आषाढ़ पूर्णिमा – Ashadh Purnima
वैसे तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होती है लेकिन आषाढ़ माह की पूर्णिमा और भी खास होती है। आषाढ़ पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है साथ ही इस दिन गोपद्म व्रत भी रखा जाता है। इस पूर्णिमा को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। आइये जानते हैं आषाढ़ पूर्णिमा के महत्व व व्रत विधि के बारे में।
आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व – Ashadha Purnima Importance
हिंदूओं में पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह का नामकरण पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा जिस नक्षत्र में विद्यमान होता है उसी के अनुसार रखा गया है। मान्यता है कि आषाढ़ माह की पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में होता है। यदि आषाढ़ मास में पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा उत्ताराषाढ़ा नक्षत्र में रहे तो वह पूर्णिमा बहुत ही सौभाग्यशाली व पुण्य फलदायी मानी जाती है। ऐसे संयोग में दस विश्वदेवों की पूजा करने का विधान भी है।
आषाढ़ पूर्णिमा व गुरु पूर्णिमा – Ashadha Guru Purnima
आषाढ़ मास की पूर्णमासी को ही गुरु पूर्णिमा भी मनाई जाती है। आषाढ़ में गुरु पूर्णिमा मनाये जाने को ओशो ने अच्छे से व्याख्यायित किया है उनका मानना है कि जिसने भी गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ मास में चुना है इसके पिछे उसका कोई खयाल है कोई ईशारा है। क्योंकि आषाढ़ पूर्णिमा तो पूर्णिमा सी नज़र भी नहीं आती उससे सुंदर और भी पूर्णिमाएं हैं शरद पूर्णिमा है जिसका चांद बहुत सुंदर होता है लेकिन नहीं उसे नहीं चुना।
इसका कारण यह है कि गुरु तो पूर्णिमा जैसा है और शिष्य है आषाढ़ जैसा। आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है। यानि गुरु शिष्यों से घिरा है। शरद पूर्णिमा पर अकेला चांद चमकता नज़र आता है वहां गुरु ही है शिष्य है ही नहीं। जन्म-जन्मांतर के अज्ञान रूपी अंधकार स्वरूपी बादल ही शिष्य हैं जिनमें गुरु चांद की तरह अपनी चमक से अंधेरे वातावरण को चिर कर उसमें रोशनी पैदा करता है। इसलिये आषाढ़ पूर्णिमा में ही गुरु पूर्णिमा की सार्थकता है।
आषाढ़ पूर्णिमा पर गोपद्म व्रत – Ashadha Purnima Gopadm Vrat
आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को ही गोपद्म व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि गोपद्म व्रत सभी प्रकार के सुख प्रदान करने वाला होता है।
आषाढ़ पूर्णिमा व गोपद्म व्रत पूजा की विधि – Ashadha Purnima Gopadm Vrat Vidhi
हिंदूओं के विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न पर्व-त्योहारों व व्रतों पर विशेष पूजा करने के विधान हैं। शास्त्रानुसार आषाढ़ पूर्णिमा पर रखे जाने वाले गोपद्म व्रत की विशेष विधि है। गोपद्म व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। हालांकि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार मास तक के लिये सो जाते हैं लेकिन गोपद्म व्रत के दिन उन्हीं की पूजा की जाती है। इसके लिये व्रती को प्रात:काल उठकर स्नानादि के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये।
व्रत के पूरे दिन भगवान श्री विष्णु में ध्यान लगाये रखना चाहिये। उनके चतुर्भुज रूप का स्मरण करना चाहिये जिसमें वे गरूड़ पर सवार हों और संग में माता लक्ष्मी का भी ध्यान लगाना चाहिये। समस्त देवी-देवता उनका स्तुतिगान कर रहे हैं उनकी आराधना कर रहे हैं ऐसा सोचना चाहिये। धूप, दीप, पुष्प, गंध आदि से विधिनुसार पूजा करनी चाहिये। भगवान श्री हरि के पूजन के पश्चात विद्वान ब्राह्मण या किसी जरूरदमंद को भोजन करवाकर सामर्थ्यनुसार दान-दक्षिणा देकर प्रसन्न करना चाहिये।
मान्यता है कि यदि पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन किया जाये तो इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं एवं व्रती की मनोकामना को पूर्ण करते हैं। संसार में रहते समस्त भौतिक सुखों का आनंद लेकर अंत काल में व्रती को मोक्ष की प्राप्ति होती है।