Varuthini Ekadashi – वरुथिनी एकादशी व्रत कथा और सम्पूर्ण पूजा विधि
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है, जिसे वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi Vrat Katha) कहा जाता है। वैसे तो हर माह में एकादशी तिथि होती है और सबका अपना-अपना महत्व भी है, लेकिन भगवान विष्णु जी के प्रिय वैशाख महीने की वरूथिनी एकादशी का व्रत (Varuthini Ekadashi Vrat) रखकर भगवान के वराह अवतार का पूजन करने वालों की सभी कामनाएं पूरी होने लगती है। इस दिन दान पुण्य करने से वाले लोगों को भगवान विष्णु के परम धाम की प्राप्ति होती है।
Varuthini Ekadashi – इस व्रत की महिमा
इस व्रत की महिमा का पता इसी बात से चलता है कि सभी दानों में सबसे उत्तम तिलों का दान कहा गया है और तिल दान से श्रेष्ठ स्वर्ण दान कहा गया है और स्वर्ण दान से भी अधिक शुभ इस एकादशी का व्रत करने का उपरान्त जो फल प्राप्त होता है, वह कहा गया है। भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।
जानें क्यों वैशाख मास की वरूथिनी एकादशी का व्रत होता है बेहद खास
भगवान अपने भक्तों पर संकट कैसे देख सकते हैं, विष्णु जी प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया, लेकिन तब तक भालू ने राजा के पैर को लगभग पूरा चबा लिया था। राजा को बहुत पीड़ा हो रही थी, श्री भगवान ने राजा से कहा हे राजन विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। तुम वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी तिथि जो मेरे वराह रूप का प्रतिक है, तुम इस दिन मेरे वराह रूप की पूजा करना एवं व्रत रखना । मेरी कृपा से तुम पुन: संपूर्ण अंगों वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे। भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप कर्मों का फल है। इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जाएगी।
श्रीभगवान की आज्ञा मानकर राजा मांधाता ने वरूथिनी एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ किया। परिणाम स्वरूप भालू ने राजा का जो पैर खाया था वह पैर पूरी तरह ठीक हो गया। व्रत करने के पुण्यफल व भगवान वराह की कृपा से जैसे राजा को नवजीवन मिल गया हो। वह फिर से हष्ट पुष्ट होकर अधिक श्रद्धाभाव से भगवान की साधना में लीन रहने लगा। वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से कोई भी उक्त राजा की तरह भगवान की कृपा का अधिकारी बन सकता है।
Varuthini Ekadashi Vrat – व्रत और पूजन विधि
दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक भोजन करें। एकादशी का व्रत दो प्रकार से किया जाता है। पहला निर्जला रहकर और दूसरा फलाहार करके। एकादशी तिथि को सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें।
उसके बाद भगवान विष्णु को अक्षत, दीपक, नैवेद्य, आदि सोलह सामग्री से उनकी विधिवत पूजा करें। फिर यदि घर के पास ही पीपल का पेड़ हो तो उसकी पूजा भी करें और उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर घी का दीपक जलाएं। घर से दूर है तो तुलसी का पूजन करें। पूजन के दौरान ॐ नमो भगवत वासुदेवाय नम: के मंत्र का जप करते रहें।
फिर रात में भी भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना करें। पूरे दिन समय-समय पर भगवान विष्णु का स्मरण करें रात में पूजा स्थल के समीप जागरण करें। एकादशी के अगले दिन द्वादशी को व्रत खोलें। यह व्रत पारण मुहुर्त में खोलें। व्रत खोलने के बाद ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन कराएं।
व्रत ने नियम
- इस दिन कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।
- मांस और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए।
- चने का और कोदों का शाक नहीं खाना चाहिए। साथ ही शहद का सेवन भी निषेध माना गया है।
- एक ही वक्त भोजन कर सकते हैं दो वक्त नहीं।
- इस दौरान स्त्री संग शयन करना पाप माना गया है।
- इसके अलावा पान खाना, दातुन करना, नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित है।
- इस दिन जुआ खेलना, क्रोध करना, मिथ्या भाषण करना, दूसरे की निंदा करना एवं कुसंगत त्याग देना चाहिए।
Varuthini Ekadashi Vrat Katha – वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व धार्मिक पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है। वरुथिनी एकादशी के बारे में कथा इस प्रकार है- बहुत समय पहले की बात है, माँ नर्मदा नदी के किनारे एक राज्य था जिसका राजा मांधाता था। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे, वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के अनन्य उपासक थे।
एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी वे अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा। लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में एकाग्रचित ही लीन रहे, भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी, लेकिन उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई।
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