो सकता है उक्त जमीन के पूर्व मालिक के गलत कृत्यों से भूमि अपवित्र हुई हो इसलिये भूमि पूजन द्वारा इसे फिर से पवित्र किया जाता है। मान्यता है कि भूमि पूजन करवाने से निर्माण कार्य सुचारु ढंग से पूरा होता है। निर्माण के दौरान या पश्चात जीव की हानि नहीं होती व साथ ही अन्य परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है।
भूमि पूजन की विधि
सबसे पहले पूजन के दिन प्रात:काल उठकर जिस भूमि का पूजन किया जाना है वहां सफाई कर उसे शुद्ध कर लेना चाहिये। पूजा के लिये किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण की सहायता लेनी चाहिये। पूजा के समय ब्राह्मण को उत्तर मुखी होकर पालथी मारकर बैठना चाहिये। जातक को पूर्व की ओर मुख कर बैठना चाहिये। यदि जातक विवाहित है तो अपने बांयी तरफ अपनी अर्धांगनी को बैठायें। मंत्रोच्चारण से शरीर, स्थान एवं आसन की शुद्धि की जाती है। तत्पश्चात भगवान श्री गणेश जी की आराधना करनी चाहिये। भूमि पूजन में चांदी के नाग व कलश की पूजा की जाती है।
वास्तु विज्ञान और शास्त्रों के अनुसार भूमि के नीचे पाताल लोक है जिसके स्वामी भगवान विष्णु के सेवक शेषनाग भगवान हैं। मान्यता है कि शेषनाग ने अपने फन पर पृथ्वी को उठा रखा है। चांदी के सांप की पूजा का उद्देश्य शेषनाग की कृपा पाना है। माना जाता है कि जिस तरह भगवान शेषनाग पृथ्वी को संभाले हुए हैं वैसे ही यह बनने वाले भवन की देखभाल भी करेंगें। कलश रखने के पिछे भी यही मान्यता है कि शेषनाग चूंकि क्षीर सागर में रहते हैं
इसलिये कलश में दूध, दही, घी डालकर मंत्रों द्वारा शेषनाग का आह्वान किया जाता है ताकि शेषनाग भगवान का प्रत्यक्ष आशीर्वाद मिले। कलश में सिक्का और सुपारी डालकर यह माना जाता है कि लक्ष्मी और गणेश की कृपा प्राप्त होगी। कलश को ब्रह्मांड का प्रतीक और भगवान विष्णु का स्वरुप मानकर उनसे प्रार्थना की जाती है कि देवी लक्ष्मीसहित वे इस भूमि में विराजमान रहें और शेषनाग भूमि पर बने भवन को हमेशा सहारा देते रहें। भूमि पूजन विधि पूर्वक करवाया जाना बहुत जरुरी है अन्यथा निर्माण में विलंब, राजनीतिक, सामाजिक एवं दैविय बाधाएं उत्पन्न होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
भूमि पूजन के लिये पूजा सामग्री
भूमि पूजन के लिये गंगाजल, आम तथा पान वृक्ष के पत्ते, फूल, रोली एवं चावल, कलावा, लाल सूती कपड़ा, कपूर, देशी घी, कलश, कई तरह के फल, दुर्बा घास, नाग-नागिन जौड़ा, लौंग-इलायची, सुपारी, धूप-अगरबत्ती, सिक्के, हल्दी पाउडर आदि सामग्री की आवश्यकता होती है।
भूमि पूजन के बाद गृह निर्माण होता है और तत्पश्चात गृह प्रवेश, हम आपको बताते हैं कि गृह प्रवेश के दौरान पूजा कैसे करें। लेकिन उससे पहले बताते हैं गृह प्रवेश कितने प्रकार का होता है।
कितने प्रकार का होता है गृह प्रवेश
शास्त्रों के अनुसार गृह प्रवेश तीन प्रकार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार है।
अपूर्व गृह प्रवेश – जब पहली बार बनाये गये नये घर में प्रवेश किया जाता है तो वह अपूर्व ग्रह प्रवेश कहलाता है।
सपूर्व गृह प्रवेश – जब किसी कारण से व्यक्ति अपने परिवार सहित प्रवास पर होता है और अपने घर को कुछ समय के लिये खाली छोड़ देते हैं तब दुबारा वहां रहने के लिये जब जाया जाता है तो उसे सपूर्व गृह प्रवेश कहा जाता है।
द्वान्धव गृह प्रवेश – जब किसी परेशानी या किसी आपदा के चलते घर को छोड़ना पड़ता है और कुछ समय पश्चात दोबारा उस घर में प्रवेश किया जाता है तो वह द्वान्धव गृह प्रवेश कहलाता है।
उपरोक्त तीनों ही स्थितियों में गृह प्रवेश पूजा का विधान धर्म ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है।
गृह प्रवेश की पूजा विधि
सबसे पहले गृह प्रवेश के लिये दिन, तिथि, वार एवं नक्षत्र को ध्यान मे रखते हुए, गृह प्रवेश की तिथि और समय का निर्धारण किया जाता है। गृह प्रवेश के लिये शुभ मुहूर्त का ध्यान जरुर रखें। इस सब के लिये एक विद्वान ब्राह्मण की सहायता लें, जो विधिपूर्वक मंत्रोच्चारण कर गृह प्रवेश की पूजा को संपूर्ण करता है।
गृह प्रवेश की पूजन सामग्री
कलश, नारियल, शुद्ध जल, कुमकुम, चावल, अबीर, गुलाल, धूपबत्ती, पांच शुभ मांगलिक वस्तुएं, आम या अशोक के पत्ते, पीली हल्दी, गुड़, चावल, दूध आदि।
कैसे करें गृह प्रवेश
पूजा विधि संपन्न होने के बाद मंगल कलश के साथ सूर्य की रोशनी में नए घर में प्रवेश करना चाहिए। घर को बंदनवार, रंगोली, फूलों से सजाना चाहिए। मंगल कलश में शुद्ध जल भरकर उसमें आम या अशोक के आठ पत्तों के बीच नारियल रखें। कलश व नारियल पर कुमकुम से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं। नए घर में प्रवेश के समय घर के स्वामी और स्वामिनी को पांच मांगलिक वस्तुएं नारियल, पीली हल्दी, गुड़, चावल, दूध अपने साथ लेकर नए घर में प्रवेश करना चाहिए। भगवान गणेश की मूर्ति, दक्षिणावर्ती शंख, श्री यंत्र को गृह प्रवेश वाले दिन घर में ले जाना चाहिए।
मंगल गीतों के साथ नए घर में प्रवेश करना चाहिए। पुरुष पहले दाहिना पैर तथा स्त्री बांया पैर बढ़ा कर नए घर में प्रवेश करें। इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करते हुए गणेश जी के मंत्रों के साथ घर के ईशान कोण में या फिर पूजा घर में कलश की स्थापना करें। इसके बाद रसोई घर में भी पूजा करनी चाहिये। चूल्हे, पानी रखने के स्थान और स्टोर आदि में धूप, दीपक के साथ कुमकुम, हल्दी, चावल आदि से पूजन कर स्वास्तिक चिन्ह बनाना चाहिये।
रसोई में पहले दिन गुड़ व हरी सब्जियां रखना शुभ माना जाता है। चूल्हे को जलाकर सबसे पहले उस पर दूध उफानना चाहिये, मिष्ठान बनाकर उसका भोग लगाना चाहिये। घर में बने भोजन से सबसे पहले भगवान को भोग लगायें। गौ माता, कौआ, कुत्ता, चींटी आदि के निमित्त भोजन निकाल कर रखें। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करायें या फिर किसी गरीब भूखे आदमी को भोजन करा दें। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख, शांति व समृद्धि आती है व हर प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं।
गृह प्रवेश मुहूर्त – Grah Pravesh Muhurat
Griha Pravesh Dates |
Griha Pravesh Muhurat |
Nakshatra For Grahpravesh |
Tithi For Grahpravesh |
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24th February (Saturday) | 24:05+ to 30:01+ | Mrigashirsha | Dashami |
02nd March (Friday) | 23:38 to 29:35+ | Uttara Phalguni | Pratipada |
03rd March (Saturday) | 06:01 to 22:25 | Uttara Phalguni | Dwitiya |
08th March (Thursday) | 06:01 to 26:15+ | Anuradha | Saptami |
12th March (Monday) | 11:05 to 30:00+ | Uttara Ashadha | Dashami, Ekadashi |
19th April (Thursday) | 24:37+ to 29:56+ | Mrigashirsha | Panchami |
20th April (Friday) | 05:56 to 22:15 | Mrigashirsha | Panchami |
27th April (Friday) | 09:37 to 15:31 | Uttara Phalguni | Trayodashi |
02nd May (Wednesday) | 05:56 to 19:09 | Anuradha | Dwitiya, Tritiya |
11th May (Friday) | 14:56 to 25:11+ | Uttara Bhadrapada | Ekadashi |
22nd June (Friday) | 06:05 to 27:38+ | Chitra | Dashami |
25th June (Monday) | 06:32 to 30:06+ | Anuradha | Trayodashi |
29th June (Friday) | 16:52 to 30:06+ | Uttara Ashadha | Dwitiya |
30th June (Saturday) | 06:06 to 19:59 | Uttara Ashadha | Dwitiya, Tritiya |
05th July (Thursday) | 06:53 to 26:36+ | Uttara Bhadrapada | Saptami |
08th November (Thursday) | 22:37 to 29:28+ | Anuradha | Dwitiya |
09th November (Friday) | 05:28 to 22:05 | Anuradha | Dwitiya |
17th December (Monday) | 08:58 to 29:38+ | Revati | Dashami |
28th December (Friday) | 11:37 to 29:19+ | Uttara Phalguni | Saptami |
31st December (Monday) | 05:44 to 09:49 | Chitra | Dashami |