ऊब छठ व्रत, पूजा विधि और कहानी – Ub chhath Vrat, Puja Vidhi aur Katha

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ऊब छठ व्रत, पूजा विधि और कहानी – Ub chhath Vrat, Puja Vidhi aur Katha

ऊब छठ का व्रत और पूजा विवाहित स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए तथा कुंआरी लड़कियां अच्छे पति कामना में करती है। भाद्र पद महीने की कृष्ण पक्ष की छठ (षष्टी तिथि) ऊब छठ होती है। ऊब छठ को चन्दन षष्टी Chandan chath , चन्ना छठ Channa Chath और चाँद छठ Chand Chath के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान श्री कृष्ण के भ्राता बलराम का जन्म दिन को ऊब छठ ‘चंदन षष्ठी’ के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। शाम ढलने के बाद व्रत रखने वाली महिलाए और कुंआरी लड़कियां मंदिरों में ठाकुरजी के दर्शन के साथ, परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करती है। महिलाए रात्रि में चंद्रोदय के बाद ही अध्र्य देकर पूजा करने के बाद व्रत का पालना करती है।

ऊब छठ का व्रत रखने वाली महिलाए और कुंआरी लड़कियां सूर्यास्त के बाद से चंद्रोदय तक खड़े रहकर पौराणिक कथाओं का श्रवण करती है। कई मंदिरों में महिलाओं के लिए भजन मंडली, सांस्कृतिक कार्यक्रम और झूला झूलने के लिए झूले भी लगते है, जिसे वे चाँद की पूजा करने तक खड़ी रह सके।

ऊब छठ के दिन मंदिर में भगवान की पूजा की जाती है। चाँद निकलने पर चाँद को अर्ध्य दिया जाता है। उसके बाद ही व्रत खोला जाता है। सूर्यास्त के बाद से लेकर चाँद के उदय होने तक खड़े रहते है। इसीलिए इसको ऊब छठ कहते है।

ऊब छठ की पूजा विधि – Ub chhath Pooja Vidhi

स्त्रियां इस दिन पूरे दिन उपवास रखती है। शाम को दुबारा नहाती है और नए कपड़े पहनती है। मंदिर जाती है। वहाँ भजन करती है। चन्दन घिसकर टीका लगाती है। कुछ लोग लक्ष्मी जी और और गणेश जी की पूजा करते है। कुछ अपने इष्ट की ।

भगवान को कुमकुम और चन्दन से तिलक करके अक्षत अर्पित करते है। सिक्का , फूल , फल , सुपारी चढ़ाते है। दीपक , अगरबत्ती जलाते है। फिर हाथ में चन्दन लेते है। कुछ लोग चन्दन मुँह में रखते है। इसके बाद ऊब छट व्रत की कहानी सुनते है। और गणेशजी की कहानी सुनते है।

इसके बाद पानी भी नहीं पीते जब तक चाँद न दिख जाये। इसके अलावा बैठते नहीं है। खड़े रहते है । चाँद दिखने पर चाँद को अर्ध्य दिया जाता है। चाँद को जल के छींटे देकर कुमकुम, चन्दन, मोली, अक्षत चढ़ाएं। भोग अर्पित करें। जल कलश से जल चढ़ायें। एक ही जगह खड़े होकर परिक्रमा करें। अर्ध्य देने के बाद व्रत खोला जाता है।
लोग व्रत खोलते समय अपने रिवाज के अनुसार नमक वाला या बिना नमक का खाना खाते है।

ऊब छठ की पूजन सामग्री – Ub chhath Pujan Samagri

कुमकुम , चावल , चन्दन , सुपारी , पान , कपूर , फल , सिक्का , सफ़ेद फूल , अगरबत्ती , दीपक

ऊब छठ के व्रत की उद्यापन विधि – Ub Chath Ka Udyapan

इस व्रत के उद्यापन के लिए पाव पाव भर के आठ लडडू बनाये जाते है। ये लडडू एक प्लेट में रखकर व्रत करने वाली आठ स्त्रियों को दिए जाते है। साथ में एक नारियल भी दिया जाता है। नारियल पर कुमकुम के छींटे दिए जाते है। एक प्लेट में लडडू और नारियल विनायक को दिया जाता है।

ये प्लेट घर पर जाकर दे सकते है या उनको भोजन के लिए निमंत्रण देकर भोजन कराके भी दे सकते है। प्लेट देते समय पहले लड़की या महिला को तिलक करें। फिर प्लेट दें । नारियल भी दें।

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ऊब छठ की कहानी – Ub Chath ki Kahani

ऊब छठ का व्रत और पूजा करते समय ऊब छठ की कहानी Ub Chhath ki katha सुनते है। इससे व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है।

किसी गांव में एक साहूकार और इसकी पत्नी रहते थे। साहूकार की पत्नी रजस्वला होती थी तब सभी प्रकार के काम कर लेती थी। रसोई में जाना, पानी भरना, खाना बनाना, सब जगह हाथ लगा देती थी। उनके एक पुत्र था। पुत्र की शादी के बाद साहूकार और उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई।

अगले जन्म में साहूकार एक बैल के रूप में पैदा हुआ और उसकी पत्नी अगले जन्म में कुतिया बनी। ये दोनों अपने पुत्र के यहाँ ही थे। बैल से खेतों में हल जुताया जाता था और कुतिया घर की रखवाली करती थी।

श्राद्ध के दिन पुत्र ने बहुत से पकवान बनवाये। खीर भी बन रही थी। अचानक कही से एक चील उड़ती हुई आई। चील के मुँह में एक मरा हुआ साँप था। वो सांप चील के मुँह से छूटकर खीर में गिर गया।
कुतिया ने यह देख लिया। उसने सोचा इस खीर को खाने से कई लोग मर सकते है। उसने खीर में मुँह अड़ा दिया ताकि उस खीर को लोग ना खाये।

पुत्र की पत्नी ने कुतिया को खीर में मुँह अड़ाते हुए देखा तो गुस्से में एक मोटे डंडे से उसकी पीठ पर मारा। चोट तेज थी कुतिया की पीठ की हड्डी टूट गई। उसे बहुत दर्द हो रहा था। रात को वह बैल से बात कर रही थी।

उसने कहा तुम्हारे लिए श्राद्ध हुआ तुमने पेट भर भोजन किया होगा। मुझे तो खाना भी नहीं मिला, मार पड़ी सो अलग। बैल ने कहा – मुझे भी भोजन नहीं मिला , दिन भर खेत पर ही काम करता रहा।

ऊब छठ के व्रत की कहानी – Ub Chhat Vrat Katha

ये सब बातें बहु ने सुन ली। उसने अपने पति को बताया। उसने एक पंडित को बुलाकर इस घटना का जिक्र किया।

पंडित में अपनी ज्योतिष विद्या से पता करके बताया की कुतिया उसकी माँ और बैल उसके पिता है। उनको ऐसी योनि मिलने का कारण माँ द्वारा रजस्वला होने पर भी सब जगह हाथ लगाना, खाना बनाना, पानी भरना था।

उसे बड़ा दुःख हुआ और माता पिता के उद्धार का उपाय पूछा। पंडित ने बताया यदि उसकी कुँवारी कन्या भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्टी यानि ऊब छठ का व्रत करे। शाम को नहा कर पूजा करे उसके बाद बैठे नहीं। चाँद निकलने पर अर्ध्य दे। अर्ध्य देने पर जो पानी गिरे वह बैल और कुतिया को छूए तो उनका मोक्ष हो जायेगा।

जैसा पंडित ने बताया था कन्या ने ऊब छठ का व्रत किया, पूजा की। चाँद निकलने पर चाँद को अर्ध्य दिया। अर्ध्य का पानी जमीन पर गिरकर बहते हुए बैल और कुतिया पर गिरे ऐसी व्यवस्था की। पानी उन पर गिरने से दोनों को मोक्ष प्राप्त हुआ और उन्हें इस योनि से छुटकारा मिल गया।

हे! ऊब छठ माता, जैसे इनका किया वैसे सभी का उद्धार करना। कहानी कहने वाले और सुनने वाले का भला करना।

बोलो छठ माता की…. जय !!!

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