अर्जुन और उलूपी विवाह – Arjun Ulupi Vivah
Arjun Son Iravan – महाभारत से जुड़े ऐसे कई प्रसंग है जो बहुत कम लोग जानते हैं. सभी को अर्जुन की सिर्फ दो ही पत्नी, द्रौपदी और सुभद्रा के बारे में पता है, लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की इन दो के अलावा दो और पत्नी थी, जी हां उनका नाम था चित्रांगदा और उलूपी, उलूपी जहा नाग कन्या थी वही चित्रांगदा, मणिपुर की राजकुमारी थी. इन चारो पत्नियों से अर्जुन को एक एक पुत्र प्राप्त हुवे थे जो क्रमश: श्रुतकीर्ति, अभिमन्यु, बभ्रुवाहन और इरावन नाम से प्रसिद्ध हुए। अर्जुन और उलूपी के लिए इरावन का जन्म विवरण श्रीमद्भागवतम् के 9.22 अध्याय में वर्णित है
उलूपी के पिता का नाम राजा कौरव्य था. वे किसी देश के नहीं, बल्कि हरिद्वार में गंगा नदी के निचे बसे नाग समुदाय के महामहीम थे. अर्जुन और उलूपी के विवाह के पीछे भी एक रोचक कथा है –
तरह वर्षो के वनवास के पहले जब पांडव इंद्रप्रस्थ रह रहे थे. तो युधिष्ठिर ने उन पांचों पांडव के बीच यह नियम निर्धारित किया था कि द्रौपदी एक साल तक केवल एक पांडव की पत्नी होगी. जिसके अनुसार यदि द्रौपदी उस समय सीमा के भीतर कक्ष में किसी एक पांडव के साथ हैं, तो दूसरा कोई भी भाई उस कक्ष में एक साल तक प्रवेश नहीं कर सकता. यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे एक साल का वनवास भोगना होगा.
महाभारत की एक घटना के अनुसार जिस वर्ष द्रौपदी, युधिष्ठिर के साथ अपने कक्ष में एकांत में थीं. उसी समय किसी दुष्ट से, ब्राह्मण के पशुओं की, रक्षा के लिए लिए अर्जुन को अपने धनुष की जरुरत पड़ी, अर्जुन भूलवश द्रौपदी के कक्ष में ही अपना धनुष भूल आए थे. परन्तु क्षत्रिय धर्म का पालन करने हेतु, अर्जुन द्रौपदी के कक्ष में बिना आज्ञा प्रवेश कर, धनुष ले गए |
वापिस आकर सीधे युधिष्ठिर के पास पहुंचे और याचना करते हुए कहा, कि यह मेरा अपराध है, मैंने द्रौपदी के साथ पांडवों के वचन को तोड़ा है., अत: मैं एक वर्ष के वनवास को भोगने के लिए तैयार हूं. हालांकि युधिष्ठिर ने अर्जुन के नियम तोड़ने का कारण जानने के बाद उन्हें निर्दोष पाया, परन्तु अर्जुन ग्लानि महसूस कर रहे थे. इसलिए वे वनवास चले गए.
वनवास की यात्रा के दौरान अर्जुन हरिद्वार पहुंचे. जहां वे गंगा स्नान कर रहे थे. जब सुचना मिलते ही नागलोक वासियो ने अर्जुन को मारने की योजना बनाई. क्योकि अर्जुन ने इंद्रप्रस्थ को बसाने के लिए, वहा से समस्त नागों का संहार किया था. और आज उनको अवसर मिला था, प्रतिशोध लेने का, सो उस समय नागो की राजकन्या, उलूपी ने कहा कि वह स्वयं अर्जुन वध करेगी. उलूपी राजकन्या तो थी ही, साथ ही विधवा भी थी. दरअसल उसका पति भी नाग वंश से संबंधित था, पर उसकी मृत्यु एक गरुड़ के हाथों हो गई थी. तब से राजकुमारी अपने पिता के साथ ही थी.
पर जब उलूपी अर्जुन को मारने के लिए गंगा तट के किनारे पहुंची, तो वह उन्हें देखकर मोहित हो गई. अर्जुन के प्रति उसके आर्कषण ने बदले की भावना को खत्म कर दिया. वह नाग रूप से एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गई और अर्जुन को माया से बेहोश कर नाग लोक ले आई.
कुछ दिनों में अर्जुन को होश आया और उन्होंने अपने सामने उलूपी को पाया. उलूपी ने सारी घटना विस्तार से बताई और कहा की अब मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं.कृपया मेरे प्रेम को स्वीकार करें. अर्जुन विवाह के विषय में कुछ कह पाते, इसके पहले ही उलूपी ने कहा कि मैं जानती हूं कि आपकी तीन पत्नियां हैं. पर मुझे चौथी पत्नी बनने से कोई परहेज नहीं. उलूपी ने अपने पिता और समस्त नागवंश का अर्जुन से समझौता करवाया. जो भविष्य में होने वाले युद्ध के लिए जरुरी भी जान अर्जुन ने स्वीकृति दे दी.
अर्जुन ने उलूपी से गंधर्व विवाह किया. चूंकि वे हमेशा के लिए नागलोक में नहीं रह सकते थे, इसलिए कुछ समय व्यतीत करने के बाद वहां से जाने लगे. वनवास का समय भी समाप्त हो गया था, इसलिए उन्हें वापिस इंद्रप्रस्थ पहुंचना आवश्यक था. उलूपी ने अर्जुन को नहीं रोका, पर जाने से पहले उन्हें सूचना दी कि वह अर्जुन की संतान को जन्म देने वाली है. इसके साथ ही अर्जुन को वरदान दिया कि जल युद्ध में आप कभी पराजित नहीं हो सकते.
अर्जुन ने उलूपी से विदा ली और इंद्रप्रस्थ आ गए. दूसरी ओर उलूपी ने इरावन नाम के पुत्र को जन्म दिया. इरावन का पालन पोषण नागकुल में ही हुआ वे बड़े वीर और मायावी भी थे और अर्जुन की ही भाती सुन्दर और मुख पर तेज था, और महाभारत युद्ध के समय अपनी माता उलूपी की आज्ञा से युद्ध करने पहुंचे थे, महाभारत युद्ध से पहले विजय प्राप्त करने हेतु देवी के अनुष्ठान के लिए एक नरबलि देनी की आवश्यकता थी, परन्तु ऐसे व्यक्ति की बलि दी जा सकती थी जिसमे ३२ नैतिक गुण हो, और सम्पूर्ण गुणों वाले केवल तीन ही व्यक्ति थे – कृष्ण, अर्जुन और इरावन
कृष्ण तो स्वयं भगवान् थे, वही अर्जुन की बलि से युद्ध हार जाते, तो बचे इरावन, इरावन ने स्वयं को सहर्ष बलि के लिए प्रस्तुत किया, परन्तु उनकी इच्छा युद्ध भूमि में वीर गति प्राप्त करने की थी और साथ ही, उन्होंने विवाह करने की इच्छा जताई, क्योकि वे विवाहित वीर गति को प्राप्त होना चाहते थे ताकि कोई उनके शव पर रोने वाली प्रियतमा भी हो, तब भगवान कृष्ण ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए मोहिनी रूप धारण कर राजकुमार इरावन से विवाह किया। और उनकी ये इच्छा पूरी की. इसी कारण दक्षिण भारत में आज भी किन्नर इरावन को अपना एक दिन का पति मान उनसे विवाह करती है, चूँकि श्री कृष्णा भी पुरुष से स्त्री बने थे तो किन्नर अपने आप को उस एक दिन मोहिनी मान, इरावन को पूजती है
अब बारी आती है बलि की तो श्री कृष्णा के कहे अनुसार इरावन अपने शरीर को 32 हिस्सों में काटकर देवी काली को अर्पित करता है। इस बलि से देवी काली अवतरित होती है और उनके साथ इरावन सशरीर वापस आ जाते है और देवी काली उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद देती हैं।
महाभारत के भीष्म पर्व के 83वें अध्याय के अनुसार महाभारत के युद्ध के सातवें इरावान का अवंती के राजकुमार विंद और अनुविंद से अत्यंत भयंकर युद्ध हुआ। इरावान ने दोनों भाइयों से एक साथ युद्ध करते हुए अपने पराक्रम से दोनों को पराजित कर दिया और फिर कौरव सेना का संहार आरंभ कर दिया। जिससे कौरवों की घुड़सवार सेना नष्ट हो गयी, और साथ ही शकुनि के छ: पुत्रो को भी यमलोक भेज दिया. यह देख भयभीत दुर्योधन ने राक्षस अलम्बुष को इरावन से युद्ध के लिए भेजा, और अलम्बुष और इरावन का अनेक प्रकार से घोर मायावि युद्ध हुआ।
उसी समय नागलोक के नागराज की सेना भी अपने युवराज इरावान की सहायता के लिए वहां आ पहुंची। तब उस राक्षस अलम्बुष ने गरूड़ का रूप धारण कर समस्त नागों को भक्षण करना आरंभ किया। और देखते ही देखते उस राक्षस ने सब नागों का भक्षण कर लिया, यह देख अर्जुन पुत्र इरावन अत्यंत दुखी और निढाल हो गए और उस अवसर का फायदा उठाते हुवे उस राक्षस ने इरावान को तलवार से यमलोक भेजने का प्रबंध कर दिया, परन्तु इतिहास ऐसे वीर के पराक्रम को सदैव याद रखेगा, धन्य है वो वीरपुत्र जिसने धर्म की पूर्ति के लिए अपने प्राण तज दिए |