होली – Holi Festival
होलिका (holika dahan) फाल्गुन मास की पूर्णिमा को कहतें हैं । इस दिन होली पर्व (holi festival) को वसन्तोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर फाल्गुन पूर्णिमा के कुछ दिन पूर्व ही वसन्त ऋतु की रंगरेलिया प्रारम्भ हो जाती हैं । वस्तुत: वसन्तपंचमी से ही वसंत के आगमन का संदेश मिल जाता है । होलिकोत्सव (holi festival of colours) को फाल्गु-उत्सव भी कहतें हैं । यह प्रेम का पर्व है ।
फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन कर वर्ष की समाप्ति की घोषणा के साथ पारस्परिक वैर-विरोध को समाप्त कर आगामी वर्ष में प्रेम और पारस्परिक सौहार्द का जीवन व्यतीत करने का संदेश दिया जाता है । दूसरे दिन अर्थात् नव वर्ष के प्रथम दिवस (चैत्र प्रतिपदा) को समानता का उद्घोष कर अमीर-गरीब सभी को प्रेम के रंग (लाल रंग) में रंग दिया जाता है ।
लेकिन इस रंगीली होली को तो असल में धुलंडी (धूलिवंदन) कहा जाता है। होली तो असल में होलीका दहन का उत्सव है जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है। यह त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को मजबूत बनाने व हमें आध्यात्मिकता की और उन्मुख होने की प्रेरणा देता है। क्योंकि इसी दिन भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और उसे मारने के लिये छल का सहारा लेने वाली होलीका खुद जल बैठी।
तभी से हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। आइये जानते हैं क्यों मानते है होली ? (why is holi celebrated) क्या है होली की पूजा विधि ? (Holi Pujan Vidhi) कैसे मानते हैं होली ?
होली पूजा विधि – Holi Pujan Vidhi
होलिका दहन से पहले होली का पूजन किया जाता है। पूजा सामग्री में एक लोटा गंगाजल यदि उपलब्ध न हो तो ताजा जल भी लिया जा सकता है, रोली, माला, रंगीन अक्षत, गंध के लिये धूप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज गेंहू की बालियां, पके चने आदि।
पूजा सामग्री के साथ होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है। होलिका दहन (Holika Dahan) के शुभ मुहूर्त के समय चार मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और खिलौनों से बनाई जाती हैं। इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिये, तीसरी शीतला माता, और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके पश्चात पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है।
होलिका की परिक्रमा तीन या सात बार की जाती है। इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है। पंचोपचार विधि से होली का पूजन कर जल से अर्घ्य दिया जाता है। होलिका दहन के बाद होलिका में कच्चे आम, नारियल, सतनाज, चीनी के खिलौने, नई फसल इत्यादि की आहुति दी जाती है। सतनाज में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, चावल जौ और मसूर मिश्रित करके इसकी आहुति दी जाती है।
नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन (Holika Dahan) के अगले दिन (रंग वाली होली के दिन) प्रात: काल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं के लिए तर्पण-पूजन करना चाहिए। साथ ही सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिए। घर के आंगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से आयु की वृ्द्धि, आरोग्य की प्राप्ति तथा समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।
कब करें होली का दहन : Holika Dahan
हिन्दू धर्मग्रंथों एवं रीतियों के अनुसार होलिका दहन पूर्णमासी तिथि में प्रदोष काल के दौरान करना बताया है। भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि ऐसा योग नहीं बैठ रहा हो तो भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन किया जा सकता है।
यदि भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन करने का विधान है। लेकिन भद्रा मुख में किसी भी सूरत में होलिका दहन नहीं किया जाता। धर्मसिंधु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार भद्रा मुख में होली दहन से न केवल दहन करने वाले का अहित होता है बल्कि यह पूरे गांव, शहर और देशवासियों के लिये भी अनिष्टकारी होता है।
विशेष परिस्थितियों में यदि प्रदोष और भद्रा पूंछ दोनों में ही होलिका दहन संभव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है।
होलाष्टक
होलिका दहन से आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाता है इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को नहीं किया जाता ना ही कोई धार्मिक संस्कार किया जाता है। यहां तक कि अंतिम संस्कार के लिये भी शांति पूजन करना आवश्यक होता है।
होली की पौराणिक कथा – Why is Holi Celebrated (Holi Katha)
होली के साथ एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। हिरण्यकश्यप एक राक्षस राजा था। उसका पुत्र प्रहलाद भगवान् विष्णु का भक्त निकला। बार बार बोलने पर भी प्रह्लाद विष्णु भगवान् के गुण गाता था । हिरण्यकश्यप क्रोधित हुआ और भक्त प्रह्लाद को कई तरह से डराया धमकाया यहाँ तक की उसे जान से मरवाने के लिए भी प्रयत्न किया। लेकिन प्रह्लाद को भगवान की रक्षा से कुछ भी नहीं हुआ । हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मार डालने के लिए अपनी बहन होलिका को नियुक्त किया था | होलिका जिसने घोर तपस्या से अग्नि देव से ऐसा वरदान पाया की आग में रहने पर भी उसे कुछ भी नहीं होगा |
अपने भाई की परेशानी जान वो हिरण्यकश्यप के पास आई और प्रह्लाद को मारने की इच्छा जताई हिरण्यकश्यप की आज्ञा से वो भक्त प्रह्लाद को गोद में ले अग्नि में कूद पड़ी | वहाँ दैवीय चमत्कार हुआ, होलिका आग में जलकर भस्म हो गई, परंतु विष्णुभक्त प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ, भक्त की विजय हुई और राक्षस की पराजय | उस दिन सत्य ने असत्य पर विजय प्राप्त की, तब से लेकर आज तक होलिका-दहन की स्मृति में होली का पर्व (color festival) मनाया जाता है |
धूलिवंदन (धुलंडी) – Dhulandi
होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
ज्यादातर जगहों पर होली दो दिन मनायी जाती है। होली के पहले दिन को होलिका दहन, जलानेवाली होली और छोटी होलीके नाम से जाना जाता है और इस दिन लोग होलिका की पूजा-अर्चना कर उसे आग में भस्म कर देते हैं। दक्षिण भारत में होलिका दहन को काम-दहनम् के नाम से मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन को रंगवाली होली के नाम से जाना जाता है।
होली का त्यौहार भगवान श्री कृष्ण को अत्यधिक प्रिय था। जिन स्थानों पर श्री कृष्ण ने अपने बालपन में लीलाएँ और क्रीडाएँ की थीं उन स्थानों को ब्रज के नाम से जाना जाता है। इसीलिये ब्रज की होली की बात ही निराली है। ब्रज की होली की छटा का आनन्द लेने के लिये दूर-दराज प्रदेशों से लोग मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, नन्दगाँव और बरसाना में आते हैं। बरसाना की लट्ठमार होली तो दुनिया भर में निराली और विख्यात है।
होलिका दहन मुहूर्त New Delhi, India के लिए
- होलिका दहन 2022 तिथि: 17 मार्च, 2022 (गुरुवार)
- होलिका दहन का मुहूर्त: रात 09:06 बजे से रात 10:16 बजे तक
- अवधि: 01 घंटा 10 मिनट
- भद्रा पूँछ: रात्रि 09:06 बजे से रात्रि 10:16 बजे तक,
- भद्रा मुख: रात्रि 10:16 बजे से रात्रि 12:13 बजे (18 मार्च)
- पूर्णिमा तिथि का आरम्भ: 17 मार्च 2022 को दोपहर 01:29 बजे,
- पूर्णिमा तिथि की समाप्ति: 18 मार्च 2022 को दोपहर 12:47 बजे