विजया एकादशी व्रत कथा और पूजा विधि

विजया एकादशी व्रत विधि और कथा – Vijaya Ekadashi Vrat Katha

भगवान विष्णु की साधना-आराधना के लिए समर्पित एकादशी का सनातन परंपरा में विशेष महत्व है। फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। इस पावन तिथि पर  किया जाने वाला यह व्रत जीवन में सफलता पाने और मनोकामना को पूरा करने के लिए विशेष रूप से किया जाता है। इसे समस्त पापों का हरण करने वाली तिथि भी कहा जाता है। यह अपने नाम के अनुरूप फल भी देती है। इस दिन व्रत धारण करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है व जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य मिलता है। इस दिन भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए। विजया एकादशी व्रत की पूजा में सप्त धान रखने का विधान है।

विजया एकादशी का महत्व – Vijaya Ekadashi Importance

सभी व्रतों में एकादशी का व्रत सबसे प्राचीन माना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था कि, ’एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है’। कहा जाता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक जाते हैं। साथ ही व्रती को हर कार्य में सफलता प्राप्त होती ही है और उसे पूर्व जन्म से लेकर इस जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है।

विजयश्री के लिए भगवान राम ने भी किया था विजया एकादशी व्रत

माता सीता को रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए जब राम अपनी सेना समेत समुद्र किनारे पहुंचे तो उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि, हम ये समुद्र कैसे पार करेंगे। तब लक्ष्मणजी बोले, यहां से कुछ दूरी पर बकदालभ्य मुनि का आश्रम है। प्रभु आप उनके पास जाकर उपाय पूछें। जब रामजी ने बकदालभ्य ऋषि के पास पहुंचकर समस्या बताई तो मुनिश्री बोले कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष में जो ‘विजया एकादशी’ आती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय निश्चित होगी और आप अपनी सेना के साथ समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे। मुनि के कथनानुसार, रामचंद्रजी ने इस दिन विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत को करने से श्री राम ने रावण पर विजय पाई।

विजया एकादशी की पूजा विधि – Vijaya Ekadashi Vrat Puja Vidhi

  • पूजा से पूर्व एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान रखें।
  • वेदी पर जल कलश स्थापित कर, आम या अशोक के पत्तों से सजाएं।
  • इस वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
  • पीले पुष्प, ऋतुफल, तुलसी आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारें।
  • व्रत की सिद्धि के लिए घी का अखंड दीपक जलाएं।

विजया एकादशी व्रत कथा – Vijaya Ekadashi Katha

पंडित शक्ति मिश्रा ने कहाकि विजया एकादशी का व्रत हमारे पुराने व नए पापों को नाश करने वाला है। यह व्रत समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता.युग में मर्यादा पुरुषोत्तम  रामचंद्र  को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे लक्ष्मण तथा माता सीता ‍सहित वह पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर लंकापति  रावण ने जब माता सीता का हरण ‍किया इस समाचार से भगवान् रामचंद्र तथा भाई लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और माता सीता की खोज मेंइधर -उधर भटकने लगे ।

बहुत दुःखी होकर घूमते-घूमते जब वह अपनी आख़िरी साँसे ले रहे जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें माता सीता के बारे में पूरी कहानी बता कर जटायु ने अपने प्राण छोड़ दिए । फिर कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से दोस्ती हुई और बाली का वध किया। वीर हनुमान ने लंका में जाकर माता सीता का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्र और सुग्रीव की‍ दोस्ती के बारे में साडी बाते बताई । लंका से आकर वीर हनुमान ने भगवान राम से सारी बात बताई । फिर भगवान् राम वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई कर दी ।

लेकिन जब रामचंद्र समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने उस विशाल समुद्र को गौर से देखा जिसमें बड़े -बड़े मगरमच्छ थे और वह सोचने लगे की इस विशाल समुद्र को किस प्रकार से पर करके मई अपनी सीता के पास जल्द से जल्द पहुँचू । समुद्र को देखकर लक्ष्मण से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे। हे प्रभु आप तो सबकुछ जानने वाले हो आप आदिपुरुष हो , कृपया यहाँ से कुछ ही दुरी पर  कुमारी द्वीप हैं जहा पर वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए वह जरूर बता देगें ।

भाई लक्ष्मण के इस प्रकार के वचन सुनकर रामचंद्र  वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके उनके पास बैठ गए। वकदालभ्य ऋषि ने पहचान लिया और पूछा  हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्र कहने लगे कि हे ऋषि ! मैं अपनी सेना ‍सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। लेकिन समुद्र को पार करने का कोई तरीका बताईये मेरी समझ से परे हैं सब इसी ख़ास उदेश्य से मैं आप के पास आया हूँ ।

तब वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम आप को अपनी परेशानी से छुटकारा मिल जायेगा इसके लिए आप को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करना होगा इस व्रत के प्रभाव से  विजय प्राप्त होती हैं । हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। रामचंद्र ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई। अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य विजय होगी । भगवान् राम ने वकदालभ्य ऋषि के द्वारा बताये गए व्रत की विधि को पूछकर ऋषि को प्रमाण करके वहा से चले आये और समुद्र के किनारे बैठ कर आराधना करने लगे और विजया एकादशी का व्रत करके भगवान राम ने अपनी समस्या का समाधान प्राप्त किया । जिस तरह से उनके दुःखों का निवारण हुआ है उसी तरह सबके दुःखों का निवारण हो ।

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