नवरात्रि से जुड़ी रामायण कथा और महिषासुर वध की कथा

महिषासुर वध की कथा

नवरात्रि का अर्थ होता है  ‘नौ विशेष रातें’, इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ‘रात्रि’ शब्द सिद्धि का प्रतीक है। दसवाँ दिन दशहरा मनाया जाता है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र, आषाढ, अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचय के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं।

नवरात्रि के नौ रातों में माँ दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है।

नवरात्रि से जुड़ी रामायण कथा – Navratri katha hindi

लंका युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और विधि के अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था भी करा दी। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए चंडी पाठ प्रारंभ कर दिया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने ना दिया जाए।

इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया जिससे श्रीराम की पूजा बाधित हो जाए। श्रीराम का संकल्प टूटता नज़र आया। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तभी श्रीराम को याद आया कि उन्हें कमल-नयन नवकंज लोचन भी कहा जाता है तो क्यों न एक नेत्र को वह माँ की पूजा में समर्पित कर दें और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो हाथ पकड़कर कहा – राम मैं प्रसन्न हूँ और ऐसा कहकर भगवान राम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया।

दूसरी तरफ़ रावण की पूजा के समय हनुमान जी ब्राह्मण बालक का रूप धरकर ब्राह्मण जी की सेवा में जुट गए और पूजा कर रहे ब्राह्मणों से एक श्लोक “जयादेवी भूर्तिहरिणी में “हरिणी” के स्थान पर “करिणी” उच्चारित करा दिया। हरिणी का अर्थ होता है भक्त की पीड़ा हरने वाली और करिणी का अर्थ होता है पीड़ा देने वाली। इससे माँ दुर्गा रावण से नाराज़ हो गईं और रावण को श्राप दे दिया। रावण का सर्वनाश हो गया।

महिषासुर मर्दन (महिषासुर वध) की कथा – Navratri katha in hindi

दूसरी कथा इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंसे रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। महिषासुर को उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया था। उस वरदान को पाकर महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और नरक को स्वर्ग के द्वार तक विस्तारित कर दिया। महिषासुर ने सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य देवतओं के भी अधिकार छीन लिए और स्वर्गलोक का अधिपति बन बैठा।

देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था। तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर त्रिदेवो के साथ देवताओं ने माँ दुर्गा का आवाहन किया। तभी माँ दुर्गा अपने प्रव्हाणड रूप में प्रकट हुई और त्रिदेवो सहित सभी देवताओ ने महिषासुर का वध करने के लिए माँ दुर्गा को अपने सभी प्रमुख अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित कर दिए, जिससे माँ दुर्गा अत्यंत बलवान हो गईं। नौ दिनों तक उनका महिषासुर से संग्राम चला था और अन्त में महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुर मर्दिनी कहलाईं।

नवरात्रि का महत्व

वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। शारदीय नवरात्री माँ दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माना जाता है।

नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा माँ दुर्गा ऊर्जा व शक्ति के लिए की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है उसकी पूजा की जाती है।

नवरात्रि के चौथे से छठे दिन व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी – समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है।

नवरात्रि के सातवें दिन कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। आठवे दिन पर एक यज्ञ किया जाता है। नवरात्रि का नौवां दिन नवरात्रि पर्व का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन कन्या पूजन होता है।

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