महाभारत के युद्ध के बाद की कथा – After Mahabharata What Happened
After Mahabharata War – महाभारत युद्ध को कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था। कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिनी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षौहिणी सेना थी। श्री राम के पुत्र लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में राजा शल्य हुए थे, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। इस भयंकर युद्ध में पुरे भारतवर्ष के योद्धाओ ने हिस्सा लिए, परन्तु कुछ योद्धा ही बच पाए (After Mahabharata What Happened) तो चलिए जानते है की इन सभी योद्धाओ का युद्ध के बाद क्या परिणाम हुआ
महाभारत के युद्ध के बाद अगर बात की जाये पांडव पक्ष के योद्धाऔ की तो – पांचो पांडव, यदुवंशी सात्यकि और द्रुपद पुत्र शिखंडी के साथ कुल 15 योद्धा ही शेष बचे थे, वही कौरवों की तरफ से 3 योद्धा ही जीवित बचे थे।
कौरव पक्ष के योद्धा में कौरव भाइयो में से एकमात्र जीवित बचा योद्धा युयुत्सु था। जो पांडव सेना की और से युद्ध में लड़ा था, युयुत्सु, राजा धृतराष्ट्र के वेश्या दासी महिला से उत्पन्न पुत्र थे। इसके अलावा कौरव पक्ष से युद्ध करने वालो में कृपाचार्य, अश्वथामा और कृतवर्मा बचे थे, कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे और उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान था। । और ऐसा माना जाता है की वे आज भी जीवित हैं।
वही गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भी आज तक जीवित है, अश्वत्थामा के मस्तक पर अमृत मणि होने के कारण उन्हें कोई मार नहीं सकता था। पिता द्रोणाचार्य और मित्र दुर्योधन की मृत्यु से अश्वत्थामा पांडवो से भयंकर क्रोधित हो गए थे और रात के अँधेरे में द्रोपदी पुत्रो को पाण्डु पुत्र समझ नींद में ही मार डाला, परन्तु जब वेद व्यास जी से पता चला की वे पाण्डु नहीं थे तो अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर पांडवो को मारना चाहा.
उधर श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया लेकिन वेदव्यास जी कहने पर अर्जुन ने तो ब्रह्मास्त्र वापस लौटा दिया पर अश्वत्थामा ने वो ब्रह्मास्त्र पांडवो के वंश को नाश करने हेतु अभिमन्यु और उत्तरा पुत्र परीक्षित जो गर्भ में ही था पर चला डाला, जिससे उसकी गर्भ में ही मृत्यु हो गयी, इससे भयंकर क्रोधित कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप देकर और उनकी मणि छीनकर, घायल अवस्था में सदैव जीवित रहने का श्राप दे डाला. और बाद में श्री कृष्ण ने पुनः परीक्षित को जीवन दान दे दिया.
वही कृतवर्मा यदुवंशी थे, जो श्री कृष्णा की अक्षोहिणी सेना के साथ दुर्योधन की और से युद्ध लड़ रहे थे । लेकिन बाद में गांधारी के श्राप के चलते यादवों के गृह युद्ध में वे भी मारे गए थे। स्वयं सात्यकि ने कृतवर्मा को मृत्यलोक का रास्ता दिखाया था | बाद में सत्यकि भी यादवो के गृहयुद्ध में मारे गए थे। कहा जाता है यह गृह युद्ध इन दोनो के कौरव और पांडव को लेकर आपसी झगडे को लेकर शुरू हुआ था जिसका अंत समस्त यादवकुल के विनाश से हुआ |
युद्ध में बाद धृतराष्ट्र और गांधारी ने पांडवों के साथ 15 साल व्यतीत करने के पश्चात् कुंती, विदुर और संजय के साथ वनवास को चले गए और वहा रहकर तप करने लगे। विदुर और संजय इनकी सेवा में लगे रहते और तपस्या किया करते थे। एक दिन युधिष्ठिर के वन में पधारने के बाद विदुर ने देह छोड़कर अपने प्राणों को युधिष्ठिर में समा दिया।
वही अगले दिन जब धृतराष्ट्र सहित सभी लोग स्नान करके आश्रम आ रहे थे, तभी वन में लगी भयंकर आग से वे तीनो उसी अग्नि में स्वाहा हो गए, संजय ने इस घटना को तपस्वियों को बताई और वे स्वयं दुखी हो हिमालय पर तपस्या करने चले गए। धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती की मृत्यु का समाचार से राज महल में हाहाकार मच गया.
वही युद्ध के 36 वर्ष बाद गांधारी द्वारा दिए श्राप के चलते श्रीकृष्ण के कुल के सभी योद्धा मारे गए, और बलराम ने दुखी होकर समुद्र के किनारे जाकर समाधि ले ली। और श्रीकृष्ण को प्रभाष क्षेत्र में एक ज़रा नाम के बहेलिये ने पैर में तीर मार दिया जिसे कारण बनाकर उन्होंने देह त्याग दी। उनकी मृत्यु 119 वर्ष की आयु में हुई थी, वही यादवों और उनके अन्य गणराज्यों का अंत होते ही श्री कृष्ण द्वारा बसाई द्वारका भी सागर में डूब गई।
युधिष्ठिर ने 36 वर्षो तक हस्तिनापुर पर राज किया, परन्तु अपनी माता कुंती, गांधारी और धतराष्ट्र और विदुर सहित श्री कृष्णा और बलराम की मृत्यु के समाचार ने उनको अत्यधिक विचलित कर दिया और सभी पांडवों को घोर वैराग्य प्राप्त हो चूका था।
यह देखते हुए उसी दिन युधिष्ठिर ने राज सिंहासन, अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को सौंपा और चारों भाई और द्रौपदी सहित चल पड़े सशरीर स्वर्ग की और जीवन की इस अंतिम यात्रा पर, कहा जाता है है कृष्णा की मृत्यु के दिन रात 12 बजे से कलयुग का आरम्भ हुआ था, इसके बाद पांडव की हिमालय यात्रा में अपने अर्जित किये पाप और पुण्य अनुसार सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हुई, फिर क्रमश नकुल, सहदेव, अर्जुन और भीम की, सिर्फ युधिस्ठिर ही सशरीर स्वर्ग तक पहुंच सके, और इस पूरी यात्रा में एक कुकुर अर्थात कुत्ता भी उनके साथ था और वो कोई और नहीं स्वयं धर्मराज यमराज थे, जो उनको स्वर्ग का मार्ग दिखलाने आये थे |