नवग्रह तत्त्व-विज्ञान – जाने नवग्रह के नाम, रंग और उनसे सम्बंधित धातु और जड़ी बूटी

नवग्रह | Navagraha

इस सृष्टि की रचना कब और कैसे हुई? ब्रह्मांड के रहस्य क्या है? यह सब जानने के लिए मनुष्य निरंतर प्रयासरत रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रकृति का गहन अध्ययन कर हमारी धार्मिक मान्यताओं के वैज्ञानिक रहस्यों को उद्घाटित किया है। उनके द्वारा रचित तत्त्व-विज्ञान का अध्ययन हमें बताता है कि कौन सा ग्रह किस देवता के तत्त्वों को धारण करता है, ताकि उसके अनुसार उस देवता को पूजा पदार्थ अर्पित किए जा सकें। विधिवत् अर्पण करने से अर्पित करनेवाले की काया-शक्ति और आत्मशक्ति दोनों बढ़ती हैं।

नवग्रह नाम – नवग्रह के रंग | Navagraha Names, Navagraha Gods Details

सूर्य सूर्य ग्रह में अग्नि तत्व की प्रधानता है। इसलिए इसके देवता रुद्र-शिव हैं। जिस धातु में यह तत्व पाया जाता है वह ताँबा है। इसीलिए इस ग्रह का रंग ताँबे सा लाल होता है। सूर्य देवता को अर्पित किया जानेवाला फूल जवाकुसुम होता है और फल आँवला होता है। इस जवाकुसुम में आत्मशक्ति को बढ़ानेवाले तत्त्व हैं। इसकी जड़ से वे औषधियाँ बनती हैं, जिनमें मानसिक शक्ति को बल मिलता है। सूर्य को अर्पित किए जानेवाले फल आँवले में आँखों की रोशनी को बढ़ाने की शक्ति होती है।

चंद्र चंद्र ग्रह में जल तत्त्व की प्रधानता है। इसलिए इसकी देवी पार्वती हैं जिस धातु में यह तत्त्व पाया जाता है। वह चाँदी है। इस ग्रह का रंग श्वेत शंख सा होता है। पार्वती की अर्चना के लिए दूब अर्पित की जाती है। पैरों में बिछी हुई दूब में कायाकल्प की शक्ति होती है। इसीलिए नंगे पाँव दूब पर चलने का विधान भी है। कायाकल्प के लिए जो पाँच औषधियों का पंचामरा बनाया जाता है, उसमें तीन गाँठ की दूब जरूर डाली जाती है।

मंगल मंगल ग्रह में अग्नि तत्त्व प्रधान होता है। इसके इष्ट गणपति हैं। जिस धातु में यह तत्त्व पाया जाता है वह सोना है। इस अग्नि तत्त्व प्रधान ग्रह का रंग रक्तिम लाल होता है। गणपति की आराधना के लिए लाल कनेर अर्पित किए जाते हैं, साथ में दूब भी लाल कर्नर में बुद्धि-बल को विकसित करने के तत्त्व हैं। लाल कनेर की छाल से त्वचा रोग की औषधियाँ बनाई जाती हैं।

बुध बुध ग्रह में पृथ्वी तत्व प्रधान होता है। इसके इष्ट विष्णु हैं, जो जीवों के पालनहार हैं। जिस धातु में यह तत्त्व पाया जाता है—वह काँसा है। पृथ्वी तत्व प्रधान ग्रह का रंग विचित्र हरा होता है। विष्णु पूजा में अशोक, कदंब, पाटल, मोंगरा, कुंदकलि और शंखावली के फूल होते हैं। अशोक, कदंब आदि फूलों में राजयोग की शक्ति होती है और शंखावली के फूल वाणी-शक्ति को बढ़ाते हैं।

बृहस्पति बृहस्पति ग्रह में आकाश तत्व की प्रधानता है। इसलिए इसके देवता त्मा और शिव है। जिस धातु में यह तत्त्व पाया जाता है वह चाँदी-सोना है। आकाश तत्त्व प्रधान बृहस्पति ग्रह का रंग पॉला है। इसके देवताओं की आराधना के लिए पीला कर्नर अर्पित किया जाता है पीले कनेर की सुगंधि विवेक शक्ति को बढ़ाती है। जीव रक्षा का गुण भी इसमें समाया रहता है।

शुक्र शुक्र ग्रह में जल तत्व प्रधान होता है। इसलिए लक्ष्मी और सरस्वती इसकी देवियाँ हैं। जिस धातु में यह तत्व पाया जाता है वह चाँदी है। जल तत्व प्रधान शुक्र ग्रह का रंग सफेद होता है। लक्ष्मी को लाल रंग के गुलाब अर्पित किए जाते हैं और सरस्वती को सफेद गुलाब लाल गुलाब में गति तत्त्व है, जो काया को क्रियाशील और कर्मशील करता है। सफेद गुलाब के तत्त्व अक्षर शक्ति के रहस्य खोलते हैं, साथ ही परा विद्या का ज्ञान बढ़ाते हैं। इन विद्याओं के लिए सफेद फूल चढ़ाते हैं। लाल गुलाब की पत्तियों से गुलकंद बनाया जाता है, जिसका आँतों की शुद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है।

शनि शनि ग्रह में वायु तत्त्व की प्रधानता होती है। इसलिए इसके देवता यम और रूद्र हैं। जिस धातु में यह तत्त्व पाया जाता है वह लोहा और शीशा हैं। वायु तत्त्व प्रधान शनि का रंग नीला है। इसके देवताओं को नील अर्क और धतूरे के फूल अर्पित किए जाते हैं। धतूरे के पत्तों का रस अस्थमा जैसे रोगों की औषधियों में डाला जाता है।

राहु राहु एक छाया ग्रह है, जिसमें वायु तत्त्व प्रधान होता है। इसकी देवी दुर्गा हैं। जिस धातु में यह तत्त्व पाया जाता है वह शीशा है वायु-तत्त्व प्रधान राहु का रंग काला है। दुर्गा की पूजा के लिए जवाकुसुम अर्पित किए जाते है।

केतु केतु भी राहु की तरह एक छाया ग्रह है, जिसमें वायु तत्त्व प्रधान होता है। इसके देवता ब्रह्मा है। पंच धातु में इसके तत्व पाए जाते हैं। इसका रंग चितकबरा होता है इसका पूजन नहीं होता. पर इसके नाम पर किसी पर्वत पर जाकर काले रंग की ध्वजा फहराई जाती है। यह पतन को रोकने का और नाम को ऊँचा करने का संकेत है। फूलों में समाए हुए तत्त्व के गुण-धर्म तभी प्रभावित कर पाते हैं जब वे ताजा और खिले हुए हो मुरझाए ढले और मसले हुए फूल अपने तत्त्व खो देते हैं, क्योंकि तब उनकी प्राणवायु और धनंजयवायु उस अवस्था में समाप्त हो जाती है। इसलिए ताजे और साफ-सुथरे फूल-पत्तियाँ ही देवताओं पर चढ़ाने चाहिए ताकि उनसे मिलने वाला लाभ प्राप्त हो सके।

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